बुधवार, 14 जून 2017

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परोक्ष : शोर्ट फिल्म

जेनर : हॉरर,मनोविज्ञान l
अवधि : मात्र 12 मिनट l
शोर्ट फिल्म्स की चर्चा में आज चर्चा करेंगे “दृश्यम’’ फिल्म्स की हाल ही में यूट्यूब पर रिलीज की गई शोर्ट फिल्म “परोक्ष” की, परोक्ष को एक हॉरर जेनर में बनाया गया है,फिल्म की भाषा ‘तुलु’ है किन्तु इससे फिल्म को समझने में कोई दिक्कत नही होगी,क्योकि इस फिल्म में संवाद बहुत कम है,लगभग न के बराबर, फिल्म अंग्रेजी सबटाईटल्स के साथ है, लेकिन न भी होती तो कोई ख़ास फर्क न पड़ता l
फिल्म की कहानी दक्षिण भारत के एक गाँव की है,गाँव बेहद सुंदर है और प्रकृति ने अपनी पूर्ण हरियाली गाँव पर मानो न्योछावर सी कर दी है l
इसी गाँव के आखिरी छोर पर एक छोटा सा परिवार रहता है,जिसमे एक दम्पति अपनी बेटी के साथ रहते है, l
सबकुछ ठीक चल रहा होता है के अचानक एक दिन परिवार की महिला को पास के ताड़ के पेड़ो से डरावनी आवाज सुनाई पडती है, आवाज दिन में आती है, जिससे महिला डर जाती है और अपने पति को इस बाबत सूचित करती है,पति अपनी पत्नी का भ्रम दूर करने के लिए पेड़ो के समीप जाता है,किन्तु वही भयावह आवाज वह भी सुनता है l
वह समझ जाता है के यहाँ कुछ गडबड है,किसी तरह की अदृश्य शक्तियों का वास है, वह घबरा कर अपने साले को बुलाता है, साला अपने दोस्तों के साथ छानबीन करता है तो उसे भी डरावनी आवाजे सुनाई देती है, वह बहुत कोशिश करता है किन्तु आवाज के स्त्रोत का पता नहीं लगा पाता,और अगले दिन एक मांत्रिक को वहा भेजता है, मांत्रिक आवाज वाले पेड़ की निशानदेही करता है, और अपने कर्मकांडो पेड़ को मंत्रित कर देता है l
लेकिन तांत्रिक के जाते ही फिर से वही भयानक आवाज आती है, और इस बार न सिर्फ आवाज आती है, बल्कि महिला को एक साया भी दिखाई देता है l
फिर क्या होता है, यही मुख्य संस्पेंस है,जिसके बारे में चर्चा करना मतलब फिल्म का मजा खराब करना होगा l
फिल्म की सिनेमाटोग्राफी काफी शानदार है,फिल्माकंन हो या साउंड इफेक्ट्स, सभी शानदार है, फिल्म में जो वातावरण गढ़ा गया है वह बेहद सुंदर है,मनमोहक है,किन्तु उस सुंदर वातावरण में जब भय का वास होता है, तो वह सुंदरता एक मनहूसियत सी लगने लगती है l
कलाकारों का अभिनय जिवंत है, कम शब्दों में अधिक भाव दिखाना वाकी मंत्रमुग्ध कर देता है, विशेष तया मांत्रिक का किरदार, जो बेहद रहस्यमई है और उसके हिस्से में एक भी संवाद न होने के बावजूद उसका प्रभाव काफी तगड़ा रहा है l
फिल्म गति और दिलचस्पी लिए हुए है,कही भी आपकी नजरे यहाँ से वहा होने का अवसर नही देती , अंत तक बांधे रखती है l
और फिल्म का अंत ? बस वह अंत एक झटके में सब बदल देता है l
वक्त निकालिए और अवश्य देखिये l
देवेन पाण्डेय l 

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