गुरुवार, 26 जून 2014

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‘जय हो पंखो वाली मईया ‘



कल से ही देख रहा हु ! 

कुछ दिनों पहले ही हमारे गोदाम में एक खम्बे पर एक कबूतरी ने अंडे दिए थे
जो अब बच्चो में परिवर्तित हो चुके है ! 
चूँकि वे एक बंद गोदाम में जन्मे है इसलिए बाहरी वातावरण की तुलना में 
उन्हें उड़ने का अभ्यस्त होने में जरुरत से ज्यादा समय लगना है ,
‘जय हो पंखो वाली मईया ‘
बच्चे माँ की आधी बराबरी इतने बड़े तो हो ही चुके है ,
 माँ को भी शायद फ़िक्र है के बच्चे इतने बड़े हो चुके है किन्तु अभी तक उड़ना नहीं सिखा .
इसी चिंता में माता दो दिन से बच्चो के पीछे पड़ी है ,
लेकिन बच्चे जो है अपनी शरारतो से माँ की नाक में दम किये हुए है ! 
कबूतरी उन्हें खम्बे से निचे धकेलने का भरसक प्रयत्न कर रही है किन्तु बच्चे भी पक्के ढ़ीट है वे निचे गिरते ही नहीं बल्कि जोरो से पंखो को फडफडा कर माँ को दूर कर देते है ! 
कबूतरी उन्हें अपनी चोच से पकड कर निचे की और गिराने का प्रयत्न करती है लेकिन बच्चे खम्बे को मजबूती से पकडे हुए है ! 
अब यह तरिका काम नहीं आया तो कबूतरी ने खुद उड़कर ‘प्रैक्टिकल ‘ करके भी दिखाया जिसके नतीजे में बच्चे भी बैठे बैठे बिना उड़े पंख जोर जोर से फडफडा रहे है !
एक बच्चा थोडा सा ऊपर उठा तो कबूतरी चहचहाने लगी जोर जोर से,
 मानो वो उसकी हिम्मत बढ़ा रही हो ! 
किन्तु इतनी मेहनत के बाद हुयी थकान से बच्चा वापस धरातल पर आ गया .
माँ शायद समझ गई ,और वह तुरंत वहा से उड़कर निचे जमीं पर आ गई,
 और निचे से बच्चो की और देखने लगी इस उम्मीद में के शायद बच्चे भी माँ की और आने का प्रयत्न करे ,बच्चे माँ को दूर देखकर बेचैनी में पंख फडफडा रहे है ,
लेकिन निचे आने में डर रहे है ! कुछ देर पंख फडफडाने के बाद वो शांत बैठ गए !
अब माँ ने यहाँ वहा पड़े चावल ,दाने आदि चुगने शुरू कर दिये और कुछ ही पलो में वापस अपने घोंसले पर जा पहुंची,
 उसके पहुँचने की देर थी के बच्चे चोंच खोल कर माँ की और लपक पड़े और माँ ने बड़े प्यार से बारी बारी अपनी चोंच से उन दोनों बच्चो के चोंच में कुछ दाने डाल दिए ! 
बच्चो की भूख मिटते ही माँ उनसे रूठी सी प्रतीत हुयी !
 और वह खम्बे के दूसरी और चलते हुए चली गई ,
किन्तु बच्चो को माँ की नाराजगी की परवाह ही नहीं ,वे तो माँ के पीछे पीछे पैदल ही चल रहे है !
माँ बार बार पीछे मुडती और उन्हें परे धकेलती किन्तु वे माँ से दूर नहीं जा रहे और दोबारा करीब आ गए ,कुछ देर धक्का मुक्की यु ही चलती रही 
और आख़िरकार माँ ने हार मान ली और घोंसले में आकर बैठ गई,
 दोनों बच्चे माँ के समीप आ गए मानो जैसे माँ को आलिंगन दे रहे हो .
और माँ फिर से गोदाम के छप्पर की ओर देख रही है ,
मानो सोच रही हो आज तो बच गए कल देखती हु कैसे नहीं उड़ते .
बड़ा ही अप्रतिम दृश्य था ,मै तो अपलक करीब एक घंटे तक उनकी हरकतों को निहारता रहा ! किन्तु माता के प्रयत्न पर मुझे पूरा विश्वास है ,
बच्चे आज नहीं तो कल जब उड़ेंगे तो उनसे ज्यादा ख़ुशी उस अबोध मूक पक्षी को होगी जो उनकी माता है .
( तस्वीर में कबूतर काफी उंचाई पर है ,इसलिए तस्वीर स्पष्ट नहीं है )

8 टिप्‍पणियां:

  1. ओह्ह्ह यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता की बात है ! धन्यवाद जी .

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