गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

फ़िल्म एक नजर में : अग्ली

फ़िल्म एक नजर में : अग्ली
 अनुराग कश्यप का नाम इंडस्ट्री में साहसिक फिल्मकारों में गिना जाता है,इनकी बनाई फिल्मो का एक अलग ही दर्शक वर्ग होता है , अनुराग कभी भी बेवजह के चालु मसालो के चक्कर में नहीं पड़े और पूर्ण रूप से कहानी के साथ न्याय किया है । "ब्लैक फ्राइडे, नो स्मोकिंग,गैंग्स ऑफ़ वासेपुर,गर्ल इन यलो बूट्स, शॉर्ट्स, जैसी अलग फिल्मो से इन्होंने एक मजबूत दर्शक वर्ग खड़ा किया है । इनकी फिल्में कभी प्रिडक्टिबल नहीं रही ,दर्शक फ़िल्म के शुरुवात से आगे की घटनाओ का अंदाजा नहीं लगा सकता ।
ईसी तरह की फ़िल्म है "अग्ली" जो एक बच्ची के अपहरण को आधार बना कर लिखी गयी है । कहानी का केंद्र अपहरण है, किन्तु कहानी में मौजूद हर शख्स कैसे बदलता है यह फ़िल्म का एक शशक्त पहलु है ।
कहानी की बात करते है ,राहुल एक स्ट्रगलर है जो हीरो बनने की चाह में है । पैसो की तंगी और खराब परिस्थितियो के चलते उसका तलाक हो चूका है। वह अपने मित्र "चैतन्य" के साथ फ़िल्म इंडस्ट्री में जमने के लिए प्रयासरत है,राहुल की पत्नी ने दूसरी शादी की है,और उसका पति एक सख्त ऑफिसर है "शौमिक"( रोनित रॉय) । अपनी पत्नी से राहुल को एक बेटी है "कली" जिसका अपहरण हो जाता है, और "शौमिक" संदेह में राहुल और चैतन्य को प्रताड़ित करता है । शौमिक की उसकी बीवी से भी नहीं बनती,किन्तु फिर भी वह कलि की तलाश  युद्धस्तर पर कर रहा है,कहानी में कई किरदार आते है राहुल,राहुल का दोस्त"चैतन्य", शौमिक,उसकी पत्नी ,उसका साला जिससे शौमिक परेशान है ।
अपहरणकर्ता की तालाश में हर चरित्र बदलते जाता है । हर किरदार एक नकारात्मक छवि लिये हुए है जो अवसर की ताक में लगा रहता है।
फिर क्या होता है? कौन अपहरण कर्ता निकलता है यह भी काफी उलझन भरे तरीके से प्रस्तुत किया गया है । क्लाइमेक्स वास्तविकता का क्रूर रूप दिखाती है, कहानी का अंत अनपेक्षित है और दर्शको को विचलित कर सकता है ।
फ़िल्म के किसी भी किरदार के संबंध एकदूसरे से साफ़ नहीं है,हर कोई स्वार्थी नजर आता है, अभिनय की बात करना वो भी अनुराग कश्यप की फ़िल्म में ? भाई वो तो पत्थरो से भी अभिनय करवा ले । शौमिक के किरदार में रोनित क्रूर रहे है ,अनुराग की ही फ़िल्म "उडान" के किरदार से दो कदम आगे नजर आते है । फ़िल्म में एक जगह दृश्य है जब राहुल और चैतन्य बेटी के अपहरण की शिकायत दर्ज करवाने पुलिस सटेशन जाते है तब पुलिसिया पूछताछ से राहुल और चैतन्य कम दर्शक ज्यादा खीजते नजर आएंगे । अनुराग बारीक सी बारीक चीजो को भी महत्वपूर्ण बना देते है,कहानी धीमी होने के बावजूद कसावट लिये हुये है । कुछ जगहों पर गालियों का प्रयोग अत्यधिक हो गया है, वैसे भी फ़िल्म में राहुल और उसकी पत्नी के संबंधो को समझने के लिये एक अलग से 5 मिनट का प्रोलोग ऑनलाईन रिलीज किया गया है। यह भी एक अनूठा प्रयोग किया है अनुराग ने ,फ़िल्म से इतर कुछ दृश्यों को रिलीज करना जो फ़िल्म में नहीं है । यदि आपने इसे नहीं देखा तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ता फ़िल्म देखते वक्त,यदि देखा है तो फ़िल्म को समझने में अतिरिक्त सहायता मिलेगी ।
फ़िल्म पूरी तरह से डार्क है,कही भी हल्के पल नहीं है । एक भी गाना नहीं है,इसके बावजूद फ़िल्म दो घण्टे नौ मिनट की है ।
अनुराग कश्यप के फैन्स जरूर पसंद करेंगे,मसाला की चाह रखनेवालों को निराशा होगी ।
तीन स्टार

