सोमवार, 25 जनवरी 2016

फिल्म एक नजर में : एयरलीफ्ट


पिछले  कुछ समय से अक्षय काफी बढ़िया फिल्मो में नजर आ रहे है जो लीक से हटकर और उम्दा होती है ,कुछ अपवादों को यदि छोड़ दिया जाए तो .
यदि बॉलीवुड के पिछले कुछ सालो को खंगाला जाये तो बेशक अक्षय ऐसे सुपरस्टार के तौर पपर उभरते है जो बिना किसी शोरशराबे के अपनी जगह बना रहे है जिससे अच्छे अच्छे सुपरस्टार्स को काम्प्लेक्स हो जाए .
उसी कड़ी को जारी रखती है ‘’एयरलिफ्ट ‘’ जिसे यदि अक्षय की सबसे बेहतरीन फिल्म कहा जाए तो आतिशयोक्ति नहीं होगी ,बल्कि यह इस साल की बेहतरीन फिल्म भी हो सकती है अब अवार्ड्स भले न मिले दर्शको का प्यार अवश्य मिला है .( वैसे भी अवार्ड्स किस तरह से मिलते है सभी को पता है )
फिल्म की कहानी है नब्बे के दशक की जब ‘कुवैत ‘ और ईराक ‘ के मतभेद खुल के सामने आये और इराकी तानाशाह ‘सद्दाम हुसैन ‘ ने रातो रात कुवैत को जंग का मैदान बना दिया .
एक जंग कितनी भयावह हो सकती है और कैसे अर्थव्यवस्था को चौपट कर सकती है इसका भयावह उदाहरण था वह दौर ,जब एक ही रात में अरबपति से कई लोग कंगाल हो गए .
जिनकी पहचान रातो रात बदल गयी .
ऐसे ही लोगो में से एक था कुवैत का बिजनेस टायकून ‘रंजित कात्याल ‘ ( अक्षय ) जो अपने आपको भारतीय कहलाना पसंद नहीं करता और पैसा ही जिसका ध्येय है ,वह स्वयं को कुवैती मानता है और भारत उसकी यादो में भी नहीं है .
किन्तु सद्दाम हमले में वह सडक पर आ जाता है ,और उस वॉर जॉन में परिवार सहित फंस जाता है l
वह निकलने का प्रयत्न करता है किन्तु उसी की तरह एक लाख सत्तर
 हजार भारतीय भी उस जंग में फंस गए है ,
 अब रंजित हालातो को देखकर बदल जाता है और उसके अंदर का भारतीय जाग जाता है l
वह अब इसी प्रयत्न में जुट जाता है के किसी तरह से सारे भारतीयों
 को सुरक्षित अपने देश पहुंचाया जाय,एक अशांत देश में, 
यह कार्य इतना आसान भी नहीं था .
किन्तु रंजित हार नहीं मानता और अपने दोस्तों एवं पत्नी की सहायता
 से वह कर दिखाता है जिससे वह एक नायक के रूप में उभरता है .
फिल्म की कहानी एक लाइन की है , एक  वॉर जॉन में से भारतीयों के निकलने की !
 किन्तु इस कहानी को विस्तार देना और उसके साथन्याय करना दोनों अलग बात थी .
और फिल्म में समतोल बना हुवा है कहानी कही भी धीमी नहीं पड़ती और बिना 
किसी मसाले के या ड्रामे के दर्शको को बांधे रखती है अंत तक ,
