गुरुवार, 31 जुलाई 2014

यादो का घर !

मोबाइल पर नेट ऑन करते ही 'व्हाट्सएप ' पर एक मैसेज आया !
''राहुल पाण्डेय ' तु चंद दिनों के दोस्तों को बर्थ डे विश कर रहा है !
लेकिन बचपन के दोस्त का जन्मदिन याद नहीं ''
पहले तो मै चिंहुक गया के कौन है ये ! फिर देखा तो मेरे बचपन का सहपाठी था .
मैंने समझाया 'अरे भाई मै किसी के जन्मदिन याद थोड़े ही रखता हु !
यह तो फेसबुक है जो सूचित कर देता है ''
उनकी नाराजगी कम नहीं हुयी ''सबके जन्मदिन सूचित कर दिए सिर्फ मेरा नोटीफिकिशन नहीं मिला ?'
कैप्शन जोड़ें
मैंने रिप्लाई दिया ' अरे भाई मै हमेशा ओनलाईन नहीं रहता !
जब भी रहता हु किसी के जन्मदिवस की सुचना देखता हु तो उसे बधाई दे देता हु ,
तुम्हारी शायद दिखी नहीं '
'अच्छा वो सब बहाने रहने दे ! मै याद हु के नहीं ? हम बचपन में 'कुत्ते' के 'घर ' बनाया करते थे '
'कुत्ते के घर ?' इस लफ्ज ने बरबस ही मुस्कान ला दी चेहरे पर .
मन यादो में खो गया बचपन की ! जब फेसबुक ,व्हाट्स एप ,ऑरकुट  से नहीं बल्कि 'दिल '
से दोस्त बना करते थे .
बचपन से ही प्राणियों के प्रति मुझे बहुत प्रेम था ,हमारे घर के बगल में मिटटी का टीला था
 करीब चार फीट का ! वहा एक कुतिया ने बच्चे दिए थे , एकदम नन्हे नन्हे बच्चे ,कुई कुई की
 आवाज से माँ को त्रस्त करते हुए ,उस कुतिया का नाम हमने रखा था ''रानी ''!
 हमारा बालमन उन मासूम से सफ़ेद, काले रुई के फाहो जैसे बच्चो को छूने को मचलने लगता !
अब चूँकि उनका कोई घर नहीं था ,तो हमारे मन में आया के उनके लिए कोई घर बनाया जाय,
 जिसमे बच्चे रह सके ! उन दिनों 'शिव जयंती ' पर हम बच्चे 'शिवाजी महराज '
के किले के प्रतिरूप बनाया करते थे ,तो हमने सोचा के वैसा ही कुछ इन बच्चो के लिए भी किया जाए !  बरसात का महीना था 'रानी ' अपने बच्चो के लिए उसी मिटटी के टीले में एक गुफानुमा गड्ढा बनाकर
 उसी में रहती थी ! किन्तु बरसात का पानी अंदर जाता था ,
जिससे बच्चो को और रानी को तकलीफ होती थी ,तो हमने उस गुफा को और
 चौड़ी करने का निर्णय लिया ! और मैंने उस गुफा को खोद खोद के हमारे जैसे दो बच्चे बैठ जाए
 इतना गहरा बना दिया ,और उसके मुख पर एक प्लास्टिक की बोरी सेदरवाजा बना दिया,
 जिससे पानी की बौछार भी बच्चो को न लगे !
घर बनने के बाद उसके आसपास नाले भी बनाये गए ताकि पानी वहा ठहर न सके !
 और घर के प्रवेश द्वार को मिटटी से लिप पोत के ढलुवा बना दिया ताकि पानी अंदर न जा सके ,
 इतनी मेहनत के बाद हमने उन बच्चो को दूध ,और माँ को रोटियाँ खिलाई और उन्हें अंदर सुला दिया !
और उस रात जमकर बरसात हुई ,हम सुबह स्कुल जाने से पहले  बच्चो को देखने के लिए पहुंचे,
और यह देखकर राहत की साँस ली के घर के अंदर बच्चे एकदम सुरक्षित है !
पानी की एक बूँद भी  नहीं गई थी ,कुछ दिन दिन बच्चे घर के भीतर रहे के एकदिन ,
वहा पर होनेवाले एक निर्माण कार्य के लिए उस टीले को तोड़ दिया गया .
मैंने स्कुल में अपने मित्रो को बताया था इन बच्चो के बारे में !
तो मेरे उसी मित्र ने उन पिल्लो को देखने की इच्छा जताई और हम साथ साथ आ गए !
लेकिन देखकर दुःख हुवा के बच्चो के लिए घर नहीं रहा !
तो हमने फैसला लिया के हम इनके लिए नया गहर बनायेंगे और पहले से मजबूत बनायेंगे ,
तो वहा हमने एक कोने में झाड़ झंखाड़ और कूड़ा करकट साफ़ किया !
और उस गंदे हिस्से को मिटटी से पाट कर एकदम साफ़ सुथरा बना दिया ,
और उसके बाद शुरू हुई मेरी और मेरे मित्रो की कवायद ! और हमने टूटे फूटे ईंटे जुटाये
 और मिटटी के गाढे मिश्रण से उन्हें दीवार जैसा स्वरूप देना शुरू किया !
और हमने एक मकान जैसा निर्माण बनाया ,जिसमे बच्चे और उसकी माँ रह सके !
बनने के बाद 'रानी ' उसमे जाने के लिए हिचकिचाती थी ,तो हमने उसके बच्चो को अंदर रख दिया
 और उसने बच्चो को अंदर देख स्वयम भी प्रवेश किया और बैठ गई आराम से जुबान हिलाते हुए .
और हमने ख़ुशी से किलकारी मारी ! अब मेरा मित्र और मै स्कुल के बाद सीधे वहा आते और उन बच्चो के साथ खेलते ,किन्तु बच्चे बड़े शरारती हो गए थे .
रात्री में वे अक्सर घर से बाहर निकल आया करते थे ! जिससे उनको खतरा था अन्य जीवो से ,
तो हमने अगले दिन इसका भी इलाज खोज निकाला और उस घर के आसपास बाउंड्री बना डाली ,
और इस बार हमने ईंटो को जोड़ने के लिए मिटटी के बजाय वहा हो रहे निर्माण का सीमेंट
 इस्तेमाल किया और दीवारे पक्की बना दी .
इसके बाद हमें विचार आया के क्यों न पुरे घर को ही सीमेंट से जोड़ दिया जाए ?
तो हमने अगले दिन स्कुल से आते ही काम शुरू कर दिया ! और काफी मेहनत के बाद एक
 पक्का निर्माण किया ,दीवारे गिरे नहीं इसके लिए हमने दो ईंटो की दीवारे बनायी ,
और निर्माण में खोदे जाने 'नीव ' से प्रेरणा लेकरबकायद नीव भी बनायी और आधी ईंटे
जमीं के भीतर और फिर उसके ऊपर दूसरी ईंटे !
इस तरह से सीमेंट के मजबूत जोड़ से एक सुंदर गहर तैयार हो गया जो उस
 इलाके के लोगो के लिए भी आकर्षण का केंद्र बन गया !
एक बार उस जमींन  का मालिक वहा आया और उसने वह छोटा सा घर देखा ,
हमें लगा के अब यह घर भी गया ! किन्तु उसने जब घर के भीतर नन्हे बच्चो को देखा
 तो उसने मजदूरो से कह दिया के इस घर को मत तोडना इसमें बच्चे है .
हम खुश हो गए और उसने हमें उन बच्चो के बड़े होने तक घर नहीं तोड़ने की बात कही और
 चला गया .
समय के साथ बच्चे बड़े हो गए और मकान निर्माण की जरुरत के चलते टूट गया ! वैसे भी
बच्चे अब मकान में रह नहीं सकते थे क्योकि वे बड़े हो चुके थे .
लेकिन इसके बावजुद उस मकान का टूटना हमारे लिए दुखद था ! वह 'कुत्ते का घर ' नहीं था !
वह हमारी 'यादो का घर ' था
आखिर वो हमने बनाया था जी जान से उन बच्चो के लिए .
अचानक मोबाईल के मैसेज ने यादो का सिलसिला तोडा !
मैसेज था '' अरे वो कुत्ते मुझे याद करते है के नहीं ? या तेरी तरह वो भी भुल गए ''
मैंने कहा ' वो बच्चे अपनी उम्र पूरी करके अगली पीढ़िया देकर खत्म हो चुके भाई ''
'' हां नहीं तो तु फिर घर बनाता ''
मै सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया ! मुस्कुराते हुए थोडा गीलापन आँखों में महसुस किया .