सोमवार, 22 दिसंबर 2014

फिल्म एक नजर में : पि.के .




राजकुमार हिरानी अनूठे विषयों के लिए जाने जानेवाले फिल्मकार है ,
और आमिर खान फिल्म इंडस्ट्री में अपने परफेक्शन के लिए मशहूर है !
 तो लाजमी है जब दो धुरंधर मिल जाये तो कुछ उम्दा निर्माण देखने को मिले .
ऐसा ही कुछ है फिल्म ‘पि .के ‘ के साथ ,
जो बेशक एक बढ़िया फिल्म है अपनी कुछ विसंगतियों के बावजूद !
 फिल्मो में एलियन जैसी किसी चीज की उपस्थिति में उसे जनमानस के
 साथ बांधे रखना एक बहुत बड़ी चुनौती होती है ,जिसे बखूबी निभाया था 
राकेश रोशन ने ‘कोई मिल गया ‘ का निर्माण करके ! 
किन्तु पि के का एलियन अनूठा है ,वह भोजपुरी बोलता है
 ( जाने क्यों ‘अवधि ‘ को भोजपुरी बता दिया जाता है ,जबकि नितांत अलग है )
,भगवान की खोज में है !
उसके अपने कुछ मासूम सवाल है जिन्हें सुनकर कोई सोच में पड़ जाता है ,
तो कोई बिदक जाता है ,
फिल्म की शुरुवात एक एलियन से होती है जो पृथ्वी पर निर्वस्त्र आता है ,
उसके तन पर सिर्फ एक ही चीज है और वह है उसका रिमोट जो एक
 लोकेट की शक्ल में है ! कीन्तु एक चोर उसका लोकेट छीन कर भाग जाता है ,
जिसके बाद वह असहाय हो जाता है क्योकि उस रिमोट के 
बगैर वह अपने यान को बुला नहीं सकता ! 
वह अपने रिमोट के लिए दर दर भटकता है ,तब अपनी खोज के 
दौरान वह भोजपुरी ( कथित ? )भाषा को आत्मसात कर लेता है ,
जो उसकी भाषा बन जाती है संवाद की ! उसकी उल जलूल हरकतों के
 कारण उसका नाम ‘पीके ‘ पड़ जाता है ! 
वह यह देख कर हैरान हो जाता है के कोई ‘भगवान ‘ है जिसपर यहाँ के लोग
 विश्वास रखते है के वह सब ठीक कर देगा ,भोला भाला पीके भी अपने रिमोट के लिए हर भगवान की खोज में निकल जाता है ,कभी चर्च में नारियल तो कभी मस्जिद
 में वाईन लेकर जाता है ! जिसमे कई बार वह पिटते पिटते बचता है ,
वह उलझन में है के लोग कहते है भगवान ने सबको बनाया तो सब भगवान को 
अलग अलग तरीको से क्यों मानते है ?
तब उसकी मुलाक़ात होती है ‘जग्गू ‘ ( अनुष्का शर्मा ) से ,जो एक रिपोर्टर है ,
और पीके से प्रभावित है ! उसे पता चलता है के पीके एक एलियन है और वह अपने रिमोट की तलाश में है ,तो वह उसका साथ देती है !
इसी दौरान पता चलता है के एक ढोंगी बाबा ‘तपस्वी ‘ ( सौरभ शुक्ला ) के पास पीके का रिमोट है जिसे वह ‘भगवान शिव ‘ के डमरू का अंश बताकर चंदा उगाही कर रहा है ! पीके धर्म के पाखंड की पोल खोलने का निर्णय लेता है ,फिर क्या होता है ? पीके अपना रिमोट वापस ले पाता है या नहीं ? धर्म के आडम्बर के खिलाफ क्या उसकी कोशिशे रंग लाती है ? यह फिल्म में देखना दिलचस्प रहेगा .
फिल्म का विषय अनूठा है ,पीके का किरदार बेहद मासूम और प्यारा है जिससे दर्शक जुडाव महसूस करता है ! कभी वह हंसने पर विवश कर देता है तो कभी आँखे नम कर देता है ,आमिर ने पीके के किरदार को पूरी जीवटता से निभाया है !फिल्म की पटकथा अपने निर्देशन के मुताबिक़ ही कसी हुयी है ,किन्तु फिल्म का मध्यांतर के बाद सिर्फ तपस्वी पर केन्द्रित होकर रह जाना बहुत अखरता है ,ऐसा लगता है मानो फिल्म अचानक से दुसरे ढर्रे पर चली गयी हो ! और क्लाईमेक्स भी जल्दबाजी में निपटाया गया प्रतीत होता है ,खैर ,बात करे अभिनय की तो जग्गू के किरदार में अनुष्का अपना प्रभाव छोडती है ! तो छोटे छोटे किरदारों में  ‘सुशांत राजपूत ,भीष्म साहनी ,बोमन इरानी ,संजय दत्त ,सौरभ शुक्ला ‘भी छाप छोड़ जाते है ! 
