सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

फिल्म एक नजर में : हैप्पी न्यु ईयर

फिल्म एक नजर में : हैप्पी न्यु ईयर 

फिल्म ने रिलिज के पहले दिन ही कई कीर्तिमान स्थापित कर दिए । 
शाहरुख़ ,फराह ने फिल्म के प्रमोशन में पैसा पानी की तरह बहाया ,
सुनने में तो यहाँ तक आया के इस फिल्म की रिलीज के लिए मैदान साफ़ रखने खातिर अपने प्रभाव से
किसी और फिल्म को इस हफ्ते रिलीज ही नहीं होने दिया गया 
,जिसमे कई होलीवुड फिल्म्स भी शामिल थी ।
वजह साफ़ थी ,इस फिल्म के लिए दिवाली की चार दिन की छुट्टियो को कैश करना ।
और वैसे भी दर्शक त्योहारी सीजन में दिमाग पर जोर डालनेवाली फिल्मो से दूर ही रहता है ,
उसे सिर्फ पैसा वसूल मनोरंजन चाहिए,जिसका पूरा फायदा "हैप्पी न्यु ईयर" को मिला .
कहानी : चार्ली (शाहरुख़ खान ) एक जिन्दगी से हारा हुवा व्यक्ति है,फ़िल्मी भाषा में कहे तो "लूजर" है
( पता नहीं बोलीवूड में हर फिल्म में नायक "लूजर" क्यों होता जा रहा है ) "चरण ग्रोवर"
( जैकी श्रोफ़ ) की वजह से चार्ली अपने पिता और सम्मान को खो चूका है। 
उसकी जिन्दगी का एक ही मकसद है ,ग्रोवर को बर्बाद करके अपना इंतकाम लेना
( नहीं नहीं उबासी मत लीजिये ) चार्ली दिन भर सिर्फ प्लान बना रहा है उसके पास यही एक काम बचा है ,
खाली समय में वह अपनी पुरानी हिट फिल्मो के डायलोग मारते रहता है । 
अब चार्ली चाहता है के वह ग्रोवर की सिक्योरिटी से तीन सौ करोड़ डालर के हीरे
चुराकर उससे बदला लेकर अपने जीवन का ध्येय पूरा करे,और यह काम वह अकेला नहीं कर सकता
( वैसे फराह चाहे तो कर सकता है )
वह एक प्लान बनाता है जिसके तहत वह ग्रोवर द्वारा आयोजित वर्ल्ड डांस कंपटिशन में हिस्सा लेकर उसकी
आँखों में धुल झौंक कर हीरे उडाना चाहता है ,उसकी टीम में है
बार डांसर मोहिनी जोशी (दीपिका पादुकोण), चॉल में रहने वाला अव्वल शराबी नंदू भिड़े
(अभिषेक बच्चन), चार्ली के पिता का ख़ास दोस्त टैमी (बमन ईरानी), भूतपूर्व सैनिक जगमोहन (सोनू सूद) और 
हैकिंग में माहिर रोहन सिंह(विवान शाह) मोहिनी का काम इन सबको डांस सिखाना है
ताकि वे इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले सके । चार्ली उसे अपने असल मकसद से अनजान रखता है,
और अपनी चालबाजियो और प्लान की बदौलत चार्ली एंड टीम फाइनल तक पहुँच भी जाती है।
फिर शुरू होता है उनका असली प्लान जिसमे वो कामयाब होते है या नहीं यह अगला भाग है ।
फिल्म में कॉमेडी है जो हंसने पर मजबूर तो करती है लेकिन इमोशन नहीं है ,कहानी को कई जगह बेवजह खिंचा गया है 
खासतौर से शुरुवाती एक घंटे को,जिसे एडिटिंग से और कम किया जा सकता था । 
डांस के आड़ में चोरी कुछ बहुत ज्यादा लंबी और बचकानी कोशिश प्रतीत होती है, फिल्म हल्की फुल्की है,
