सोमवार, 23 मार्च 2015

धर्म के सेल्समैन !

आज शाम को ऑफिस से आकर ज्यो ही आराम करने बैठा के दरवाजे पर दस्तक हुयी !
मैंने दरवाजा खोला तो सामने दो युवक खड़े थे ,दोनों के हाथ में हैंडबैग थे ,
मैंने पहले उन्हें देखा उन्होंने मुस्कुराहट दिखाई और न जाने क्यों मुझे ऐसा लगा के ये या तो सेल्समैन है या किसी धर्म के प्रचारक ! मन तो किया के दरवाजा तुरंत बंद कर दू ,किन्तु ऐसा करना उचित नहीं लगा ,
‘जी कहिये ‘ मैंने कहा 
‘सर मै आपके सिर्फ कुछ मिनट्स लूँगा ,यदि आपको कोई आपत्ति न हो तो ?’ उसने कहा .
‘हा क्यों नहीं ‘ सोचा के सुन लेने में क्या जाता है ?
‘’ सर एक टोपिक पर आपसे बात करना चाहता हु ,आपको क्या लगता है जिन लोगो की मृत्यु हो जाती है ,क्या वे दुबारा जिवित हो सकते है ? क्या हम उन्हें दुबारा उन्हें देख पाएंगे ? ‘ उसने मुस्कुराते हुए मेरी जिज्ञासा को बढाने के इरादे से कहा , लेकिन ऐसी बेसिरपैर की बातो से भला अपनी जिज्ञासा कभी बढ़ी है ?
मै समझ गया के ये वही लोग है ,’बड़ी बड़ी बाते और शौचालय में जाकर वडा पाँव खाते ‘’
यानी प्रचारक ,या कहे प्रलोभन या ऐसा ही कुछ !
मैंने कहा ‘ सो फाईनली इट्स रिलेटेड टू ‘’बाईबल ‘’ आई थिंक ?’’
एक पल में बंदा थोडा प्रभावित हुवा ,उसे शायद चड्डी बनियान में खड़े देहाती जैसे दिखनेवाले शख्स से अंग्रेजी की उम्मीद नहीं थी ( अब ये खुद मुझे नहीं पता के इन नमूनों को देखकर पता नहीं कहा से अंग्रेजी निकल गई ,ग्रामर की माता बहन हुयी हो तो अलग बात है )
‘ यस सर ,बट वी आर नोट गोइंग टू एनी रिलीजियस वे ‘’ उसने समझाने के स्वर में कहा ( अपने को यही सुनाई दिया )
हम आपको यह दिखाना चाहते है ,कहकर उसने बैग खोली और मुझे पर्चिया दिखी ‘चंगाई का दिन ,परिवर्तन का अनुभव ,प्रभु बुलाते है , आपसे प्यार करते है ‘

 यानी ऐसी ही मोहब्बत भरे कुछ खत भरे पड़े थे ! उसने एक पर्ची निकाली और थमा दी 
जिसका नाम था ‘ क्या मरे हुवो को दोबारा जीवन मिलेगा ?’’
मैंने कहा ‘ भाई आदमी जी के तो कुछ कर नहीं पा रहा ,वापस आकर भला क्या कर लेगा ? 

यहाँ मरे हुवो को जीवन मिलेगा से ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल है ‘’ क्या मुझे कन्फर्म टिकट मिलेगा ?’’ मैंने कहा
‘ जी मै समझा नहीं ? ‘’ उसने न समझने का अभिनय किया .
मैंने कहा ‘ दुनिया की आबादी पहले ही अधिक है ,

उसमे से यदि मरनेवाले भी जीवित होने लगेंगे तो भाई रहेंगे कहा ? खायेंगे क्या ?
उसने दुसरे बंदे की तरफ देखा , दूसरा बंदा मुस्कुराया ,

( मै समझ गया अब यह आगे आनेवाला है )
‘’ देखिये सर ,हर कोई जीवित नहीं होगा ,सीर्फ वो ही जीवित होंगे और अपनी कब्रों में से निकलेंगे जो भले होंगे ‘ 