अभिनय सभी का उम्दा रहा ,अक्षय के साथ साथ निम्रत ने भी सहज और संयत अभिनय किया है ,जो अपने पति का साथ देती है और उत्साह भी बढ़ाती है , 
इराकी सैन्य अधिकारी के रूप में ‘इना मूल हक ‘ दिलचस्प रहे है !
 उनकी नपी तुली एवं शांत लहजे में रुसी टाईप हिंदी में धमकी देने और
 डराने की अदा कमाल की थी , अभिनय में हर किसी ने अपना बेस्ट दिया है ,
फिल्म दर्शको अभिभूत कर देती है ,कई बार दर्शको ने तालियों से फिल्म को प्रतिसाद दिया है तो वही भारत का झंडा लहराने भर से  दर्शक भाव विभोर हो जाते है और थियेटर तालियों के शोरगुल से भर जाता है .
बस यही काफी है , यही है असली अवार्ड हर फिल्मकार के लिए ,हर कलाकार के लिए .
फिल्म हर लिहाज से बढ़िया बनी है , गाने न के बराबर है ,वैसे भी जबरदस्ती के रोमांस और संगीत फिल्म को बेवजह लम्बा ही करते ,जिससे पूरी तरह बचा गया है .फिल्म के प्रदर्शित होने के पहले तक कितने लोगो को पता था के ऐसा भी कुछ हो चूका है ? ऐसी फिल्मे बनना सुखद है जिससे लोग अपने आप पर, देश पर गर्व कर सके न की अन्य स्टार्स की तरह झूठा राग अलापकर देश को शर्मिंदा करे .
किसी भी देश का यह अब तक का सबसे बड़ा रिफ्यूजी ऑपरेशन था , एयरइंडिया ने रीकार्डतोड़ ‘’चार सौ अट्ठासी ‘’ फ्लायिट्स चलाई थी , भारतीयों को देश वापस लाने के लिए l लेकिन इसके पीछे जिन अधिकारियों का हाथ रहा उन लोगो का कभी जिक्र भी नहीं हुवा , यह फिल्म उन लोगो के लिए सम्मान भी है .
फिल्म की एक और खासियत यह रही के जहा फिल्म ने प्रदर्शन के दिन बारह करोड़ से ओपनिंग की तो दुसरे दीन चौदह तक पहुंची और रविवार को आंकड़ा सतरह का रहा जो साबित करता है के फिल्म को जबरदस्त तारीफे एवं माउथ पब्लिसिटी का फायदा मिल रहा है ,
जो यह साबित करता है के फिल्म देखने लायक है l  
हम भी सुबह से टिकट के चक्कर में थे किन्तु शहर के आसपास 
सभी मल्टीप्लेक्स हाउसफुल थे l टिकट मिला भी तो शाम का और
 वहा भी कोई सीट खाली नहीं , तो वही दूसरी ओर अडल्ट कॉमेडी ‘क्या कूल है हम 3 ‘’
 की सीट्स सत्तर प्रतिशत उपलब्ध थी .
ऐसा होना सुखद है के लोग अच्छी फिल्मो को तरजीह दे रहे है ! 
फिल्म को और उछाल मिलना तय है ,छब्बीस जनवरी की छुट्टी
 और देशभक्ति का भरपूर लाभ मिलेगा .
रिव्यू वगैरह के चक्कर में पड़े बगैर देखने लायक फिल्म है ,
फाईव स्टार्स

