रविवार, 10 अप्रैल 2016

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फिल्म एक नजर में : दी जंगल बुक

मोगली की कहानी से शायद ही कोई अनजान हो,

नब्बे के दशक का यह चरित्र जिसने दूरदर्शन पर प्रसारित होकर उस पीढ़ी इ हर बच्चे के बचपन कभी न भुल सकनेवाला तोहफा दिया था !
आज की पीढ़ी उस क्रेज को समझ ही नहीं सकती जब ढेरो केबल चैनल के बजाय केवल एक चैनल हुवा करता था l  विडिओ गेम्स ,मोबाईल्स और सैकड़ो प्रोग्राम्स के अम्बार नहीं थे ,कुछ गिने चुने ही कार्यक्रम आते थे 
जिसमे रविवार बच्चो के आरक्षित माना जाता था ,
गुलजार के लिखे गीत और विशाल भारद्वाज के संगीत से सजा गीत
  ‘’ जंगल जंगल बात चली है ‘’ का जादू सर चढ़ कर बोलता था , 
आज भी कही यह गीत सुनाई दिखाई दे तो लोग ‘’नोस्टेलॉजिक  ‘’
 हो जाते है .
यु तो जंगल बुक पर काफी एनिमेशन फिल्मे बन चुकी है l
 लेकिन नब्बे के दशक जैसा जादू नहीं दिखा उनमे .
ऐसे में जब ‘’दी जंगल बुक ‘’ का पहला ट्रेलर रिलीज हुवा , 
तब कई दर्शक भावविभोर हो गए अपने बचपन के हिस्से को पर्दे 
पर सजीव होते देख कर l
अंग्रेजी लेखक ‘’रूडयार्ड किपलिंग ‘’ जिनका जन्म भारत में ही हुवा था , 
उन्होंने ‘’दी जंगल बुक ‘’ नामक कहानियों की पुस्तक लिखी
 जो काफी प्रसिद्ध हुयी ,जिसपर १९६७ में डिस्नी ने फिल्म भी बनाई
 जिसकी कहानी मूल किताब से काफी अलग थी , 
बाद में उस फिल्म की कहानी को मूल के बजाय ज्यादा वरीयता दी गई ,
यहाँ शायद ही कोई ऐसा हो जिसने टार्जन का नाम न सुना हो l
एडगर राईस बरोज के लिखे इस पात्र के पीछे भी ‘मोगली ‘ 
ने ही प्रेरणा का काम किया है , एडगर मोगली से काफी प्रभावित थे .
कहानी में भारतीय चरित्र और परिवेश होने के कारण इस फिल्म को कभी भी बाहरी नहीं माना गया 
, यहाँ तक के नब्बे के दशक के कई बच्चो को किशोर होने तक भी
 यह यकीन नहीं था के यह विदेशी चरित्र है ( कईयों को तो अब भी नहीं है ) 
चरित्रों के नाम भारतीय थे , अकडू ,पकडू ,अकेला ,का ,रक्षा ,मोगली ,बल्लू ,बगिरा ,पप्पू , इत्यादि ,जो इसे पूर्णरूप से भारतीय बनाते थे .
फिल्म की कहानी सबको पता है ,पता क्या सभी को एक एक दृश्य पता है ,
फिर भी इसका दीवानापन आज भी कायम है l 
थियेटर में सबसे ज्यादा लोग अपने बच्चो के साथ ही मौजूद थे 
और ये सभी वही है जो अपने मोगली को अपने बचपन का हिस्सा मानते है ,
और अब अपने बच्चो को दिखाने को उत्साहित है के देखो बेटा ये है मोगली , 
यह है उसका जादू जिसने मुझे आज भी दीवाना बनने पर मजबूर कर दिया .
मेरे पीछे वाली सिट पर एक फैमिली बैठी थी दो छोटे बच्चो के साथ , 
बच्चे बार बार अपने माता पिता से हर चरित्र के बारे में पूछते थे ‘ये कौन है ? 
क्या यह बूरा है ? ये अच्छा है ? अब क्या होगा ?
 मोगली सबको छोड़ कर चला जायेगा क्या ? ‘ उनके सवालों पर उनके माता पिता उन्हें बताते थे l जानकारी देते थे जो एकदम सटीक होती थी ,
और बच्चो को जितना उत्साह सवाल पूछने के लिए होता था उससे दुगुना उत्साह अभिभावकों को उत्तर देने का दिखा .
एक इंसानी बच्चा जिसके पिता को शेरखान ने मार दिया , 
और वह बच्चा मिलता है बगिरा को ,बगिरा उस नन्हे बच्चे को एक
 भेड़िया दल के पास छोड़ देता है , जहा पर मादा भेड़िया ‘रक्षा ‘’
 मोगली ( नील सेठी ) को अपने बच्चे के रूप में अपनाती है l 
मोगली भेडियो के साथ पलता बढ़ता है और जंगल के माहौल के 
अनुरूप ढल जाता है ,वह एक मानव भेड़िया है l 
 सब कुछ ठीक ठाक चल रहा होता है के अचानक जंगल में भीषण गर्मी पड़ती है 
और अकाल पड़ जाता है जिस वजह से सारे जलस्त्रोत सूख जाते है
 और जंगल के कानून के अनुसार संधिकाल की घोषणा होती है जिसमे 
कोई भी जानवर किसी जानवर को नहीं मार सकता जब तक
 के बरसात न हो और जल समस्या हल न हो ,