कहते हुए उसने एक नीली जिल्द चढ़ी पॉकेट साईज पुस्तक निकाली ,और तुरंत एक पृष्ठ खोला ,
और कुछ पंक्तिया दिखाने लगा पृष्ठ के उपरी कोने पर कुछ ‘युहन्ना या यहोबा ‘ लिखा था .
‘देखिये सर ,हम आपको उदाहरण भी दिखायेंगे ,ऐसे आठ उदाहरण है जहा परमेश्वर ने लोगो को जीवित किया ‘
‘’भाई लेकिन मेरे ख्याल से जो भी परमेश्वर की शरण में गया उसके पाप क्षमा हो जायेंगे और वह 

भी परमेश्वर की सानिध्य का हकदार होगा ,सही है न ?’’ मैंने पुछा ,
‘’ जी बिलकुल सही समझे आप ‘’
‘यानी इसका मतलब तो यह हुवा संसार में मौजूद सारे व्यक्ति मरेंगे तो भी वे भले ही कहलायेंगे ? 

यानी के जो भी मरेगा वो दोबारा आएगा ? इसका मतलब दुनिया में पैदा होनेवाले पैदा होते रहेंगे और मरनेवाले आते रहेंगी ! 
धीरे धीरे संसाधन खत्म होंगे ,जलवायु दूषित होगी ,अन्न की कमी होगी ,फिर दुबारा ....’’
नहीं सर ...( उसने मेरी बात बिच में काटी )
‘देवेन ,मेरा नाम देवेन पाण्डेय है , और मैंने जिस पुस्तक को पढ़ा है या कभी देखा है ,उतने में इतना समझा है ,

के आप मरने के बाद जीने की तमन्ना लिए फिरोगो तो आपका जीवन भी मृत्यु सदृश्य हो जायेगा ,
कर्म से मोक्ष को प्राप्ति होगी ,न की किसी पुस्तक को रटने से , मनुष्य नहीं मरता देह मरती है ,
आत्मा तो आदि है अनंत है फिर चोला बदलेगी किसी रूप में ,तो क्यों इस आत्मा को देह रूपी बंधन में बांधे रखे,
 हमेशा मर के जीने की आस लिए ? मेरे जो मुंह में आया मै बकता गया .
कुछ देर तक दोनों चुप रहे ,मुस्कान गायब हुयी ,लेकिन दोबारा मुस्कान चेहरे पर लाते हुए कहा ,
‘’सर यह विषय एक मिनट में समझने का नहीं है ,यह वृहद विषय है !

 हम इसके लिए दुबारा आएंगे तब विस्तार से चर्चा करेंगे और आपकी शंकाओ को दूर करेंगे ‘’
‘आपके पहले भी कुछ महीने पहले दो लोग आये थे , उन्होंने दो पुस्तके दी थी ‘नया नियम ,और पता नहीं क्या ,’’ मैंने कहा .
‘’ तो आपने उन्हें पढ़ा ? ‘’ उन्होंने चहकते हुए कहा .
‘’ नहीं शुरुवात की और बोर हो गया ,रखी है वैसे ही, आपको चाहिए तो ले जाओ वापस ,

वरना पुस्तको को कही पड़े रहने देना ,धुल खाने देना मुझे अच्छा नहीं लगता ! ‘’ मैंने कहा तो उन्होंने कहा .
‘परमेश्वर आपकी सहायता करे ‘’
‘’आपकी भी ‘’ मैंने कहा और दरवाजा बंद कर दिया .

धर्म न हुआ ससुरा फ्लिपकार्ट बिग बैंग सेल हो गया

शनिवार, 21 मार्च 2015

फिल्म एक नजर में : दम लगा के हईशा .