देवेन पाण्डेय 

बुधवार, 13 जनवरी 2016

‘’नटसम्राट ‘’

‘’नटसम्राट ‘’
एक त्रासदीपूर्ण एवम मर्मान्तक कथानक का नाट्य रुपंतरण एवंम फिल्म संस्करण .
‘’महाराष्ट्र ‘’ नाम लेते ही आँखों के सामने मुगलों को नाको चने चबवा देनेवाले शिवाजी का चेहरा सामने आता है , यहाँ का इतिहास गौरवशाली है ! यहाँ की संस्कृति में कला को जो सम्मान है वह शायद ही कही और देखने को मिले , यहाँ का समाज ‘’नाटक ‘’ प्रेमी है ! नाटक यहाँ संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है ,जो सम्मान एवं स्तर यहाँ नाटको का देखने को मिलता है उतना ही अन्य कही मिले .
यहाँ शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता हो जहा नाट्यगृह खचाखच भरे न हो , मैंने भी कुछ मराठी प्ले देखे है और वह दीवानगी महसूस की है !  मराठी नाटक उत्कृष्ट माने जाते है ,
ऐसे ही कुछ महान नाटको में से एक प्रमुख नाटक है ‘’नटसम्राट ‘’ जो लिखी है ‘’वी .वा .शिरवाडकर ‘’ जी ने ,जिसे नाटक  इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है ,जिसके अनगिनत प्ले हो चुके है इसके बावजूद लोग आज भी इस नाटक को देखने का मोह नहीं संवार पाते .
कहानी है एक सेवानिवृत्त कलाकार की ,जिसने अपने जीवन के ४० वर्ष ‘’नाटक ‘’ रूपी कला को समर्पित किये  , किन्तु सेवानिवृत्ति के पश्चात सबसे बड़ा ‘’नाटक ‘’ शुरू हुवा जीवन के कडवे अध्याय का , जिसकी केंद्र भूमिका में था वह कलाकार ‘’ गणपतराव बेलवलकर  ‘’ ! और यह अध्याय एक कभी न खत्म होनेवाले दुःख का अध्याय था जिसका समापन अंतिम श्वाश के साथ ही होना था ,किन्तु इस ‘नटसम्राट ‘’ इस अंतहीन दुःख को भी कुशल कलाकार की तरह आत्मसात किया और इक प्ले की तरह जीवन को जिया , नाटको में अंतहीन दुखी भूमिकाये निभाते निभाते कब दुःख इस कलाकार का जीवन बन गया यह उसे पता ही न चला .
इसी कलाकार की भूमिका में है ‘’नाना पाटेकर ‘’ जो निर्माता भी है  , फिल्म के निर्देशक है ‘’महेश मांजरेकर ‘’ जो पता नहीं क्यों हिंदी फिल्मो में अपना समय व्यर्थ करते है छोटे मोटे महत्वहीन भूमिकाये करके .
उन्हें इसकी कत्तई आवश्यकता नहीं है , वे अपनी कला अप्पने दिग्दर्शन का जिस तरह प्रयोग मराठी फिल्म उद्योग में करते है उसका फायदा हिंदी सिनेमावाले कभी सही से नहीं उठा सकते !
बात करते है ‘’नटसम्राट ‘’ की , जो एक पदवी थी जिसे ‘’गणपतराव बेलवरकर ‘’ ने कमाई थी चालीस वर्षो की साधना से , समर्पण से , ! अभिनय सम्राट !
गणपतराव निवृत्त होते है ,स्टेज छोड़ देते है ! किन्तु नाटक का मोह इस कदर है के स्टेज छूट गया किन्तु नाटक ने जीवन को नहीं छोड़ा , स्वभाव से उद्दंड ,विद्रोही , है !
अपना सर्वस्व अपनों के नाम करके सुख में जीवन के अंतिम क्षण अपनों के साथ बिताने की इच्छा है , किन्तु यह इच्छा एक मृग मरीचिका ही है , अपनों का साथ केवल अवसरवादी ही साबित हुवा ,जिसने साथ दिया बिन कुछ कहे बिन कोई शिकायत किये वह थी केवल पत्नी .