मंगलवार, 29 जुलाई 2014

तेज बरसात और खोज कॉमिक्स की !

बस डेपो पर भी बदलिया और बूंदा बांदी छाई रही 
जैसा के आज सुबह से योजना बना ली थी ! के आज 'कॉमिक्स ' की खोज
में मुंबई जाना है ,( वैसे अन्य कार्य भी था जिसे निपटाना था ) !
किन्तु घर से जब भी निकलने को हुये , बरखा रानी ने वापस घर में जाने पर विवश कर दिया .
काफी देर हो गई और करीब डेढ़ बजे बरसात शांत हुयी
हम निकले बस अड्डे की ओर ,बस अड्डे पर बरखा रानी फिर से
मेहरबान हो गई ! किसी तरह से भीगते भागते बस पकड़ी ! खुशकिस्मती से
सिट भी मिल गई ,और बैठे बैठे रास्ता पार कर लिए .
फिर पहुंचे स्टेशन ,बस स्टॉप से स्टेशन के बिच एक छोटी सी गली है !
वैसे भी मुंबई में एक हफ्ते से बरसात काफी जोरो पर है ! चार दिनों से तो निरंतर है .
इसी के चलते उस गली में जलभराव आम बात थी 'ठाणे' स्थित उस इलाके का नाम था 'कोलीवाडा '
ठाणे के 'कोलीवाडा ' इलाके में जलभराव से बचने का प्रयत्न करते लोग 
खैर किसी तरह से अन्य लोगो की तरह एडिया ऊँची कर करके आगे बढ़ने का प्रयत्न किये किन्तु आगे पानी का स्तर और ऊँचा हो गया तो हमने एडिया निचे कर ली ,
जो होगा देखा जायेगा ! और छपर छपर करते चलते गए छाता संभाले .
वैसे आम तौर पर 'छत्रपति शिवाजी टर्मिनस ' के लिए फ़ास्ट ट्रेन पकड़ना नाको चने चबाने जैसा है किन्तु दोपहर का वक्त था तो आसानी से स्टेशन पर पहुँचते ही इंडिकेटर ने ट्रेन के आने
की पूर्वसुचना दी ! और बरसात और जोरो की होने लगी ,ट्रेन में फिर भी कैसे बैसे चढ़े !
और धीरे धीरे ट्रेन गंतव्य की ओर चल पड़ी .
अचानक से याद आया के हमें 'घाटकोपर ' उतरना है
जिस काम के लिए गए थे वही भुल रहे थे ! सो हम घाटकोपर आने का इन्तेजार करते रहे !
'ठाणे' तक तो हल्की बूंदा बांदी थी ! किन्तु उसके बाद
बरसात पुरे शबाब पर थी .घाटकोपर पहुँचते पहुँचते
माहौल एकदम अंधकारमय हो गया ,मानो दोपहर के तीन नहीं बल्कि शाम के सात बज रहे हो .खैर काम निपटाया और दोबारा अपने मिशन की और बढे .
हल्की बूंदा बांदी में गंतव्य की और प्रस्थान 
और भारी बरसात के बावजुद हम अपने गंतव्य
की और बढ़ चुके थे ! पौने घंटे के सफ़र के बाद हम पहुँच गए 'सी एस टी ' ,और बढ़ चले पुस्तक मिलने वाली जगहों पर ,किन्तु बरसात इतनी तेज हो गई के चलना मुश्किल हो गया ! छाते को 'पोलियो ' होते होते बचा , फैशन स्ट्रीट की और बढ़ते कदम 'टाटा ' की इमारत की आड़ लेकर रुक गए ,जोरो की हवाए भी दस्तक दे रही थी ! सडक पार करना मुश्किल था इस तेज तूफानी बारिश में ,उस तूफ़ान और मुसलाधार बरसात में मै अकेला ही नहीं था जो उस इमारत की आड़ में खुद का बचाव कर रहा था ! अन्य भी लोग खड़े थे , हमारे सामने की सडक से कई लोग इस अंधड़ के बावजूद सडक पार करने की हिम्मत दिखा रहे थे ,
किन्तु इसका खामियाजा उन्हें उनकी छतरी को अपाहिज करके भुगतना पड़ रहा था ! सबसे बुरी गत तो एक मोहतरमा की थी ,बारिश एक दिशा से हो रही थी और तेज हवा भी ! उनका छाता उन्हें सडक पार करने देने के बजे हवा से सडक की दूसरी और खींचे जा रहा था .
अब देखा नहीं गया तो हमने चीख के सुझाव दिया के छाते को हवा के विपरीत नहीं बल्कि सामने पकडिये ,
उन्होंने ऐसा ही किया और रास्ता सकुशल पार कर लिया .
घाटकोपर में दोपहर तीन बजे का दृश्य 
 फिर बारी आई पुस्तको की ! तो काफी पूछताछ के बाद हमें आखिरकार हिंदी कॉमिक्स मिल ही गई !
यु तो विक्रेता के पास पूरा ढेर था ,किन्तु उसमे से अधिकतर तो मेरे पास पहले से ही थे ! इसलिए गिनी चुनी मात्र छह कॉमिक्स खरीद ली ,मात्र एक सौ बीस रूपये में .
अचानक नजर पड़ी 'इंद्रजाल कॉमिक्स ' पर ! आजकल ब्लैक मार्किटियो ने इसकी काफी कालाबाजारी कर रखी है .
पुस्तक को उठा कर देखा ,यह पहली इंद्रजाल थी जो मेरे हाथ में आई थी ! मूल्य था मात्र तीन रूपये ,किन्तु विक्रेता उसे सौ रूपये की बेच रहा था .
और कह रहा था के ये रेयर है ,इसके हिंदी अंक तो हजार हजार रूपये के बिकते है .
मैंने कहा भाई आप ही रखो इसे ,वैसे भी भी होगी यह रेयर लेकिन मेरे लिए इसके कोई मायने नहीं .
जितने में मै इसकी एक ले रहा हु ! उतने में तो मुझे छह हिंदी कॉमिक्स मिल रही है ! तो यह लेना कहा की समझदारी है ?
और अपनी कॉमिक्स उठा कर बैग में ठुंसी और चलता बना ! बरसात तो मानो आज रुकने का नाम नहीं ले रही थी .

 किन्तु हमें कोई फर्क नहीं पड़ना था अब , क्योकि मनचाही वस्तु मिल गई थी ! भले ही बरसात में पूरी तरह से तरबतर हो गया .
किन्तु इस भारी बरसात में  सफ़र मजेदार रहा काफी .

और मेरे मतलब की हिंदी कॉमिक्स 
इंद्रजाल के अंक जो मैंने छू कर रख दिए 

जो मैंने लिए 
हुतात्मा चौक में सवा चार बजे का दृश्य 

फैशन स्ट्रीट के पास का इलाका अंधड़ और बरसात 

छत्रियो को बचाते बचाते चलते लोग 

ये महाशय दो बार छाता उल्टा करवाने के बाद सडक पार किये 

इनके छाते के अंजर पंजर ढीले हो गए 


आजाद मैदान में जमा हुवा पानी !

'मरोल ' मेट्रो स्टेशन के निचे का दृश्य 
और आखिरकार घर पहुंचे ! किन्तु बरसात नहीं रुकी ,घर से बाहर देखने पर सडक जलमग्न दिखी 



सोमवार, 28 जुलाई 2014

ममता की दिवार !