फिल्म बढ़िया है ,ढोंग पाखंड की पोल खोलती है लेकिन कई जगहों पर
 फिल्म पक्षपाती सी हो जाती है ! ढोंगी, पाखंडी, धर्म को लेकर आम आदमी को 
भ्रमित करनेवाले हर धर्म में मौजूद है ,
किन्तु फिल्म को सिर्फ किसी एक धर्मविशेष के बारे में केन्द्रित करना पक्षपात ही लगता है ! 
ऐसा नहीं है के उनका जिक्र नहीं किया गया है ,एक दृश्य है जब ट्रेन की बोगी के विस्फोट से पीके विचलित हो जाता है ,जिसे आतंकवादियों ने किया है ! 
जिसके बारे में पीके कहता है ,’ हर कोई अपने भगवान को बचाना चाहता है ,धर्म को बचाना चाहता है! कोई ट्रेन को उड़ाकर तो कोई पत्थर को भगवान बनाकर ‘
किन्तु यह सिर्फ खानापूर्ति मात्र लगती है ! कई समीक्षकों ने कहा है यदि आप फिल्म देखते समय अपनी आस्था को साथ लेकर जायेंगे तो आपकी आस्था को ठेस अवश्य लगेगी ! तो उनसे प्रश्न यह है के आस्था को कहा रख के जाए ?
क्या आस्था कोई परे रखने वाली या साथ न ले जानेवाली चीज है ? और क्यों सिर्फ एक धर्म विशेष ही अपनी आस्था को परे रखे ? ऐसा आप इसलिए कहते हो क्योकि वह लचीला है और आपको कुछ भी कहने सुनने का हक़ देता है ,यही बात यदि दुसरे धर्म की होती तो आपको आस्था कही रखने के बजाय शायद फिल्म को ही कही और रख के आना पड़ता ! ऐसा क्यों लगता है के सुधार की आवश्यकता मात्र इसी धर्म को है ? आपको नहीं लगता के आधी दुनिया को नरक बना देनेवाले और अपने धर्म के आलावा किन्ही और धर्म को न बर्दाश्त करनेवाले कट्टर पंथियों को सुधार की आवश्यकता है ज्यादा है ? किन्तु उस विषय पर गहनता से और ईमानदारी से कुछ बनाने दिखाने का साहस बोलीवूड में नहीं है ,
बेशक "पीके" एक बढ़िया फ़िल्म है । किन्तु आमिर भी हिम्मत उतनी ही दिखा
 पाये ढोंग पाखंड के खिलाफ जितनी उनकी हिम्मत थी । 
धर्म के सबसे बड़े आडम्बर के खिलाफ कुछ बोलने दिखाने की कुव्वत उनमे नहीं थी
 जिसकी उपज आज आतंकवाद है ।
पूरी तरह पक्षपाती फ़िल्म । लोग भी पता नहीं क्यों ऐसे समय में हद से ज्यादा समझदार बन जाते है या फिर हवा के रूख में बहने लगते है । 
भाई सब जिसकी तारीफ़ करे उसमे कुछ गलत मिलना भी तो आपकी मूर्खता या 
अज्ञानता ही कही जायेगी न ?
और कुछ लोग बेवजह फूल के कुप्पा हुए जा रहे है के आमिर ने भोजपुरी को सम्मान दिया 
बोलकर ( जबकि वह अवधि थी वो भी अशुद्ध ) तो भइया मुगालते में मत रहो कोई सम्मान वम्मान नहीं यह सिर्फ व्यापार है ।
फ़िल्म बढ़िया है लेकिन मैंने देखते वक्त कुछ आडम्बरो की बखिया 
उधेड़ने की उम्मीद पाली थी । लेकिन ऐसा नहीं हुवा क्योकि शायद अपनी हद उन्हें
 पता है के कहा बोलना है और कहा नहीं ।
गलत चीजो का विरोध करना या सुधार की उम्मीद करना गलत नहीं है किन्तु
 यह तब गलत हो जाता है जब आप किन्ही का बचाव और किन्ही की गलतिया सुधारने का प्रयत्न या दिखावा करना शुरू कर देते हो