त्योहारी सीजन है तो अब मिठाई की जगह कागज के चमकदार ठोंगे में सजाई गई चाकलेट की कतरनों की ज्यादा मांग है
जिसमे मूल भावना और क्वालिटी की उम्मीद बेमानी है । 
यही हाल इस फिल्म का भी है,इसकी तुलना उसी ठोंगे वाली चाकलेट से की जा सकती है। 
मनोरंजन जरुर है लेकिन कुछ नयापन नहीं है,शाहरुख के आठ पैक्स से कहानी में कुछ नयापन आया ऐसा नहीं लगा, 
हा चेहरे पर झलकते बुढ़ापे के बावजूद उनकी एनर्जी तारीफ़ की हकदार जरुर है,दीपिका का रोल भी सही था 
लेकिन उन्हें जबरदस्ती मराठी दिखाने के लिए उस एक्सेंट में बोलते दिखाना गैरजरुरी लगा 
,शायद चेन्नई एक्सप्रेस का फंडा आजमाने की कोशिश । इसके बावजूद दीपिका का अभिनय अच्छा है 
( वैसे भी फिल्म नायक प्रधान हो तो भूमिका अच्छी हो या न हो इससे कोई फर्क नही पड़ता ) 
अभिषेक कॉमेडी के नाम पर उल जलूल हरकते करते नजर आये है इसके बावजूद वे हंसाने में कामयाब रहे है
,बोमन के बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर सकते क्योकि उनका काम सबको पता है,स्वाभाविक अभिनय है
जो उनकी पहचान है,सोनू सूद बड़ी तेजी से कॉमेडी किरदारों में उभर रहे है 
जो के अच्छा है या बुरा पता नहीं ,उनके हिस्से में कुछ बहुत ज्यादा लाउड दृश्य आये है जो फिल्म के मिजाज के हिसाब से सही है
विवान शाह को लैपटॉप पकड़ा दिया गया है तो वे अभिनय कम दिखा पाए है 
और जैकी श्रोफ़ दोहराव वाली भूमिका में है,कुछ नया या तो कर नहीं पा रहे या मौका नहीं मिल पा रहा ।
फिल्म डांस और डकैती वाले कांसेप्ट पर है जिसमे डांस और चोरी की लजीज बिरयानी बनाने के चक्कर में खिचड़ी बन गई है
जो लजीज तो नहीं है लेकिन हर किसी के मतलब की चीज जरुर है।
वर्ल्ड डांस जैसा कांसेप्ट है लेकिन एक भी डांस ऐसा नहीं जो लोकल रियलिटी शो के लेवल का भी हो ,
कहानी के हिसाब से बेहतर डांस मूव्स की उम्मीद रहती है लेकिन बोलीवूड के प्राचीन मसालों और नुस्खो के
चलते यह एंगल निराश करता है,फिल्म अंतिम क्षणों में दिलचस्प हो जाती है जो के सुखद है।
फिल्म में विशाल और अनुराग कश्यप भी है जो मेहमान भूमिका के नाम पर फूहड़ अभिनय करते नजर आते है
( विशाल का तो समझ में आता है,लेकिन अनुराग की कौन सी मज़बूरी थी ?)
संगीत पक्ष में सिर्फ "मनवा लागे" ही एकमात्र गीत है जो मधुर है और याद रह जाता है,बाकी सब तो शोर शराबा है।
"इण्डिया वाले" में शोरशराबा और कर्कश संगीत ही है जो याद ही नहीं रहता (जो अच्छी बात है )
चमक दमक और भव्य सेट की आड़ में एक कमजोर कहानी को प्रस्तुत किया गया है जो हिस्सों में अच्छी लगती है
कुल मिलाकर यदि आपको मसालों से परहेज नहीं और बिना दिमाग पर जोर डाले तर्कों को दरकिनार करके मनोरंजन पसंद आता है
तो फिल्म देख सकते है।
दो स्टार
देवेन पाण्डेय