कही जा रहे थे ! बस में थे , लगातार बरसात के चलते काफी जगह यातायात
में दिक्कत हो रही थी !
ट्रैफिक चरम पर था ,साँझ का समय था ! अचानक बस की खिड़की से देखते हुए
समीप ही आकर रुकी स्कुल बस पर नजर पड़ी ,स्कुल बस के स्टॉप पर बहुत सी महिलाओं
का झुण्ड अपने बच्चो की प्रतीक्षा कर रहा था !
स्कूल बस से बच्चो के उतरते ही अपने बच्चो के लिए प्रतीक्षारत माँए छाता लिए
 सावधान की मुद्रा में आ गई ।
बारिश बड़ी तेज हो रही है । बरसात भी बड़ी तबियत के साथ हो रही है
तेज हवाए छतरियो को मुंह चिढ़ा रही है ,माँ तो भीगी जा रही है !
किन्तु चेहरे पर तनिक भी चिंता नहीं भीगने की !
चिंतित तो अपने बच्चो के लिए है ,बच्चे भिग न जाये इस जद्दोजहद में हर माँ है ।
भारी बरसात में बस रुकते ही ,बच्चो का हुजूम बाहर की ओर दौड़ पड़ा !
हर बच्चा माँ के पास पहुँचने की जल्दी में है ,
 बच्चो ने उतरते ही माँ की और रूख किया रेनकोट साथ थे लेकिन पहने नहीं थे ।
अभी बचपन है ,सुकुवार देह है ! रेनकोट तक माँ पहनाएगी तब पहनेंगे . 
बाहर निकलते ही माताओ ने सबसे पहले बच्चो को छतरी से अच्छे से ढंक लिया,
तेज हवाओं के साथ बौछारे जारी है ! किन्तु माँ ने अपने कलेजे के टुकड़े को ,
हवा और बौछारों की दिशा के विपरीत रखा है और खुद बौछार और हवा के बिच दीवार बन कर खड़ी है !
 भले ही इस प्रयास में खुद भीगी जा रही है ।
अपनी छत्री बच्चो को देकर उनके बैग अपने कंधो पर टांगे माँ बच्चो को रेनकोट पहनने में 
जी जान लगाये दे रही है । किन्तु इस बात को पूरी तरह ध्यान में रखे हुए है

 के बच्चो को एक बूँद भी न छू पाए !

फिल्म एक नजर में : मैड मैक्स 1 ,2

मैड मैक्स 1
फिल्म की कहानी भविष्य की है ,जब पेट्रोल के लिए खूनखराबा आम बात हो चुकी है !
कई स्ट्रीट गैंग्स पेट्रोल की खातिर हाईवेस पर आये दिन खूनखराबा करते रहते है !
कानून कमजोर है ,
किन्तु कुछ लोग अब भी इस दुनिया को बेहतर बनाने की और प्रयासरत है जिनमें से एक है
 ‘’
सार्जेंट मैक्स’’( मेल गिब्सन ) और सार्जेंट गुश ‘’ एक झडप के दौरान 'सार्जेंट गुश' स्ट्रीट
 
गैंग के सदस्य नाईट राइडर ‘ को मार गिराता है ,
जिस वजह स्ट्रीट गैंग बदले के रूप में गुश को भी मार देते है !
मैकश इस घटना से विचलित हो जाता है और त्यागपत्र देने की कोशिश करता है !
किन्तु चीफ उसे कुछ दिन की छुट्टी लेने के बाद इस पर विचार करने को कहते है .
अब मैक्स अवकाश का पूरा आनन्द अपने परिवार के साथ उठाना चाहता है,
जिसमे उसकी बीवी
और बच्चा शामिल है ! मैक्स अपने परिवार से बेइंतिहा प्यार करता है !
किन्तु स्ट्रीट गैंग की नजर उसके परिवार पर पड़ती है और मैक्स की अनुपस्थिति में गैंग
 
के हाथो मैक्स की पत्नी एवं बच्चो की हत्या हो जाती है .
जिससे मैक्स अपना मानसिक संतुलन लगभग खो देता है !
और निकल पड़ता है हाईवेस की
 
गश्त पर स्ट्रीट गैंग की तलाश में ,
 
क्या मैक्स अपना बदला लेने में कामयाब होता है ? यही अगला हिस्सा है कहानी का .
मेल गिब्सन की इमेज एक एक्शन स्टार के रूप में बनी हुयी है !
 जिनकी फिल्मे इस बात को साबित करती है ,
यह अस्सी की दशक की फिल्म है ,उस लिहाज से यदि तकनिकी स्तर देखा जाये तो
 आज के मुकाबले बचकाने लगेंगे
 
किन्तु यदि उस समय के हिसाब से देखे तो यह बढ़िया एक्शन फिल्म है !
 
जिसे क्लासिक एक्शन फिल्मो के शौक़ीन अवश्य देखना चाहेंगे ,
सडको पर चेजिंग के दृश्य बढ़िया बन पड़े है ,
फिल्माकन में कई जगह बेवजह दृश्य भी डाले गए है जो फिल्म की 
लम्बाई बढाने का प्रयास नजर आता है फिल्म कुछ धीमी जरुर है .