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

फिल्म एक नजर में : एक्शन जैक्सन

निर्देशक : प्रभु देवा
कलाकार : अजय देवगन ,सोनाक्षी सिन्हा ,आनंद राज ,यामी गौतम

प्रभु देवा अपनी अलग तरह की एक्शन फिल्मो के लिए मशहूर है जो मॉस अपीलिंग होती है ,
वांटेड हो या रावडी राठोड ,दोनों फिल्मे चालू मसालों और एक्शन से भरपूर थी
जो बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रही !
प्रभु देवा ने हल ही में एक्क्षन इमेज के विपरित एक रोमांटिक फिल्म बनाई थी ‘रमैय्या वस्तावैय्या ‘
,जिसकी कमजोर कहानी और निर्देशन की वजह फिल्म औसत रही !
शायद इसीलिए प्रभु देवा ने पुनः एक्शन की और लौटने का मन बनाया और
 ‘एक्शन जैक्सन ‘ के रूप में फिर से एक एक्शन से भरपूर मसाला फिल्म प्रस्तुत है !
लेकिन इस बार वह बात नहीं बनी ,कुछ कमी अवश्य रह गयी ,मसाले कुछ ज्यादा ही तीखे हो गए !
विशी ( अज्जी देवगन ) एक मवाली है ,जो कुछ प्पैसो के लिए किसी की भी धुनाई कर सकता है !
किन्तु उस मवाली का भी एक अच्छा पहलु है के वहा सह्रदय व्यक्ति भी है जो किसी के दुःख से पसीज जाता है !
एक दिन एक अज्जिब घटनाक्रम में उसकी मुलाकात ‘ख़ुशी ‘( सोनाक्षी ) से होती है जो विशी को नग्न अवस्था में देख लेती है,दरअसल वह एक फूटी किस्मत की लडकी है किन्तु विशी से मुलाक़ात के
 बाद उसकी किस्मत बदल जाती है जिसका जिम्मेदार वह विशी को उस हालत में देखना मानती है
और वह अपना लक बदलने के लिए फिर से उसे उसी हालत में देखना चाहती है ( मूर्खता की हद है ) कुछ घटनाक्रम के पश्चात उसे विशी से प्यार हो जाता है ,लेकिन कहानी में तब ट्विस्ट आता है जब ‘एजे ‘ ( अजय देवगन दोहरी भूमिका में ) का प्रवेश होता है !
उधर कुछ गैंग्स्टर्स विशी के पीछे पड़ जाते है ,तब एजे की हकीकत विशी के सामने खुलती है ! और एजे विशी की मदद मांगता है ! दरअसल विशी एक इंटरनैशनल क्रिमिनल ‘जेवियर ‘( आनंद राज )
 के लिए काम करता था,और उस पर जेवियर की बहन ‘मरीना ‘ आकर्षित हो जाती है
और वह उसे हर हाल में पाना चाहती है ,लेकिन एजे ‘अनुषा ‘ ( यामी गौतम )