फिल्म के पहले ट्रेलर ने ही उत्सुकता जगा दी थी , 
जिस तरह से एक साधारण परिवार और बेमेल विवाह से उभरे संबंध पर 
आधारित एक मनोरंजक कहानी का तानाबाना बुना गया वह बेहद मनोरंजक है ,
और कुछ सीख भी देता है ,जहा आजकल ‘टाईमपास’ टाईप लव स्टोरीज का चलन है, 
जिसमे नायक नायिका मामूली सी बात पर ‘ब्रेक अप ‘ 
जैसे पश्चिमी चोंचलों को अपना कर रिश्तो का मजाक बनाकर उन्हें तोड़ देते है
 जैसी फिल्मो का बोलबाला है, और हर दूसरी फिल्म झूठी आजादी और बोल्डनेस की
 दुहाई सी देती प्रतीत होती है और रिश्तो में फैंटसी को ही तरजीह देती है ,
ऐसे समय में रिश्तो के अनकहे मूल्यों को समझाती यह फिल्म बेहद सराहनीय प्रयास है .
कहानी एकदम सरल है और उतना ही सरल है इसका फिल्मांकन ,लेकिन दिल को छू जाता है !
कहानी : हरिद्वार में रहनेवाला दसवी फेल नवयुवक ‘प्रेम प्रकाश तिवारी ‘ ( आयुष्मान खुराणा )
अपने पिता की कैसेट की दूकान में अपने मनपसंद गायक ‘कुमार सानु ‘ 
के गीतों के सानिध्य में अपना जीवन गुजार रहा है , प्रेम अंग्रेजी में कमजोर है 
( किन्तु हिंदी गजब है ) जिस कारण वह दसवी पास नहीं कर पाया ,
ज़माना बदल रहा है और कैसेट के ट्रेंड लुप्त होने की कगार पर है ,घर की माली हालत भी खस्ता है ! 
इसलिए प्रेम के पिताजी ( संजय मिश्र ) प्रेम का विवाह अपने मित्र की बेटी ‘संध्या ‘
 ( भूमि पेडणेकर ) के साथ करवा देते है , उनका मानना है के घर में पढीलिखी नौकरीशुदा बहु 
आयेगी तो घर के हालात सुधरेंगे !
प्रेम को यह शादी नापसंद है क्योकि संध्या हद से ज्यादा मोटी है , 
सपनीले गीतों में खोये रहनेवाले प्रेम के लिए विवाह किसी सदमे से कम नहीं है ! 
किन्तु वो घरवालो को मना नहीं कर सकता ! 
( एक तो संस्कार ,दूजे बाबूजी के जूते के डर )
 संध्या प्रेम को पसंद करती है लेकिन अपने प्रेम की कडवाहट का उसे अहसास नहीं .
विवाह के पश्चात प्रेम को संध्या के साथ रहने में शर्मिंदगी महसूस होती है ,
 वह उसे अपने जानपहचान ,एवं मित्रो के सामने लाने में लज्जा अनुभव करता है ,
 और यह बात संध्या समझ जाती है ! एक तो मोटी पत्नी ऊपर से ज्यादा पढ़ी लिखी और काबिल ,
यह देखकर प्रेम कुंठाग्रस्त रहने लगता है ,जिसकी वजह से घर में ए दिन तकरार होने लगती है ,
और जल्द ही रिश्तो की कडवाहट सबके सामने आ जाती है !
 संध्या अपने रिश्ते को बचाने का प्रयास करती है किन्तु प्रेम को इस रिश्ते का बोझ नहीं संभालना 
,एक बार नशे में अपनी पत्नी को मित्रो के सामने जलील करने के फलस्वरूप संध्या प्रेम को
 तमाचा जड देती है और इस रिश्ते के अंत की नीव पड़ जाती है .
फिर तलाक की नौबत आ जाती है ,किन्तु फैमिली कोर्ट द्वारा तलाक के पहले विवाहित दम्पति को 
साथ में छह महीने गुजारने को कहती है उसी के बाद तलक होगा ,
अब चूँकि तलाक की नौबत आ चुकी है ,इसलिए दोनों एक कमरे में रहते हुए भी अजनबी की तरह है ! 
लेकिन इस कदम से खुश होने के बजे प्रेम दिन बी दिन कुंठित होते जाता है , 
संध्या इन छह महीनो को पति पत्नी की तरह नहीं अपितु मित्र की तरह रहने को कहती है 
ताकि रिश्ते को खत्म करने में आसानी हो .
फिर क्या होता है ,यह रिश्ता किस करवट मुड़ता है ,यही बाकी कहानी है .
फिल्म के सभी कलाकार चाहे वे प्रेम की मित्र हो ,बुआ ,माँ ,पिताजी हो या उनके संघप्रमुख 
‘शाखा बाबु ‘ हो ( उनका असल नाम पता ही नहीं चला ) सभी ने सहज अभिनय किया है ,
मानो वे फिल्म के कलाकार न होकर रोजमर्रा के चरित्र हो जिन्हें हम आसपास देखते है ! 
संजय मिश्र अपनी भूमिका के साथ पूरी तरह से रच बस गए है ,एक टिपिकल उत्तर 
भारतीय बाप की भूमिका में वे असरदार है, जो बेटे से प्यार भले ही न दिखाए 
लेकिन चप्पल लेकर जरुर दौड़ा दे ,
भूमि पेडणेकर ने वाकई  कमाल का अभिनय किया है , 
लगा ही नहीं के कही आप किसी अभिनेत्री को देख रहे है ,
एकदम सहज एवं जिवंत अभिनय , पति को भले ही उससे प्यार हो या न हो किन्तु
 दर्शको को अवश्य हो जाता है ! आयुष्मान ने प्रेम प्रकाश ...क्षमा कीजियेगा प्रेम ‘प्रेम प्रकास ‘ 
की भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है ,चाहे वो उनकी हिंदी हो या देहाती टोन ,
पूरी तरह से हरिद्वार मय युवक ,अपनी जिन्दगी से हारा हुवा और दोस्तों की सफलता से कुढ़ता हुवा ! 
अपनी पत्नी से सकुचाता हुवा ,काफी अलग अलग शेड लिए हुए है यह किरदार जिसपर कभी हंसी आती है ,
कभी गुस्सा आता है ,तो कभी तरस आता है !
फिल्म का संगीत भी फिल्म के माहौल के हिसाब से बढ़िया है और याद रह्ने लायक है ,
अनु मलिक एवं कुमार सानु ने फिर समा बांधा है ! फिल्म की कहानी नब्बे के दशक की है
 इसलिए संगीत भी नब्बे की दशक का माहौल लिए हुए है ,’तू मेरी है प्रेम की भाषा ,दर्द करारा ‘ 
आदि गीत कुमार सानु की आवाज में है ,तो ‘मोह मोह के धागे ‘ एक रूमानी अहसास लिये हुये है 
जो दो अलग मेल फिमेल वर्जन में है और दोनों ही बेहतरीन है ,
कुल मिलाकर फिल्म कहानी ,निर्देशन ,फिल्मांकन में तो बढ़िया है ही किन्तु संगीत ने भी 
कहानी को सुंदर बना दिया है ,पूरी तरह से एक मनोरंजक और साफसुथरी फिल्म 
( अपवाद के लिए एकाध दृश्य छोड़कर ),फिल्म में ऐसा कुछ नहीं जिसके लिए रेटिंग कम दे सकू ,
साफ़ कहू तो ऐसी कोई कमी नहीं दिखी जिसका उल्लेख कर सकू
पांच स्टार

