रविवार, 18 जून 2017

चालीसा का रहस्य : पुस्तक चर्चा l


जहा तक मुझे याद है मैंने इससे पहले फिक्शन में किसी महिला लेखक की पुस्तक नही पढ़ी है, अधिकतर रोमांस लेखन में सक्रियता दिखाती है, और रोमांस ने मुझे कभी इतना आकर्षित नही किया, l
इसी दौरान ‘’सूरज पॉकेट बुक्स’’ से प्रकाशित पुस्तक ‘’चालीसा का रहस्य” के बारे में सुना, यह पुस्तक पहले अंग्रेजी में प्रकाशित हुयी थी, मेरी दिली इच्छा थी के यह पुस्तक हिंदी में अनुवादित हो l
और ऐसा हुवा भी, पुस्तक हिंदी में प्रकाशित हुयी जिसका अनुवाद भी एक महिला ने ही किया,”सबा खान” जी ने, और पुस्तक पढ़ते समय यह लगा ही नही के यह पुस्तक मूल रूप से अंग्रेजी में थी और यह हिंदी अनुवाद है, ऐसा लगा मानो यह पुस्तक हिंदी में पुन: लिखी गयी हो, हिंदी में भी पुस्तक को जस का तस बनाए रखने और दिलचस्प भाषा शैली प्रदान करने के लिए “सबा” जी प्रशंषा की हकदार है l आते है पुस्तक पर और उसके विषय पर,पुस्तक एक मेडिकल माइथोलोजी थ्रिलर है, मेडिकल शब्द का प्रयोग पहले मुझे समझ में न आया के भला यह कौन सा जेनर आ गया ? किन्तु जब उपन्यास खत्म किया तब लगा के वाकई यह बिलकुल सही शब्द था l
उपन्यास की कहानी है शोधछात्र ‘संजीव त्रिपाठी’ की, वह सुप्रसिद्ध डॉक्टर और शोधकर्ता ‘अंजना शर्मा’ के मार्गदर्शन तले अपनी एक थिसीस पर लगा हुवा है,उस थीसिस के पीछे संजीव की अपार मेहनत और गहन शोध छिपी हुयी है और उसमे उसका सम्पूर्ण भविष्य निहित है, किन्तु थीसिस पूर्ण होने से पहले ही संदिग्ध परिस्थितियों में ‘अंजना शर्मा’ की मृत्यु हो जाती है l
अब संजीव एक ओर दुखी भी है तो दूसरी ओर थीसिस के न मिलने से परेशान भी,क्योकि वह अंतिम प्रारूप के लिए ‘अंजना’ के पास दी गई थी,
लेकिन संजीव को हैरानी तब होती है जब उसे पता चलता है के अंजना ने उसके लिए एक बॉक्स और हनुमान चालीसा की एक प्रति को रख छोडी है, संजीव उस रहस्यमयी बॉक्स को हासिल तो कर लेता है किन्तु वह बॉक्स खोलने की प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है, जिसके लिए उसे कुछ राज सुलझाने है,और उन सारे प्रश्नों के उत्तर और उनके गूढ़ इस हनुमान चालीसा की पंक्तियों में है l
और यहाँ से उसका सफर शुरू होता है,पंक्ति दर पंक्ति उसे नए नए मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है,जिसमे उसके साथी बनते है,भूमिजा और पवन जो अंजना के रिश्तेदार है, इस पुरे सफर में कई उलझाऊ मोड़ आते है,कई रहस्य खुलते है,कई घटनाए द्रुत गति से घटती है, जिसके ताने बाने अंत में एक जगह आकर मिलने है, l
क्या संजीव अपनी थीसिस पूर्ण कर सका ? थीसिस में ऐसा क्या था जिसके लिए संजीव व्यग्र था ? हनुमान चालीसा की पंक्तियों में भला कौन से रहस्य छुपे थे ? ऐसा क्या था जिसे इतना छुपाकर रखा गया था ? इन सारे प्रश्नों के उत्तर बेहद दिलचस्प तरीके से पुस्तक में पृष्ठ दर पृष्ठ मिलते है l
194 पृष्ठों में फैले इस उपन्यास की कहानी,बेहद दिलचस्प है और कही भी खिंची हुयी नही लगती है, घटनाए बड़ी तेजी से निकलती है जिस वजह से उपन्यास में गति पर्याप्त है, हनुमान चालीसा को आधार बना कर रहस्य का ताना बाना बुनना और उसे पंक्ति दर पंक्ति रचना वाकइ बेहद शानदार है, उपन्यास में अतिरंजकता से बचा गया है, जो के अच्छा लगता है l