से प्यार करता है और वह ‘मरीना ‘ का प्रस्ताव ठुकरा देता है ,
जिसकी वजह से मरीना और जेवियर 'अनुषा ' की जान के पीछे पड़ जाते है ,
और एजे को मुंबई आने पर विवश होना पड़ता है !
अनुषा पर हुए जानलेवा हमले की वजह से वह अंडरग्राउंड है और अनुषा का इलाज करवा रहा है !
 वह कुछ समय के लिए विशि को अपनी जगह जाने को कहता है !
फिर क्या होता है यही बाकी कहानी है !
कहानी इतनी बिखरी हुयी है के सिर्फ टुकड़ो में ही अच्छी लगती है ,
एक जगह पर सोनाक्षी का संवाद है 'पहले यह 'सिंघम ' था लेकिन बदलने के बाद 'चिंगम ' बन गया ''
! यह संवाद इस फिल्म के लिए भी सटीक बैठता है ,चूँकि फिल्म सिर्फ सौ करोड़ी दो सौ करोड़ी क्लब के लिए ही बनायी गयी थी इसलिए शायद कहानी से कोई फर्क नहीं पड़ता ,
वैसे फिल्म को उम्मीद के मुताबिक बम्पर ओपनिंग नहीं मिली ,
पहले दिन तरह चौदह करोड़ का आंकड़ा ही पार कर पायी ,फिल्म में बैकग्राउंड बहुत अखरता है
 जो काफी बिखरा हुवा और अस्पष्ट है , बाकी अभिनय की बात करे तो अजय देवगन सामान्य रहे ,
विशि  के रोल में जहा हँसाते है वही एजे के किरदार में उलझे हुए लगते है !
सोनाक्षी ने अपनेआप को दोहराया है ,यामी गौतम को उल्लेख करने जितनी फूटेज भी नहीं मिली ,फिल्म के दो किरदार असर छोड़ जाते है जिसमे जेवियर बने आनंद राज अपने गेट अप और भारी आवाज के साथ खलनायक के रोल को पूरी तरह से जीते है ,डॉन की सनकी बहन के किरदार में 'मनस्वी ' भी न्याय करती है ,उनका किरदार बोल्ड एवं क्रूर था जो उन्होंने बढ़िया निभाया !
कुणाल रॉय कपूर विशि के दोस्त 'मूसा ' के किरदार में हल्के फुल्के क्षण जरूर दे जाते है
 जो फिल्म में राहत प्रदान करते है ! संगीत पक्ष में गीत रिलीज के एक हफ्ते बाद भुला दिए जायेंगे
 इसलिए उल्लेखनीय नहीं है ,एक्शन ओवर रहा है ,
वही केबल के पुराने ट्रिक्स जिन्हे देख देख कर दर्शक उकता चुके है !
एक्शन प्रधान फिल्म में एक्शन की क्वालिटी न होना अखरता है ,
कुल मिला कर प्रभु देवा ने इस बार वह कमाल नहीं दिखाया जिसकी उनसे अपेक्षा की  जाती है !
डेढ़ स्टार
देवेन पाण्डेय