मैड मैक्स 2
मैड मैक्स
फिल्म की कहानी शुरू होती है मैक्स ( मेल गिब्सन ) के सफ़र से,
जिस दौरान उसे एक जगह के बारे में पता चलता है ,जहा पेट्रोल का भंडार है ,जब पेट्रोल के लिए खूनखराबा आम बात हो चुकी है ,कई स्ट्रीट गैंग्स पेट्रोल की
 खातिर हाईवेस पर आये दिन खूनखराबा करते रहते है ! कानून कमजोर है )
मैक्स की नजर अब इस पेट्रोल के भंडार पर है  ,किन्तु मैक्स अकेला नहीं है जिसकी नजर इस पर है !
 एक खूंखार और पागल लोगो कास्ट्रीट गैंग भी अपनी गिद्ध दृष्टि इस भंडार पर जमाये हुए है !
पेट्रोल के भंडार को कुछ लोगो के कबिले ने सुरक्षित कर रखा है जो वहा रहते है !
स्ट्रीट गैंग्स इस पर कब्जा करने की कोशिश में कई बार मुंह की खा चुके है !
नुक्सान दोनों पक्षों का होता रहता है , कबीला इन स्ट्रीट गैंग्स से छुटकारा चाहता है
 क्योकि वे इनसे लड़ने में असमर्थ है !
एक घटना के करण मैक्स इस कबिले से जा टकराता है
और इनकी मदद करने की ठानता है ,
फिर वह योजना बनाता है इस पेट्रोल के भंडार को यहाँ से हटाने की !
जिसमे कई मुश्किलें है ,किन्तु मैक्स अपने जान की बाजी लगाने को तैयार है ,
तब होता है स्ट्रीट गैंग और मैक्स का आमना सामना ,जिसमे मैक्स बुरी तरह घायल हो जाता है ,
इसके बावजूद वह काबिले वालो की कुर्बानी और अपने साहस के बल पर आखिरकार
 जीत हासिल करता है .
फिल्म का द्वितीय भाग प्रथम भाग की अपेक्षा बेहतर बन पड़ा है !
और रफ़्तार भी पहले की मुकाबले ठीक ही है ,
एक्शन का स्तर भी दो कदम आगे ही है ,खासकर क्लाईमेक्स की चेजिंग के दृश्य !
काफी लोमहर्षक बन पड़े है , मैक्स बने मेल गिब्सन पूरी फिल्म में उलझे से नजर आये है जो के उनके किरदार के अनुरूप ही है !
एक्शन के शौकिनो के लिए यह एक क्लासिक है जिसे अवश्य देखना पसंद करेंगे ,
किन्तु तभी ,जब वे इस फिल्म को अस्सी के दशक के हिसाब से देखे !
यदि आप आज की फिल्मो से तुलना करेंगे तो फिल्म आपके लिए बेमानी है .
देवेन पाण्डेय

रविवार, 27 जुलाई 2014

फिल्म एक नजर में : किक ( फिल्म समीक्षा )