देवेन पाण्डेय 

रविवार, 15 मार्च 2015

गहन खामोशी

'बिटिया ' सयानी होने लगी थी , अब थोड़ी सी फ़िक्र होने लगी थी !
बेटा भी तो बड़ा था दो साल ,किन्तु  बिटिया की चिंता थोड़ी अधिक थी !
ममता या प्रेम तो था ही किन्तु एक डर भी था जिससे हर बिटिया वाले का सामना
 यदा कदा होता ही रहता ही !
पड़ोस की सहेलिया सलाह देने लगी 'बिटिया बड़ी  हो गई है ,
ध्यान दिया करो थोडा,  कोई उंच नीच न होने पाए '
उसी दिन बिटिया को समझाया '' अब तुझे थोड़ी सावधानी बरतनी होगी ,
घर आने के लिए देरी मत किया कर ''
बिटिया ने पुछा 'क्यों माँ ?'
अब क्या कहू ?
'' अब बाहर जमाना ठीक नहीं रहा , लडको से खतरा है ,परेशान करेंगे  ''
कैसे बैसे संक्षिप्त में समझाने का प्रयास किया .
उसने तुरंत बड़े भाई का नाम लिया .
'फिर भैया को भी बोलिए न जल्दी आने के लिए ,प्रमिला को परेशान करता है हमेशा !
 क्या उससे लडकियों को खतरा नहीं ? ''

गहन खामोशी छा गई 

रविवार, 1 मार्च 2015

‘पचास ठो परछाई आफ 'ग्रे 'भूरा ,नीला ,काला ( जो भी हो )