शनिवार, 29 नवंबर 2014

फिल्म एक नजर में : ऊँगली


निर्माता : करन जौहर ,हीरू यश जौहर
कथा, निर्देशन :रेंसिल डिसिल्वा
कलाकार : इमरान हाशमी ,रणदीप हुडा ,कंगना रानौत ,
संजय दत्त ,नेहा धुपिया ,अंगद बेदी ,नील भुपालम .
धर्मा प्रोड्क्शन भी अब कुछ अरसे से थोड़ी लिक से हटकर फिल्मे बनाने पर ध्यान दे रहा है
 ज्जिसकी अगली कड़ी में इस हफ्ते रिलीज हुयी है ‘ऊँगली ‘! 
यह फिल्म काफी समय से बन रही थी और कुछ कारणों की वजह से प्रदर्शन में हद से
 अधिक देरी भी हुयी ,
जिसका असर फिल्म पर साफ़ नजर आता है .
कहानी : अभय ( रणदीप हूडा ) एक क्राईम न्यूज रिपोर्टर है ,
जो कुछ मित्रो के साथ मिलकर इस भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ गुप्त रूप से अभियान छेड़े हुए है ,
 ये खुद को ऊँगली गैंग के नाम से भी बुलाते है !
भ्रष्टाचार के खिलाफ इनकी लडाई से भ्रष्टाचारियो में भय व्याप्त है ,
और इनपर लगाम कसने के लिए एसीपी ‘अशोक काले ‘ ( संजय दत्त ) 
को नियुक्त किया जाता है ! काले इस गैंग की तह तक पहुँचने के लिए आपराधिक प्रवृत्ति के 
पुलिस ऑफिसर ‘निखिल ‘ ( इमरान हाशमी ) की सहायता लेता है ,
और उसे अपना अंडर कवर एजेंट बनाकर ऊँगली गैंग में भेजता है !
 निखिल ‘अभय ‘ का यकींन जीतकर उनकी गैंग में शामिल हो जाता है ,
किन्तु वह इनकी विचारधारा से प्रभावित होकर इनका साथ देता है ! 
काले निखिल से इसके लिए खफा है ,ललेकिन ईमानदार काले के 
जीवन में एक ऐसा पल आता है
 जो उसे इस भ्रष्ट तंत्र और उसकी बेबसी से रूबरू कराता है ,
फिर क्या होता है ,
घटनाए क्या मोड़ लेती है ,ऊँगली गैंग और निखिल की जुगलबंदी क्या क्या 
गुल खिलाती है ,
और कैसे काले इस भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ता है ,यही बाकी कहानी है .
फिल्म की कहानी दिलचस्प जरुर है लेकिन प्रभाव नहीं छोड़ पाती !
 भ्रष्टाचार तो है लकिन उसकी गहराई नहीं है ,घटनाए अपेक्षित है और दर्शक पहले से ही 
होनेवाली बातो का अंदाजा लगा सकता है ! कहानी में ज्यादा घुमावदार पेंच नहीं है 
,सीधी सपाट कहानी है जो फिल्म को जटिल बनाने से रोकती है ,हल्की फुलकी फिल्म है 
जो समझ सके तो सन्देश भी देती है ! 
अभिनय की बात करे तो सभी ने अपने अपने चरित्र के अनुरूप अभिनय किया है ,
संतुलन बनाये रखा ,न कही लाउड और न कही औसत , 
संजय दत्त फिलहाल जेल में है किन्तु उनके हिस्से की शूटिंग पहली ही हो चुकी थी ! 
फिल्म में उनकी मौजूदगी एक नायक के बजाय एक चरित्र अभिनेता के तौर पर होती है ,ब
ढती उम्र चेहरे पर असर दिखा रही है और इसे स्वीकार करते हुए चरित्र अभिनेता के
 किरदार में नजर आना एक समझदारी भरा कदम है ,नेहा धूपिया छोटे से किरदार में है,
 जो सिर्फ कहानी में कुछ पल बढाने के ही काम आते है, कोई उल्लेखनीय नहीं ! 
यही हाल मेहमान कलाकर बने ‘अरुणोदय सिंग ‘ के लिए भी लागू होती है .
संगीत पक्ष कमजोर है ,जो फिल्म को बेवजह खींचती है ! 
खानापूर्ति कर दी गयी है बस .
ढाई स्टार
देवेन पाण्डेय 