निर्माता : साजिद नाडियाडवाला
निर्देशक : साजिद नाडियाडवाला
कलाकार : सलमान, जैकलीन, मिथुन, रणदीप हुड्डा, नवाजुद्दीन,
आखिरकार बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘किक ‘ प्रदर्षित हो ही गई ! 
और प्रदर्शन के साथ ही इसने कमाई के रिकोर्ड्स भी बना लिये ! ट्रे
लर से एकबारगी यह भ्रम जरुर होता है के शायद इस बार कुछ अलग देखने को मिलेगा ,
या कुछ नया प्रयोग होगा , 
किन्तु ऐसा सोचना ही गलत है ! 
यदि फिल्म का नाम ‘धुम 4 ‘ भी होता तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होती , 
एक हिसाब से यह फिल्म सलमान की अब तक की सभी फिल्मो की खिचड़ी बन कर रह गई है ! 
वांटेड ,दबंग ,जय हो .आदि सभी फिल्मे आपकी नजरो के सामने दौड़ जाएँगी !
कहानी की बात करते है ! देवीलालसिंग ( सलमान खान ) एक सनकी व्यक्ति है ,
वह हर चीज को उलटे तरीके से करने का आदि है ! और मुसीबतों से खेलना उसकी फितरत है ! 
उसका मानना है के जिन्दगी में किक होनी चाहिए ( कौन सी और कैसी किक ! 
यह खुद सलमान नहीं समझा पाए ) , अपने दोस्त की शादी करवाने के समय की बेवकूफी
 और बिना लॉजिक की भागदौड़ में उसकी मुलाकात ‘सान्या ‘ ( जैकलिन ) से होती है ,
और कुछ मुलाकातों ,तकरारो और सदियों पुराने घिसे पिटे तरीको को आजमाने के 
बाद सान्या भी उस से प्यार करने लगती है ! ‘देवीलाल ‘ की सनक से दर्शक परेशांन होते 
तब तक देवीलाल के पिता (मिथुन चक्रवर्ती ) के किरदार में दर्शको पर एक और जबरदस्ती का सनकी थॉम्प 
दिया जाता है , दोनों बाप बेटे अव्वल दर्जे के शराबी और आवारा है , माँ भी कुछ कम नहीं है 
( अर्चना पूरनसिंह ) कुल मिलाकर यह परिवार एक अजीबो गरीब परिवार बन कर रह गया है . 
खैर यहाँ ‘देवीलाल ‘ की खासियतो का जिक्र करना भी जरुरी है ,वह बचपन से सनकी है ! 
हर उलटे सीधे काम करता है ,सबको परेशान करता रहता है ,किन्तु वह गजब का जीनियस है ! 
फुर्तीला है ,तेज है ,और नए नए आविष्कार एवं प्रयोग करता रहता है ,
जिसके कारण उसकी जल्दी किसी से बनती नहीं !
और यही हाल ‘सान्या ‘ से उसके रिश्ते का भी होता है ! ‘देवीलाल ‘ एक जगह ठहर नहीं सकता , 
वह बत्तीस जगह नौकरी छोड़ चुका जिसमे पचास हजार की सैलरी वाली नौकरी भी है ,
कारण सिर्फ एक ही है ‘इसमें किक नहीं है ‘ ! उसकी इस हरकतों के कारण सान्या उससे अलग हो जाती है !
जिसके बाद ‘देवीलाल ‘ एक शातिर चोर बनकर उभरता है जिसका नाम ‘डेविल ‘ है ! 
डेविल बड़ी बड़ी चोरिया कर चुका है ,और उसके पीछे है पुलिस अफसर ‘हिमांशु’ ( रणदीप हुड्डा ) ! 
इत्तेफाक से रणदीप की शादी की बात ‘सान्या ‘ से होती है ,और यहाँ ‘देवीलाल ‘ 
उर्फ़ डेविल का अगला निशाना है होम मिनिस्टर का भतीजा ‘शिव ‘ ( नवजुद्दीन सिद्दीकी ) ! 
वह मेडिकल रिसर्च और इक्यूपमेंट्स के नाम पर घोटाले में लिप्त है और ‘डेविल ‘ 
उस से जुड़े हर शख्श को लूट रहा है , अब हिमांशु भी उसके अगले शिकार के बारे में जानता है 
और वह भी उसे रोकने के लिए सज्ज है .फिर क्या होता है यही बाकी की कहानी है .
बस यही थी फिल्म की कहानी ! सलमान की फिल्म है तो उनका सफल होना गारंटी है ,
यह भी सफल हो चुकी है ,किन्तु कहानी की उम्मीद करना बेमानी होगी ,
आपको यदि मनोरंजन की उम्मीद है ( बिना लोजिक की ) तो हां फिल्म आपको पसंद आयेगी ! 
किन्तु कुछ नया देखने की इच्छा हो तो निराशा ही हाथ लगेगी .
फिल्म में किरदारों की बात करे तो ‘रणदीप हुड्डा ‘ ने बढ़िया अभिनय किया है ! 
‘नवजुद्दीन ‘ का भी एक सनकी व्यक्ति के रूप में अभिनय बढ़िया है !
 किन्तु जबरदस्ती की बात बात पर हंसी जरुर खीज पैदा करती है .सौरभ शुक्ल ,मिथुन ,विपिन शर्मा ,
आदि अपनी छोटी छोटी भूमिकाओं में हंसा जाते है ! बाकी ख़ास जिक्र करने लायक रोल नहीं मिला है 
इन्हें ,गानों की बात करे तो दो ही गाने चार्ट पर है ‘जुम्मे की रात ‘ और ‘यार न मिले ‘ ! 
इसके अलावा सलमान द्वारा गाया गाना ‘हैंगओवर ‘ याद नहीं रहता !
स्टंट सिर्फ ट्रेलर में ही अच्छे लगे है ! फिल्म में बनावटी प्रतीत होते है ,
फिर भी फिल्म में सिर्फ सलमान का ही जलवा है ! या कहे ‘किक ‘ है .
जैकलिन का काम सिर्फ ‘देवीलाल ‘ को प्रस्तुत करना ही भर था ! 
हां फिल्म को भावनात्मक रूप देने की कोशिश भी की गई है ‘देवीलाल ‘ के ‘डेविल ‘ 
बनने की वजह बताकर.
और फिल्म का यही एकमात्र दृश्य फिल्म में स्थिरता ला देता है , ‘देवीलाल ‘ 
की भूमिका साबित करने में ही आधी फिल्म खत्म हो जाती है ! 
इसे यदि सही से एडिट किया जाता तो फिल्म और चुस्त हो सकती थी ,
बहरहाल सलमान की फिल्म है तो सिर्फ मनोरंजन की उम्मीद में जाईये ! 
ज्यादा उम्मीदे न पाले तो बेहतर रहेगा , हां एक्शन का मसाला इसमें अवश्य कम मिलेगा 
( एक्शन के नाम पर गाडिया उछालना ही मिलेगा ) .
ढाई स्टार