सभी जानवर पानी पिने के एक ही स्थान पर एकत्रित होते है ,
 मोगली भी वहा सबके साथ है लेकिन शेरखान के प्रवेश के साथ उसे
 मानव बालक की गंध आ जाती है l  
और वह भेड़िया प्रमुख से मोगली को सौपने को कहता है , 
लेकिन प्रमुख इनकार कर देता है , संधिकाल के कारण शेर खान विवश है
 आक्रमण न करने के लिए ,
लेकिन यह भेडियो के दल के लिए चिंता का सबब बन जाता है ,
और सर्वसम्मती से निर्णय लिया जाता है के यदि मोगली को शेरखान
 के कहर से बचाना है तो उसे मानवों के पास भेज दिया जाए .
अब शुरू होती है मोगली की यात्रा ,अपने मूल की ओर ,
लेकिन उसका मन नहीं है अपनी माँ को छोड़ कर जाने का l 
इस दौरान शेरखान द्वारा हुए हमले में बगिरा मोगली को बचाते हुए 
घायल हो जाता है ,और मोगली रास्ता भटक जाता है ,
और इस सफर में अब वह अकेला है , 
ऐसे में उसका मित्र बनता है एक भालू , बल्लू l 
जो मस्तमौला है ,पहले तो वह मोगली की क्षमता का और मित्रता का प्रयोग
 अपने स्वार्थ के लिए करता है लेकिन सारी कहानी जानने के बाद 
वह मोगली का सच्चा मित्र बन जाता है .
इसी बिच शेरखान भेड़िया प्रमुख को मार देता है जिसकी खबर
 सुनकर मोगली भागने की बजाय वापस जाकर शेरखान का 
मुकाबला करने का निर्णय करता है .
फिर क्या होता है यह अगला भाग है , फिल्म को 100 मिनट 
में समेटने की कोशिश की गयी है जिस वजह से काफी चीजो को
 सही विस्तार नहीं मिल पाया और कई चरित्र उभरकर आ ही नहीं पाए .
फिल्म में एकमात्र सजीव कलाकार है मोगली के रूप में नील सेठी l 
बाकी सब स्पेशल इफेक्ट्स और सीजीआई ,ग्राफिक्स की उपज है , 
और ग्राफिक्स एकदम सजीव है ,उतने ही जितना के मोगली ,
फिल्म हिंदी में ही देखि क्योकि मोगली को हिंदी में ही देखा था , 
और बिलकुल निराश नहीं हुवा ,डबिंग बहुत ही शानदार की गई है 
केवल वानरो के राजा लुइ की डबिंग को अपवाद समझे जो बिलकुल नहीं जमे .
बगिरा की आवाज में ओमपूरी ने पूरा प्रभाव दिया है ,
तो शेरखान की आवाज में नाना पाटेकर ने शांत लेकिन रीढ़ में सिहरन
 दौड़ा देने वाली डबिंग की है , शेरखान का अंदाज नाना की 
आवाज में ही जंचता है ,
 नब्बे के दशक में भी शेरखान की आवाज नाना ने ही दी थी , 
अजगर रुपी ‘’का ‘’ को आवाज दी है प्रियंका चोपड़ा ने ,
जो केवल कुछ मिनटों का ही दृश्य है l का दोबारा नहीं दिखी ,
जबकि उम्मीद थी के उसे कुछ और दृश्य मिले होंगे , 
सबसे शानदार रहे इरफ़ान खान जिन्होंने ‘’बल्लू ‘’ को आवाज दी l 
कई बार तो लगा ही नहीं के यह इरफ़ान खान की आवाज है ,
 उनका अंदाज एकदम से बदला हुवा था ,बल्लू के मिजाज के अनुरूप .
फिल्म के थ्रीडी इफेक्ट्स बहुत शानदार है ,और घने जंगलो ,घाटियों ,
नदियों के दृश्य थ्रीडी में उभर कर सामने आते है l 
फिल्म की जान इसके स्पेशल इफेक्ट्स है ,ग्राफिक्स है ,
जिसके बगैर फिल्म की कल्पना भी नहीं की जा सकती .
फिल्म देखते वक्त आप केवल दर्शक नहीं रह जाते l 
फिल्म एक टाईम मशीन का काम करती है और अगले 
100 मिनट हमें दोबारा उस नब्बे के दशक में ले जाते है ,जहा हम बच्चे थे ,
आप उसी बच्चे की तरह बिना तर्क वितर्क लॉजिक वगैरह की परवाह किये 
फिल्म में खो जाते है l
तो देर किस बात की , पहली फुर्सत में ही देख लीजिये , 
और हां आप अगर ‘’जंगल जंगल बात चली है ‘’ की उम्मीद कर रहे है
 तो निराशा होगी , यह गीत फिल्म में नहीं मिलेगा 
( लेकिन भारतीय वितरक इसे एक तोहफा बना सकते थे अलग से ऐड करके ) ,
 वैसे मुझे लगता है उन सज्जन को सबसे ज्यादा दुःख हुवा होगा जो टिकट 
काउन्टर पर ही किसी बच्चे की तरह इस गीत को गा रहे थे l
फिल्म को पांच में से पांच स्टार्स तो बनते ही है .
देवेन पाण्डेय 

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