सोमवार, 24 नवंबर 2014

फिल्म एक नजर में : टीनेज म्युटंट निंजा टर्टल

माईकल बे की एक और शानदार एक्शनपैक्ड प्रस्तुती ,
फिल्म आधारित है लोकप्रिय चरित्र ‘निंजा टर्टल्स ‘ पर जिन्हें एनिमेशन सीरिज
 में खासा पसंद किया जाता रहा है ,फिल्म की कहानी की शुरुवात होती है ‘एप्रिल ओनिर ‘ से
 जो की एक मिडिया हाउस में जर्नलिस्ट है ! 
और जिसने कभी कोई सनसनीखेज न्यूज नहीं दी है जिस वजह से वह ऑफिस में 
मजाक का पात्र बनती रहती है ,उन दिनों शहर में एक निंजा अपराधी दल सक्रीय है 
जिसे ‘फूटलैंड’ दल कहा जाता है ,जिसका मुखिया है एक खूंखार और मार्शल आर्ट्स 
का ज्ञाता ‘श्रेडर ‘जो न्युयोर्क पर एक अनजान साजिश की अगुआई कर रहा है ! 
इत्तेफाक से एक दिन एप्रिल ‘फूटलैंड ‘ दल की एक वारदात का गवाह बनती है 
जिसे एक अनजान भीमकाय मानव सदृश्य प्राणी आकर रोकता है 
जो बेमिसाल शक्ति का मालिक है ,जिसके चलते फूटलैंड दल को फरार होना पड़ता है !
 एप्रिल अपनी छानबीन में इस नातिजेपर पहुँचती है के फूटलैंड दल 
पर इससे पहले भी हमले हो चुके है और हमले में इसी तरह के संदिग्ध का हाथ है ! 
वह उन्हें रक्षक का नाम देती है .
और उनकी खोजबीन में लग जाती है ,किसी को उसपर विश्वास नहीं के शहर में 
ऐसा कोई रक्षक घूम रहा है ! अपने दल पर होते हमलो से ‘श्रेडर ‘ चिंतित है 
और उन हमलावरों को पकड़ने के लिए एक मेट्रो स्टेशन पर हमला करवा देता है 
,जिन्हें वे रक्षक नाकाम कर देते है ! किन्तु यही एप्रिल का उनसे सामना होता है 
तो वह भौचक्की रह जाती है ,जिन्हें वह रक्षक कहती है वह असल में चार मानवसदृश्य 
भीमकाय कछुए है ! वे एप्रिल को अपना राज राज रखने की चेतावनी देकर चले जाते है !
दूसरी और ‘सैक्स इण्डस्ट्रीज ‘ का चीफ ‘एलन सैक्स ‘ भी इन ‘कछुवो ‘ के पीछे पड़ा है ,
और वह एप्रिल का इस्तेमाल करके उन तक पहुंचना चाहता है ! 
लेकिन वे कछुए अकेले नहीं है ,बल्कि उनके साथ उन्ही की तरह एक मानवसदृश चूहा भी है
 जिसे वे कछुए अपना पिता कहते है ,वह उन्हें एप्रिल को अपने पास लाने के लिए कहता है
 क्योकि श्रेडर एप्रिल की पीछे पड़ चूका है ! 
एप्रिल उनके पास आती है तब उसे पता चलता है के उसके मरहूम पिता और एलन सैक्स के
 मिले जुले प्रयोग के फलस्वरूप ये कछुए और चूहे में बदलाव ए है और
 वे अतिमानव में बदले है ,
बचपन में एप्रिल ने ही उनकी जान भी बचायी थी इसलिए वे एप्रिल के अहसानमन्द है !
एप्रिल का पीछा करते हुए श्रेडर अपने दल बल सहित उन तक पहुँच जाता है 
और मास्टर को घायल करके तीन टर्टल्स को बंदी बना लेता है ,
उसका मकसद उनके खून में मिले हुए म्युटेजन से वायरस बनाकर न्युयोर्क में तबाही लाने का है ,
 क्या वह अपने मकसद में कामयाब हो पायेगा ?
 निंजा टर्टल्स उसे कैसे रोकते है यही बाकी कहानी है .
फिल्म में कॉमेडी तो है ही ,साथ में एक्शन का जोरदार डोज भी है ! 
खासतौर से वह दृश्य जिनमे बर्फीली पहाडियों में टर्टल्स और श्रेडर दल एकदूसरे का पीछा करते है 
,कमाल का फिल्मांकन एवं गजब के स्पेशल इफेक्ट्स जो आपको दांतों तले ऊँगली दबाने एवं
 तालिया बजाने पर मजबूर कर देते है !
माईकल बे की फिल्म है तो भव्यता बरकरार है ,एक्शन प्रेमी निराश नहीं होंगे !
 मनोरंजन से भरपूर फिल्म है ,
चार स्टार