देवेन पाण्डेय 

मंगलवार, 22 जुलाई 2014

कॉमिक्स ट्रेंड एवं दीवाने फैन्स -भाग 3

चूँकि मै खुद एक कॉमिक्स प्रेमी हु ! और बढती उम्र के साथ मेरा यह जूनून दोबारा से लौटा है ,
किन्तु सोशल मीडिया के इस युग ने मुझे और भी लोगो से मिलने जुलने का मौक़ा दिया
जो जूनून की हद तक कॉमिक्स के दीवाने है !
मेरी अगली कुछ ब्लॉग पोस्ट्स इन्ही कॉमिक ट्रेंड दिवानो पर आधारीत होगी !
इस तहत मै इनके द्वारा लिखी गई फेसबुक पोस्ट्स को अपने ब्लॉग के जरिये शेयर करूँगा !
ताकि लोगो का यह भ्रम टूट सके के कॉमिक्स अभी भी बच्चो की चीज है !
ज्यादा भूमिका न बंधते हुए आपको सीधे मिलाते है उन फैन्स से
 जिनकी दीवानगी से आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे .
आशीष रस्तोगी ! और उनका कॉमिक्स प्रेम 
प्रथम है 'आशीष रस्तोगी ' ! उनकी दीवानगी उन्ही की शब्दों में !
प्रिय संजय गुप्ता जी और समस्त राज कॉमिक्स परिवार को मेरा 
सादर नमस्कार साथ ही आप सभी को क्रिसमस (बड़े दिन ) की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनायें !!!
" संजय जी !! राज कॉमिक्स मेरी प्रेरणा है और मैं राज कॉमिक्स का उस समय
 से नियमित पाठक हूँ जिस समय इसका मूल्य मात्र ४/ रुपये होता था. 
उस समय राज कॉमिक्स का प्रारम्भिक काल चल रहा था, और भूतकाल 
की कहानियाँ तथा जासूसी कहानियाँ आती थीं, और मेरे तहेरे, 
चचेरे भाई इनको किराये पर २५ पैसे प्रति कॉमिक्स की दर पर पढ़ने हेतु लाते थे,
एक् दिन मैने भी कॉमिक्स पढ़कर देखी, बड़ा मज़ा आया, गगन, 
विनाषदूत आदि सुपर हीरोज के आने के कुछ समय उपरांत राज कॉमिक्स
 में उदय हुआ सर्वशक्तिमान महान सुपरहीरो नागराज का, और फिर मस्तिष्क 
के महाराज सुपर कमाण्डो ध्रुव का !! 
बस तभी से मेरा राज कॉमिक्स के प्रति अखंड अमरप्रेम उत्पन्न हुआ 
मैं हर सेट को किराये पर लेकर पढ़ने लगा, लेकिन इसकी कहानियाँ
 इतनी रोचक और मनोरंजक होती थीं के बार बार पढ़ने का मन करता था. 
लेकिन हमारी आर्थिक स्थिति कमज़ोर थी, मेरे दादा जी बॅंक के ख़ज़ांची पद से रिटायर हो चुके थे
 और अपनी एक जनरल स्टोर की दुकान चलाते थे, पिताजी अध्यापन कर रहे थे . 
फिर भी कॉमिक्स के प्रति अपने प्रबल प्रेम के कारण मैने अपना जेब खर्च बचाकर 
कॉमिक्स खरीदकर उनका संग्रह करना शुरू किया, साल दर साल धीरे-धीरे
 मेरे पास खासा कॉमिक्स संग्रह हो गया, एक दिन मेरे दादा जी ने मुझे 
कॉमिक्सों को दुकान पर रखकर किराये पर चलाने का सुझाव दिया, 
बात मेरी सांझ में आ गयी और मैने ऐसा ही किया. 
अब कॉमिक्सों से होने वाली आय द्वारा ही मैं नयी कोमिक्से खरीदने लगा, 
जिससे मेरा जेबखर्च भी बच जाता और हमारी आर्थिक सहायता भी हो जाती, 
हर नया सेट डीलर द्वारा सबसे पहले मेरे पास आता था और नये सेट की मेरे पास एडवांस बुकिंग रहती थी, कभी कभी तो मुझे नये सेट की तीन तीन प्रतियाँ लेनी पड़ती थी. 
जिस समय मैने अपना ये पुस्तकालय प्रारभ किया तब मैं पांचवीं कक्षा का विद्यार्थी था 
स्कूल से बचा बाकी टाइम मैं दुकान पर देता और रात में अपनी पढ़ाई करता था , 
मैने अपना ये पुस्तकालय ७वर्ष तक लगातार चलाया, फिर दादा जी के देहावसान के 