पत्नी की भूमिका में है ‘’मृण्मयी देशपांडे ‘’ ने ,जिनके हिस्से में संवाद बहुत ही कम आये है ,किन्तु उनकी भाषा उनके भाव है ! जो द्रवित करते है , सम्मान पाने की इच्छा गणपतराव को हमेशा से रही है ,किन्तु सम्मान देने का भाव थोडा कमतर ही रहा , जो परिवारजनों एवम चाहनेवालो के लिए एक त्रासदी बन गई !  सम्मान की इच्छा रखने के बावजूद जीवन का अंतिम पड़ाव तिरस्कार पूर्ण रहा तो कही न कही उसका जिम्मेदार गणपतराव का उद्दंड,उन्मत स्वभाव ही रहा .
गणपतराव के एक मित्र भी है जिसकी भूमिका निभायी है ‘’ विक्रम गोखले ‘’ ने  जो रंगमंच भी साझा करते है , किन्तु वे नटसम्राट जैसी ख्याति प्राप्त नहीं कर सके ! कही न कही इसका मलाल उन्हें जीवन भर डसता रहा है ,अवसाद का कारण रहा है किन्तु इसके बावजूद मित्रता में लेशमात्र भी दुर्भाव न उत्पन्न हुवा .
उसका जीवन भी त्रासदीपूर्ण ही रहा और अंत भी ,पत्नी की मृत्य के पश्चात अकेलेपन के भाव का भेदक वर्णन किया गया है ,जो अंदर तक हिला देता है !
अपने अंत समय में मित्र से मिलकर अंतिम अभिनय करने के दृश्य जीवंत एवं मर्मांतक है ,
गणपतराव का संघर्ष समाप्त नहीं हुवा है ,नियति उसकी परीक्षा ले रहा है ! आजीवन जो कमाया सब गंवा बैठा ,मान सम्मान ,रुतबा ,रिश्ते नाते  , और अंत भी एक नाटक के समान .
जो दुःख कागजो पर था उसे अभिनय के द्वारा निभाते निभाते ,साकार रूप देते वे स्वयम उस दुःख भरे कागजो का हिस्सा बन कर रह गए .
कहानी लगभग सभी को पता है ,महाराष्ट्र में ऐसे व्यक्ति दुर्लभ होने जिन्होंने इस नाटक को न देखा ,पढ़ा या सुना होगा ,किन्तु इसके बावजूद इस विषय पर फिल्म बनाना और उसका सफल होना यह जताता है के ‘’नटसम्राट ‘ का कोई जोड़ नहीं .
फिल्म वश्य के अनुरूप है ,नाट्य का फिल्म रूपांतरण फिल्म को धीमा अवश्य करता है किन्तु उकताहट नहीं होती ! फिल्म के अनुरूप कुछ बदलाव भी किये गए है .
पार्श्वसंगीत विषय के अनुरूप ही गंभीर है , और नाना पाटेकर एवं विक्रम गोखले अपने जीवन के श्रेष्ठ अभिनय में है ! दोनों ही नाट्य संस्कृति से है ,स्टेज का हिस्सा रहे है ,अब भी है .
गणपतराव के संवाद नाना पाटेकर के अनुरूप ही है , वो पागलपन ,क्रोध ,असहज बुद्धि , असामान्य वर्तन , आदि सभी गुण नाना ने सहज रूप से साकार किये है .
गणपतराव कथानक के सूत्रधार भी है , अपने अंदाज में कथानक को नैरेट करते है प्रस्तुत करते है !
बिना रुके कठिन से कठिन ,लोमहर्षक लम्बे संवादों को जिस खूबी से नाना प्रस्तुत करते है वो तालिया बजाने को एवं आँखों को नम होने पर विवश कर देता है .
जिन्होंने भी नाटक देखा शायद ही उनमे कोई ऐसा रहा हो जिसके पलके न भिगि हो ! और यही हुवा है फिल्म में भी , एक बार नहीं कई कई बार दर्शक भाव विव्हल हो जाता है और थियेटर से निकलने के पश्चात भी मन व्यथित सा रहता है .
इस नाटक के साथ एक बात यह भी मशहूर है के अब तक जितने भी कलाकारों ने ‘नट सम्राट ‘’ की भूमिका साकार की है ,उन्हें भी इस पात्र के अवसाद ने निजी जीवन में व्यथित किये रखा और उस अवसाद से उबरने में उन्हें समय लगा .
यानी यह कह सकते है के यह किरदार ऐसा है जिसपर कलाकार हावी नहीं होता ,बल्कि किरदार ही कलाकार पर हावी हो जाता है .
फिल्म एक व्यक्तिचरित्र है , एक काल्पनिक व्यक्ति
कुछ फिल्मे समीक्षाओ एवं रेटिंग से परे होती है ,और यह उन्ही में से एक है .