बुधवार, 8 अक्तूबर 2014

टीवी सीरीज:सीजन वन,एपिसोड वन /एपिसोड 2

टीवी सीरीज।
गौथम : सीजन वन,एपिसोड वन ।
अवधि:46 मिनट ।( इंग्लिश)
चैनल : FOX
DC कॉमिक्स यूनिवर्स के मशहूर पात्र "बैटमैन" उर्फ़ "ब्रूस वेयन" के खलनायक एवं 

दोस्तों के ओरिजिन में झाँकने का प्रयास करती इस सीरिज का बड़ी बेसब्री से इन्तेजार किया जा रहा था ।
 गौरतलब है के यह सीरिज "ब्रूस" के बैट मैन बनने के पहले की कहानी है 
और इस सीरिज का मुख्य किरदार है डिटेक्टिव "जेम्स गोर्डन " । 
यह सीरिज "गाथम" शहर के बिगड़ते हालातो पर केन्द्रित है जिन्होंने एक महानायक के
 निर्माण में योगदान दिया साथ ही साथ महाखलनायको की भी उत्पत्ति इन्ही घटनाओ की देन है ।
कहानी शुरू होती है एक लडकी से जो छोटी मोटी चोरिया करती है ,

वह एक हत्या का प्रत्यक्षदर्शी बनती है और वह हत्या है "गाथम" के मशहूर उद्योगपति 'थोमस वेयन' 
और उनकी पत्नी "मार्था वेयन" की । अपने माता पिता को अपनों आँखों के सामने मरता देख
 "ब्रूस' सहमा हुवा है ,केस एक हाईप्रोफाइल हत्या का है इसलिए पुलिस पर खासा दबाव है।
 जेम्स के हाथो यह केस आगे बढती है और वह ब्रूस को वादा करता है के उसके माता पिता का
 कातिल जल्द ही गिरफ्त में होगा । सुरागो के जरिये जेम्स कातिल तक पहुँचता है 
लेकिन मुठभेड़ में कातिल मारा जाता है ,और केस क्लोज कर दिया जाता है। 
लेकिन तब जेम्स को पता चलता है के मारा गया व्यक्ति कातिल नहीं है बल्कि उसे प्लांट किया गया है
 ताकि असल कातिलो की शिनाख्त न हो सके ,अब जेम्स इस केस पर फिर से तफ्तीश शुरू करता है ।
 सभी सूत्र शहर की प्रभावशाली महिला "फिश मूनी" की तरफ जाते है ,जो हर गैरकानूनी काम करती है । 
फिश के गिरोह का ही विश्वास पात्र "ओस्व्ल्ड" फिश से नाखुश है और वह उसे धोखा देने की कोशिश करता है जिसके फलस्वरूप जेम्स फिश तक पहुँच जाता है । 
लेकिन जेम्स फिश के चंगुल में बुरी तरह से फंस जाता है ,
लेकिन उसकी जान बच जाती है डॉन "फाल्कोन " के हस्तक्षेप से ।
 और वह उसे इन सबसे दूर रहने की सलाह देता है । जेम्स की जान के बदले फाल्कन्स द्वारा उसक हाथो
 फिश के गिरोह के गद्दार "ओस्व्ल्ड" को मारने को कहा जाता है ।
तब ओस्व्ल्ड जेम्स को बताता है के जल्द ही शहर में खून की नदिया बहने वाली है खूरेंजी टकरावो 

से गाथम दहल उठेगा । जेम्स उसपर तरस खाकर उसे दोबारा गाथम में प्रवेश न 
करने की चेतावनी देकर छोड़ देता है ।
यह है पहले एपिसोड की कहानी । जिसमे 'ओस्व्ल्ड' उर्फ़ 'पेंग्विन' । 

फिश मूनी को विस्तार दिया गया है ,तो वही पहले ही एपिसोड में 'रिडलर,पोइजन आईवी, 
की भी झलक मिलती है और शायद 'जोकर'का भी । यह "शायद"क्यों कहा यह एपिसोड देखने
 के बाद ही पता चलेगा ।
कुल मिलाकर पहला एपिसोड शुरुवात के लिहाज से बढ़िया रहा ।




एपिसोड 2
भाषा:इंग्लिश
अवधि:46मिनट 
चैनल :DW
शहर से बढ़ते जुर्म को खत्म करने के लिए डिटेक्टिव जिम गोर्डन अपने साथी हार्वी के साथ प्रतिबद्ध है ।