बाद जब मैं १२ वीं कक्षा में था तब घरवालों की सख्ती के कारण पढ़ाई पर ध्यान 
देने हेतु मुझे अपने हृदय पर पत्थर रखकर अपना कॉमिक्स संग्रह विक्रय करना पड़ा , 
वो मेरी ज़िंदगी का एक अत्यंत दुखद और कठोर लम्हा था, 
लेकिन फिर भी मैने अपनी कुछ चुनिंदा और उत्तम कोमिक्से बचा लीं थी, 
राज कॉमिक्स के प्रति मेरा प्रेम अटूट था इसलिये मैने नये सेट की चुनिंदा 
कोमिक्से खरीदना जारी रखा और दोबारा अपना संग्रह बनाया जिसका छायाचित्र
 (करेंट फोटो )आपको भेज रहा हूँ.
लेकिन उस दौर में पहले जिस सरलता से कॉमिक्स उपलब्ध थी वैसे आज नहीं हैं
 क्योकि वीडीओ गेम्स और इंटरनेट के चलन से इसके व्यवसाय पर बहुत असर पढ़ा
 और धीरे- धीरे कई प्रकाशन केन्द्र बंद हो गये, केवल राज कॉमिक्स ही अपनी उत्कृष्ट
 और अनोखी ज्ञानवर्धक प्रेरणादायक कहानियों तथा राज कॉमिक्स के दीवाने पाठक प्रेमियों के कारण बच पायी है. 
लेकिन आज इस मंहगाई के दौर में कच्चे माल की बढ़ती लागत के कारण 
कॉमिक्स के मूल्य भी आसमान छू रहे हैं जिसके कारण कॉमिक्स खरीदना 
हर पाठक के लिये सहज नहीं है और हर जगह सरलता से उप्लब्ध भी नहीं है मुझे भी
 इस साल से ऑन लाइन स्टोर से ही ऑर्डर करके लेनी पढ रही है
वर्षों गुजर गए किन्तु मेरा कॉमिक्स प्रेम अभी तक कायम है और हमेशा रहेगा मैं अपने अंदर के बच्चे को कभी बड़ा नहीं होने दुंगा ,
संजय सर !!!!!!!! आजकल राज कॉमिक्स से वो पुराना मज़ा गायब है, 
फिर भी कहानिया अत्यंत प्रभावशाली,गूढ और मनोरंजक होती हैं
लेकिन "सर्वनायक" सीरीज में आपने सभी नायकों को एकत्रित करके उन 
पुरानी यादों को फिर से जीवंत कर दिया है,मेरा सपना था की भोकाल और
 नागराज एक साथ आयें या फिर ऐसा हो के भोकाल का पुनर्जन्म नागराज
 के रूप में हो और किसी अवसर विशेष पर भोकाल शक्ति नागराज को मिल जाये,
 खैर "सर्वनायक" राज कॉमिक्स की सर्वोत्तम भेंट है इसकी उत्सुकता " नागायण" 
सीरीज की भांति बनी रहेगी बस आप थोडा आर्टवर्क पर विशेष ध्यान दीजिये, 
खासकर नायकों की शारीरिक बनावट और चेहरों पर !! "सर्वयुगम" पढकर 
निराशा हुई ये अपने आधारखंड " युगांधर " के सामने निर्बल रह गया, आशा है 
की आगामी खंड " सर्वदमन " निराश नहीं करेगा, बस कृप्या आप इस महानतम
 श्रंखला को ज्यादा लंबा ना खीचें और जल्दी जल्दी इसके आगामी भाग प्रकाशित करें अंत में 
सुनील कुमार द्वारा उनके घर की बाहरी दीवारों पर बनाये उनके चित्र 
आपको और समस्त राज कॉमिक्स परिवार को मेरी ओर से " युगम धरित्री अस्यः "!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
राज कॉमिक्स है मेरा जुनून
"आशीष रस्तोगी "
अगले दीवाने है ''सुनील कुमार ' जी ! जिन्होंने अपने कॉमिक्स प्रेम डूबकर 
अपने घर की दीवारों को ही कॉमिक्स प्रेम का जरिया बना लिया और अपने कॉमिक्स पात्र 
को दिवार का हिस्सा बना लिया उन्हें चित्रित करके ! इनका उद्देश्य है के लोग 
इन चित्रों से उत्सुक होकर इन पात्रो के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने का प्रयत्न करे ! 
सुनील कुमार द्वारा उनके घर की बाहरी दीवारों पर बनाये उनके चित्र 