देवेन पाण्डेय 

सोमवार, 11 जनवरी 2016

फिल्म एक नजर में : वजीर

वजीर के ट्रेलर ने ही काफी उत्सुकता जगा दी थी ,जिसकी मुख्य वजह इसकी स्टारकास्ट भी थी .
अमिताभ बच्चन ,फरहान अख्तर ,जॉन अब्राहम ,नील नितिन मुकेश , आदि ,ऊपर से विधु विनोद चोपड़ा का प्रोडक्शन एवम बिजॉय  नाम्बियार का निर्देशन जिनके निर्देशन में हमेशा कुछ हटके मिला है बोलीवूड को ,किन्तु सफलता हमेशा औसत ही रही है ,चाहे वह ‘शैतान हो ‘डेविड ‘ हो या पिज्जा ( बतौर प्रोड्यूसर ) हो .
उनकी यह फिल्म भी उन्ही की शैली को आगे बढ़ाती है ,
डार्क फिनिशिंग एवं सस्पेंस का घालमेल ,
कहानी की शुरुवात होती है ,एटीएस ऑफिसर दानिश अली (फरहान अख्तर) से  ,
जो अपनी पत्नी रुहाना (अदिति राव ) और बेटी के साथ खुशी की जिंदगी बिता रहा है।
 किन्तु एक आतंकवादी का पीछा करते वक्त बेटी के साथ होने की बेवकूफी के
 कारण हमले में वह अपनी बेटी को खो देता है ,
 बेटी की मौत का जिम्मेदार रूही दानिश को मानती है और उससे दुरी बना लेती है , 
टूट चुके दानिश से कुछ गलतिया होती है जिस कारण 
 उसे एटीएस की नौकरी से भी सस्पेंड कर दिया जाता है। 
ऐसे वक़्त में उसकी मुलाक़ात पंडित ओंकारनाथ धर (अमिताभ बच्चन) से होती है,पंडित जी अपाहिज है और शतरंज के जाने माने प्रशिक्षक भी है , पंडित जी दानिश की बेटी को शतरंज सिखाया करते थे , पंडित जी की बेटी की मौत हो चुकी है और पत्नी भी इस दुनिया में नहीं है ! दानिश और पंडित जी एकदूसरे के दोस्त बन जाते है ,
किन्तु पंडित जी थोड़े अजीब किस्म के व्यक्ति है ,
वो अपनी बेटी की मौत के लिए मंत्री ( मानव कौल ) को जिम्मेदार मानता 
है और वह उसे सजा दिलवाना चाहता है ,
इस प्रयास के चलते पंडित जी को जान से मारने की कोशिश भी होती है
 ‘वजीर ‘ द्वारा ( नील नितिन मुकेश ) , दानिश पंडित जी की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है 
लेकिन वजीर की हर चाल उनसे दो कदम आगे है !
 और यह वजीर बिसात पलटने की क्षमता रखता है , कौन है यह वजीर  ? 
फिर क्या होता है यह कहानी का अगला हिस्सा है .
फिल्म रफ़्तार में चलती है ,विषय के हिसाब से ऐसी फिल्मे अक्सर धीमी
 और उकताऊ होती है ! किन्तु यहाँ निर्देशक की प्रशंशा की जानी चाहिए
 के उन्होंने फिल्म में पर्याप्त चुस्ती फुर्ती बनाए राखी है बिना कहानी से
 समझौता किये ,फिल्म कही भी धीमी नहीं है .
संगीत ठीक ठाक है ,लम्बे समय तक याद रखे जा सकनेवाले गीत नदारद है
 ,’तेरे बिन ‘ मौसमी बुखार है तो ‘अतरंगी यारी ‘ हफ्ते दो दो हफ्ते का खुमार ,
अभिनय में बिनाशक फरहान एवं अमिताभ छाये रहे , 
जॉन अब्राहम और नील नितिन मुकेश मुश्किल से पांच मिनट के लिए ही है ,
 नितिन मुकेश इन कुछ मिनटों में भी खलनायक के तौर पर बढ़िया प्रभाव पैदा
 करते है तो जॉन को अभिनय का मौका ही नहीं मिला .
फिल्म थ्रिलर तो है किन्तु कोई जबरदस्त थ्रिल या सस्पेंस नहीं है , 
थ्रिल सस्पेंस फिल्मे देखनेवाले एवं उपन्यास पढनेवाले दर्शको को फिल्म
 प्रेडिक्टबल लग सकती है ,आसानी से आनेवाले ट्विस्ट का अंदेशा हो जाता है .
किन्तु जिन्हें इन सबकी आदत नहीं है उनके लिए जरुर ट्विस्ट हैरत के डोज का काम करेगी .
कुल मिला कर फिल्म एक बार देखनेलायक है ही ,
 ज्यादा उम्मीदे न पाले तो बेहतर .
तीन स्टार .

देवेन पाण्डेय 

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