आजकल एक फिल्म की बड़ी चर्चा सुनी है ,
जो किसी कामुक उपन्यास को आधार बना कर लिखी गयी है !
( कहा से देखि यह मत पूछिए ,लिंक याद नहीं ,किसी भी मूवी साईट पर मिल जाएगी ,
हा इंग्लिश सबटाईटलस नहीं मिल पायेंगे फिलहाल और चाईनीज सबस अटैच रहेंगे )
 वैसे भी ऐसी फिल्म कोई डायलोग सुनने के लिए थोड़े ही देखता है ( हीहीही ) ! 
फिल्म का नाम तो समझ ही गए होंगे ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ़ ग्रे ‘ !
इसमें एक अरबपति है ,एक एक कॉलेज इन्टर्न है ,उनकी लव स्टोरी है ( बाबाजी का  #@ ) ! 
होता यु है के हिरोइन जिसका नाम कुछ अजीब सा है याद नहीं रहता ! 
कुछ रुसी टोन लिए हुए ,लास्ट के कुछ अक्षर ही याद है ‘स्टिसिया ‘ जैसा कुछ , 
तो ये एक कॉलेज इन्टर्न है और इसी सिलसिले में एक अरबपति बिजनेसमैन के इंटरव्यू के लिए आती है !
  ( उसका नाम भी याद नहीं ,जब हिरोइन का नाम नहीं याद तो हीरो ( खलनायक )
 का नाम याद रखने की उम्मीद बेमानी है हीहीही )  तो उस उद्योगपति को यह ‘स्टिसिया ‘ 
या जो भी है कुछ ज्यादा पसंद आ जाती है ,और स्टिसिया भी उसे पसंद करने लगती है ,
 खलनायक या हीरो एक मतलबी इंसान है कामुक है और सैडिस्ट है  ( सैडिस्ट बड़ी कुत्ती चीज होते है , 
सात खून माफ़ वाला इरफ़ान खान याद कर लीजिये ) और वह स्टिसिया से एक
 कांट्रेक्ट साईंन करवा लेता है जिसमे वह उससे प्यार में बाधा उत्पन्न नहीं करेगी 
और जैसे चाहे वैसे प्यार करने देगी !
अब हिरोइन को का मालुम ई कैसन प्यार करी ? तो रेडी हो जाती है ,
खलनायक या नायक बचपन में अपनी किसी महिला रिश्तेदार द्वारा सताया हुवा है है
 इसलिए वह ही सैडिस्ट है ! तो शुरू होता है एक अभूतपूर्व अविस्मरनीय प्रेम के
 शाश्वत अनुभुतिवाला सिलसिला ,जो शुरू शुरू में तो ‘स्टिसिया ‘ को अच्छा लगता है
 लेकिन बाद में पता चलता है के ‘’ ई तुमसे न हो पायेगा ‘’ और नायक खलनायक
 ( अब इग्नोर करूँगा इस शब्द को ,बड़ी तकलीफ दे रहा है )
 नित नई नयी प्रक्रियाये आजमाता है ! 
प्यार में उपयोगी अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित कमरे में इतनी वैरायटी भरी पड़ी है के अमेरिका की
 डिफेन्स मिनिस्ट्री भी पानी भरे ! तो आखिरकार नायिका या जो भी है ,
उसके बर्दाश्त की हद पार हो जाती है और वह ब्रेकअप करने का फैसला लेती है
 ( हर और से ‘ब्रेक ‘ होने के बाद )
और कांट्रेक्ट की ऐसी तैसी करते हुए सब खत्म कर लेती है , 
( ऐसा कान्ट्रेक्ट बनता कहा है ? कौन सी सरकार है भाई ? )

इसी के साथ फिलिम या ‘ब्लू ‘ वाली जो भी कहो खत्म हो जाती है ! 
बस फिल्म खत्म होते समय फिल्म के नायक या खलनायक को देख कर ‘मर्डर ‘ का ‘इमरान हाश्मी ‘ 
याद आ जाता है ,चलो चलो भट्ट घराने के लिए एक और इंस्पिरेशन मिल गयी अगले फिल्म के लिए ! 
तैयार रहिएगा बोलीवूड के थके वर्जन के लिए ( वैसे ओरिजनल कौन सी कम थकी हुई है )

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