बढ़िया शुरुवात,लेखिका डॉक्टर रुनझुन सक्सेना एवं अनुवादिका सबा खान जी को बधाई इस दिलचस्प उपन्यास के लिए l   

बुधवार, 14 जून 2017

परोक्ष : शोर्ट फिल्म

जेनर : हॉरर,मनोविज्ञान l
अवधि : मात्र 12 मिनट l
शोर्ट फिल्म्स की चर्चा में आज चर्चा करेंगे “दृश्यम’’ फिल्म्स की हाल ही में यूट्यूब पर रिलीज की गई शोर्ट फिल्म “परोक्ष” की, परोक्ष को एक हॉरर जेनर में बनाया गया है,फिल्म की भाषा ‘तुलु’ है किन्तु इससे फिल्म को समझने में कोई दिक्कत नही होगी,क्योकि इस फिल्म में संवाद बहुत कम है,लगभग न के बराबर, फिल्म अंग्रेजी सबटाईटल्स के साथ है, लेकिन न भी होती तो कोई ख़ास फर्क न पड़ता l
फिल्म की कहानी दक्षिण भारत के एक गाँव की है,गाँव बेहद सुंदर है और प्रकृति ने अपनी पूर्ण हरियाली गाँव पर मानो न्योछावर सी कर दी है l
इसी गाँव के आखिरी छोर पर एक छोटा सा परिवार रहता है,जिसमे एक दम्पति अपनी बेटी के साथ रहते है, l
सबकुछ ठीक चल रहा होता है के अचानक एक दिन परिवार की महिला को पास के ताड़ के पेड़ो से डरावनी आवाज सुनाई पडती है, आवाज दिन में आती है, जिससे महिला डर जाती है और अपने पति को इस बाबत सूचित करती है,पति अपनी पत्नी का भ्रम दूर करने के लिए पेड़ो के समीप जाता है,किन्तु वही भयावह आवाज वह भी सुनता है l
वह समझ जाता है के यहाँ कुछ गडबड है,किसी तरह की अदृश्य शक्तियों का वास है, वह घबरा कर अपने साले को बुलाता है, साला अपने दोस्तों के साथ छानबीन करता है तो उसे भी डरावनी आवाजे सुनाई देती है, वह बहुत कोशिश करता है किन्तु आवाज के स्त्रोत का पता नहीं लगा पाता,और अगले दिन एक मांत्रिक को वहा भेजता है, मांत्रिक आवाज वाले पेड़ की निशानदेही करता है, और अपने कर्मकांडो पेड़ को मंत्रित कर देता है l
लेकिन तांत्रिक के जाते ही फिर से वही भयानक आवाज आती है, और इस बार न सिर्फ आवाज आती है, बल्कि महिला को एक साया भी दिखाई देता है l
फिर क्या होता है, यही मुख्य संस्पेंस है,जिसके बारे में चर्चा करना मतलब फिल्म का मजा खराब करना होगा l
फिल्म की सिनेमाटोग्राफी काफी शानदार है,फिल्माकंन हो या साउंड इफेक्ट्स, सभी शानदार है, फिल्म में जो वातावरण गढ़ा गया है वह बेहद सुंदर है,मनमोहक है,किन्तु उस सुंदर वातावरण में जब भय का वास होता है, तो वह सुंदरता एक मनहूसियत सी लगने लगती है l
कलाकारों का अभिनय जिवंत है, कम शब्दों में अधिक भाव दिखाना वाकी मंत्रमुग्ध कर देता है, विशेष तया मांत्रिक का किरदार, जो बेहद रहस्यमई है और उसके हिस्से में एक भी संवाद न होने के बावजूद उसका प्रभाव काफी तगड़ा रहा है l
फिल्म गति और दिलचस्पी लिए हुए है,कही भी आपकी नजरे यहाँ से वहा होने का अवसर नही देती , अंत तक बांधे रखती है l
और फिल्म का अंत ? बस वह अंत एक झटके में सब बदल देता है l
वक्त निकालिए और अवश्य देखिये l
देवेन पाण्डेय l 

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