 शहर में अनाथ बच्चो के अपहरन की घटनाये बढ़ रही है ,
इसी क्रम में कुछ बच्चो का अपहरण होता है जिसमे से अनाथ "कैट"भाग निकलती है। 
पुलिस महकमा इन घटनाओ के प्रति उदासीन है क्योकि अनाथ बच्चो का अपहरण 
किसी के लिए कोई मायने नहीं रखता ।लेकिन जिम को चुप रहना बर्दाश्त नहीं वह 
जांच के लिए केस अपने हाथ में लेता है ।
वही दूसरी और 'डॉन फाल्कन' अपनी सत्ता और जुर्म की दुनिया की बादशाहत को चुनौती न 

देने की सलाह 'फिश मूनी "को देता है जिससे वह तिलमिलाई हुयी है । 
तो वही फिश के गैंग में मरा हुवा समझा जानेवाला "ओस्व्ल्ड"उर्फ़"पेंग्विन" 
अपने आप को मजबूत बना रहा है और जुर्म की दुनिया में दुबारा आने को बेताब है 
और उसका सनकपन भी बढ़ता जा रहा है ।
बच्चो के अपहरणकर्ताओ से मुठभेड़ में कैट डिटेक्टिव जिम की मदद से बच जाती है । 

जिम इन अनाथ बच्चो के कुछ करने की मंशा से "ब्रूस वेयन"के पास जाता है और ब्रूस मदद 
करने का वचन देता है ।
कैट जिम से मिलती है और उससे सौदा करती है के उसे चाइल्ड होम से छुड़ाने के बदले वह

"थोमस और मार्था वेयन" की हत्या का सच बताने को तैयार है जिससे जिम चौंक जाता है ।
कहानी धीमे धीमे गति पकड़ रही है और घटनाये उलझती हुयी एक सूत्र की और बढ़ रही है । 

बदलती परिस्थतिया ,गाथम में अपराध की बादशाहत की लड़ाई में दो गुटों में बढ़ते टकराव के रूप में
 एक भयंकर खतरा मंडरा रहा है । और इन सबके बिच है "जेम्स "उर्फ़ 'जिम गोर्डन'