राजिव रोशन 
 —कॉमिक्स फैन राजिव रोशन जी के शब्द 
मुझे लगता है की मैं बहुत छोटा सा प्रशंसक हूँ कॉमिक वर्ल्ड का लेकिन हूँ तो सही| 
अपनी पुस्तक पढने की शुरुआत तो मैंने इसी ट्रेंड से की थी| हाँ, मुझे अब भी अच्छी तरह याद है, 
मेरे घर के करीब ही मेरा के मित्र कॉमिक्स की दूकान लगाता था और कॉमिक्स 
को किराए पर दिया करता था (अब उसने ऐसा करना बंद कर दिया है)| मेरा एक मित्र राजेश
 शर्मा जो कॉमिक्स पढने का शौक़ीन था उसने मुझे कॉमिक्स पढने की आदत लगाईं और 
मैं इसके लिए उसका तहे दिल से जिन्दगी भर शुक्रगुजार रहूँगा| अब वैसे मैंने कॉमिक्स पढना
 बंद किया हुआ है लेकिन दिल तो हमेशा बच्चा ही रहता है| इसलिए आप सभी के साथ जुड़ा हुआ, 
ताकि भविष्य में ऐसा न लगे की मैंने अपने बचपन को खो ही दिया है|
आइये "डोगा दिवस" पर डोगा के बारे में बात करते हैं भारतीय कॉमिक्स किरदारों में "डोगा" 
एक ऐसा किरदार बनकर उभरा जिसे वर्ग के पाठकों ने पसंद किया| हालांकि 
दुसरे कॉमिक किरदारों की तुलना में डोगा के कॉमिक्स में हिंसा की अधिकता रहती थी 
लेकिन हम भारतीय पाठक वर्ग भी हिंसा को मनोरंजन का हिस्सा मानते हैं|
जब मैंने पहली बार डोगा का कॉमिक्स पढ़ा था (याद नहीं कौन सा था), 
तो मुझे यह किरदार बहुत पसंद आया था| मुझे डोगा का कांसेप्ट बहुत पसंद आया 
क्यूंकि इस कांसेप्ट पर क्या कभी किसी ने सोचा होगा| मुझे ख़ुशी हुई थी की यह 
कम से कम वैम्पायर और भेड़िया जैसा किरदार तो नहीं है जो की कल्पनाओं से परे था| 
अजीब लगता था यह जानकार की एक वैम्पायर ने जब इंसान को काटा तो वाह भी वैम्पायर बन गया| 
शुक्र था की "डोगा" ऐसा नहीं था|
एक समाज के व्यक्ति का समाज के अपराधिक तत्वों के खिलाफ ओढा गया लबादा था "डोगा"| 
डोगा वह किरदार है, जिसे मैं बैटमैन से तुलना कर सकता हूँ| जिस प्रकार से अन्तराष्ट्रीय स्तर पर बैटमैन अपना स्थान बनाता है वैस ही डोगा का स्थान भारतीय पाठकों के बीच है|
क्यूंकि ८-१० वर्ष हो चुके हैं कॉमिक्स को पढ़े हुए , इसलिए इससे अधिक साझा नहीं कर पाउँगा|
आभार
राजीव रोशन

( ''कॉमिक्स ट्रेंड एवं दीवाने फैन्स'' जारी है अगली कड़ीयो में )

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