सोमवार, 6 अक्तूबर 2014

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फिल्म एक नजर में :हैदर

निर्देशक :विशाल भारद्वाज
कलाकार:शाहिद कपूर,तब्बू,के के मेनन,श्रद्धा कपूर।

विशाल भारद्वाजका शेक्षपियर प्रेम जगजाहिर है,उनकी अधिकतर फिल्मे उन्ही के
 सुप्रसिद्ध नाटको पर आधारित है
जिसे उन्होंने भारतीय माहौल के हिसाब से ढालने में महारत हासिल है चाहेऑथेलोपर आधारितओमकाराहो यामैकबेथपर आधारितमकबूल
इसी कड़ी में अगली फिल्म हैहैमलेटपर आधारितहैदर
फिल्म को समीक्षकों एवं दर्शको की बहुत सराहना मिली है, “हैदरकहानी है एक बेटे की
जो अपने बाप के कातिल और माँ के प्यार की तलाश में है
 ( जी हा गलतफहमी दूर कर लीजिये के फिल्म कश्मीर की किसी समस्या पर आधारित है )
फिल्म में ऐसी किसी समस्या को उजागर करने की कोशिश नहीं की गई है
जो भी है वह कहानी में मात्र छौंक लगाने भर के लिए है
कहानी की शुरुवात होती है एक कश्मीरी डोक्टरमीर साहबके द्वारा एक दहशतगर्द के उपचार से ।उन्होंने एक आतंकवादी को अपने घर में पनाह दी रखी है इलाज के लिए,उनकी पत्नीगजाला
(तब्बू) को यह पसंद नहीं
मिलिट्री के कॉम्बिंग ऑपरेशन में मीर को अरेस्ट कर लिया जाता है
 (यहाँ सहनुभूति जबरदस्ती की दर्शायी जाती है यह उम्मीद रखके के आप आतंकवादी की मदद करो बदले में आप सुरक्षित रहो )
 खैर ,इसके बाद मीर गायब हो जाते है और उनका बेटाहैदर”(शाहिद कपूर)
अपने पिता की खोजबीन के लिए कश्मीर आता है,जहा उसके द्वारा अपने रहने का ठिकानाअनंतनागकोइस्लामाबादकहने भर से मिलिट्री की पूछताछ से गुजरना पडा
( यहाँ भी जबरदस्ती की सहानुभूति वाला किस्सा
आप कश्मीर जैसे संवेदनशील जगह पर यदि खुद कोइस्लामाबादसे सम्बंधित बताएँगे
 तो पूछताछ तो होगी ही ) अपने घर आने के बाद हैदर को अपनी माँ और चाचाखुर्रम”(के.के.मेनन) के संबंध के बारे में पता चलता है,जिससे वह मानसिक तनाव से घिर जाता है,तब उसका साथ देती हैअर्शिया” (श्रद्धा कपूर)
खुर्रम अपने और गजाला के रिश्ते के बारे में हैदर से बात करना चाहता है लेकिन हैदर को यह मंजूर नहीं इसी समय हैदररूहगुजर”( इरफ़ान खान) के सम्पर्क में आता है जो एक अतिवादी संगठन स् जुडा है उससे मिलकर हैदर को पिता की मृत्यु और उसमे खुर्रम एवं गजाला की निशानदेही का पता चलता है और हैदर अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है
इसी के साथ फिल्म एक खूरेंजी मोड़ लेती है यह थी कहानी
सर्वप्रथम एक ही बात कहूँगा के इस फिल्म में शाहिद ने अपने अब तक के फ़िल्मी कैरियर का बेस्ट परफोर्मेंस दिया है,शाहिद का किरदार वैरायटी लिए हुए है,हर घटना और जीवन में आये उतार चढ़ाव् से पल पल बदलते हैदर के चरित्र में उन्होंने जान फूंक दी है
उनके अभिनय की बेहतरीन झलक फिल्म के क्लाइमेक्स में और अधिक निखरकर सामने आती है अभिनय में जहा शाहिद सबसे आगे है तो फिल्म के दुसरे कलाकार भी कोई कसर नहीं छोड़ते
 हैदर की माँ की भूमिका में तब्बू ने बहुत ही असरदार अभिनय किया है
 पति की मौत,दूसरी शादी,और बेटे की तकलीफ को झेलती औरत की मनोदशा
आपको झकझोर के रख देती है के के ने भी खुर्रम की भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है और
 इसमें उनके अभिनय को एक अलग रूप में भी देखने का अवसर मिलता है
श्रद्धा कपूर की भूमिका छोटी है किन्तु फिल्म में दर्शाए भयंकर तनाव भरे माहौल को कुछ
 पल के लिए हल्का जरुर करती है तो इरफ़ान खान को ज्यादा विस्तार नहीं मिला
 विशाल भारद्वाज की फिल्मे हमेशा से बहुत डार्क रही है लेकिन हैदर शायद सबसे आगे है
इस मामले में ।कश्मीर के मनभावन लोकेशन भी एक असहय तनाव से भरे लगते है जो मन को भाने के बजाय अत्यधिक तनाव और विषाद में डुबो देते है
बहुत ही बढ़िया निर्देशन है कही भी पकड़ धीमी नहीं हुयी है,फिल्म देखते समय दर्शक भी खुद को अवसाद में घिरा पाता है,यह है इस फिल्म के स्याहपन का आलम
सिरियस फिल्म पसंद करनेवालों को फिल्म अवश्य पसंद आयेगी
फिल्म का ट्रीटमेंट ऐसा है के किसी को बहुत ज्यादा पसंद सकती है तो किसी के लिए तनाव एवं उकताहट का सबब भी बन सकती है
कुल मिला कर तनाव और विषाद के धागों से बुन अवसाद का एक मजबूत जाल हैहैदरगीत संगीत में इसमें और वृद्धि ही करते है ।वैसे विशाल भारद्वाज को फिल्म की थीम में होलीवुड सीरिजबोर्न ट्रायोलोजीकी धुन इस्तेमाल करने के बजाय कुछ मौलिक इस्तेमाल करनी चाहिए थि।

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