सोमवार, 6 अक्तूबर 2014

फिल्म एक नजर में :हैदर

निर्देशक :विशाल भारद्वाज
कलाकार:शाहिद कपूर,तब्बू,के के मेनन,श्रद्धा कपूर।

विशाल भारद्वाजका शेक्षपियर प्रेम जगजाहिर है,उनकी अधिकतर फिल्मे उन्ही के
 सुप्रसिद्ध नाटको पर आधारित है
जिसे उन्होंने भारतीय माहौल के हिसाब से ढालने में महारत हासिल है चाहेऑथेलोपर आधारितओमकाराहो यामैकबेथपर आधारितमकबूल
इसी कड़ी में अगली फिल्म हैहैमलेटपर आधारितहैदर
फिल्म को समीक्षकों एवं दर्शको की बहुत सराहना मिली है, “हैदरकहानी है एक बेटे की
जो अपने बाप के कातिल और माँ के प्यार की तलाश में है
 ( जी हा गलतफहमी दूर कर लीजिये के फिल्म कश्मीर की किसी समस्या पर आधारित है )
फिल्म में ऐसी किसी समस्या को उजागर करने की कोशिश नहीं की गई है
जो भी है वह कहानी में मात्र छौंक लगाने भर के लिए है
कहानी की शुरुवात होती है एक कश्मीरी डोक्टरमीर साहबके द्वारा एक दहशतगर्द के उपचार से ।उन्होंने एक आतंकवादी को अपने घर में पनाह दी रखी है इलाज के लिए,उनकी पत्नीगजाला
(तब्बू) को यह पसंद नहीं
मिलिट्री के कॉम्बिंग ऑपरेशन में मीर को अरेस्ट कर लिया जाता है
 (यहाँ सहनुभूति जबरदस्ती की दर्शायी जाती है यह उम्मीद रखके के आप आतंकवादी की मदद करो बदले में आप सुरक्षित रहो )
 खैर ,इसके बाद मीर गायब हो जाते है और उनका बेटाहैदर”(शाहिद कपूर)
अपने पिता की खोजबीन के लिए कश्मीर आता है,जहा उसके द्वारा अपने रहने का ठिकानाअनंतनागकोइस्लामाबादकहने भर से मिलिट्री की पूछताछ से गुजरना पडा
( यहाँ भी जबरदस्ती की सहानुभूति वाला किस्सा
आप कश्मीर जैसे संवेदनशील जगह पर यदि खुद कोइस्लामाबादसे सम्बंधित बताएँगे
 तो पूछताछ तो होगी ही ) अपने घर आने के बाद हैदर को अपनी माँ और चाचाखुर्रम”(के.के.मेनन) के संबंध के बारे में पता चलता है,जिससे वह मानसिक तनाव से घिर जाता है,तब उसका साथ देती हैअर्शिया” (श्रद्धा कपूर)
खुर्रम अपने और गजाला के रिश्ते के बारे में हैदर से बात करना चाहता है लेकिन हैदर को यह मंजूर नहीं इसी समय हैदररूहगुजर”( इरफ़ान खान) के सम्पर्क में आता है जो एक अतिवादी संगठन स् जुडा है उससे मिलकर हैदर को पिता की मृत्यु और उसमे खुर्रम एवं गजाला की निशानदेही का पता चलता है और हैदर अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है
इसी के साथ फिल्म एक खूरेंजी मोड़ लेती है यह थी कहानी
सर्वप्रथम एक ही बात कहूँगा के इस फिल्म में शाहिद ने अपने अब तक के फ़िल्मी कैरियर का बेस्ट परफोर्मेंस दिया है,शाहिद का किरदार वैरायटी लिए हुए है,हर घटना और जीवन में आये उतार चढ़ाव् से पल पल बदलते हैदर के चरित्र में उन्होंने जान फूंक दी है
उनके अभिनय की बेहतरीन झलक फिल्म के क्लाइमेक्स में और अधिक निखरकर सामने आती है अभिनय में जहा शाहिद सबसे आगे है तो फिल्म के दुसरे कलाकार भी कोई कसर नहीं छोड़ते
 हैदर की माँ की भूमिका में तब्बू ने बहुत ही असरदार अभिनय किया है
 पति की मौत,दूसरी शादी,और बेटे की तकलीफ को झेलती औरत की मनोदशा
आपको झकझोर के रख देती है के के ने भी खुर्रम की भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है और
 इसमें उनके अभिनय को एक अलग रूप में भी देखने का अवसर मिलता है
श्रद्धा कपूर की भूमिका छोटी है किन्तु फिल्म में दर्शाए भयंकर तनाव भरे माहौल को कुछ
 पल के लिए हल्का जरुर करती है तो इरफ़ान खान को ज्यादा विस्तार नहीं मिला
 विशाल भारद्वाज की फिल्मे हमेशा से बहुत डार्क रही है लेकिन हैदर शायद सबसे आगे है
इस मामले में ।कश्मीर के मनभावन लोकेशन भी एक असहय तनाव से भरे लगते है जो मन को भाने के बजाय अत्यधिक तनाव और विषाद में डुबो देते है
बहुत ही बढ़िया निर्देशन है कही भी पकड़ धीमी नहीं हुयी है,फिल्म देखते समय दर्शक भी खुद को अवसाद में घिरा पाता है,यह है इस फिल्म के स्याहपन का आलम
सिरियस फिल्म पसंद करनेवालों को फिल्म अवश्य पसंद आयेगी
फिल्म का ट्रीटमेंट ऐसा है के किसी को बहुत ज्यादा पसंद सकती है तो किसी के लिए तनाव एवं उकताहट का सबब भी बन सकती है
कुल मिला कर तनाव और विषाद के धागों से बुन अवसाद का एक मजबूत जाल हैहैदरगीत संगीत में इसमें और वृद्धि ही करते है ।वैसे विशाल भारद्वाज को फिल्म की थीम में होलीवुड सीरिजबोर्न ट्रायोलोजीकी धुन इस्तेमाल करने के बजाय कुछ मौलिक इस्तेमाल करनी चाहिए थि।

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