देवेन पाण्डेय 

शनिवार, 22 नवंबर 2014

फिल्म एक नजर में : हैप्पी एंडिंग

इस महीने दो फिल्मे आई जिनमे गोविंदा दोबारा दिखे तो 
कुछ उम्मीद बंधी के वे
 फिर अपना जलवा दोहराएंगे !किन्तु ‘किल दिल ‘ की तरह उनका किरदार भी इस
 फिल्म में मात्र मुश्किल से पन्द्रह बीस मिनट का रहा , 
फीर भी गोविंदा जितनी बार दिखे,उतनी बार चेहरे पर कुछ मुस्कान जरुर बिखेरी ! 
लेकिन बात करते है फिल्म के असल नायक ‘सैफ अली खान ‘ की ,
क्योकि फिल्म उन्ही पर केन्द्रित है !
‘यूडी’ ( सैफ ) ने इक बेस्ट सेलर बुक लिखी है ,
जिसकी रोयल्टी से वह अपनी जिन्दगी मजे में गुजार रहा है ! 
उस एक पुस्तक के कारण उसे इतनी रोयल्टी मिली के उसने दोबारा कोई पुस्तक नहीं लिखी ,
और अपनी अय्याशियों में व्यस्त रहा ,
उसकी आँखे तब खुलती है जब एक नयी राईटर ‘आंचल ‘
 (इलियाना डिक्रूज )बेस्ट सेलर का खिताब पाती है और यूडी की रोयल्टी बंद हो जाती है ,
अब यूडी कंगाल हो चूका है और उसे अब दोबारा कुछ लिखना है ,
लेकिन वह लिख पाने में खुद को असमर्थ पाता है ,
ऐसे में उसका प्रकाशक उसके आस एक फिल्म का ऑफर लेकर आता है जो 
‘अरमान’( गोविंदा ) के लिए बन रही है ! अरमान अपनी फिल्म को अलग अलग फिल्मो से 
कहानिया उठाकर बनाना चाहता है लेकिन ‘यूडी ‘ 
उसे कुछ हटके लिखने के लियी कहता है तो अरमान उसे कुछ समय देता है 
कहानी लिखने के लिए !
अब ‘यूडी ‘ आंचल से नजदीकी बढाता है ताकि वह उससे प्रेरणा लेकर कुछ लिख सके ,
लेकीन होता इसके उल्टा है ! यूडी कभी किसी के साथ रिलेशन में नहीं रहा ,
उसके लिए रीश्ते सिर्फ कुछ दिनों के लिए होते है कोई भावनात्मक लगाव नहीं ! 
किन्तु कूछ घटनाओ के पश्चात ‘आंचल ‘ और ‘यूडी ‘ नजदीक हो जाते है ( आजकल फिल्मो में ‘नजदीक’ का 
अर्थ कुछ अलग ही है ) इसे बावजूद दोनों रिश्ते को लेकर कन्फ्यूज है
 ( उबासी आने लगी है अब रिश्तो को लेकर ऐसी कन्फ्यूजन वाली फिल्मो से ) फीर क्या होता है ,
यूडी और आंचल के रिश्ते को क्या मोड़ मिलता है ,यही बाकी कहानी है
 ( अरमान की कहानी भूल ही जाईये )
यह थी फिल्म की कहानी ,फिल्म में गोविंदा ने एक जगह कहा है के ‘कहानी का फर्स्ट हाफ बेटर था
 लेकिन सेकंड स्लो ‘ वही बात यहाँ भी है ! सैफ अब ऐसी भूमिकाओ में पता नहीं क्यों खुद को दोहरा रहे है ,
एक फ़्लर्ट इन्सान ,पैसे वाला ,शराब और पार्टी का शौक़ीन ,
कपड़ो की तरह लडकिया बदलनेवाला ,चालीस पचास की उम्र तक शादी न करनेवाला ,फीर एक दोस्त से मिलना ,
 दोस्ती का प्यार में बदलना ( जो पहले बेड से शुरू होकर फिर दिल में उतरता है ) ,
फिर रिश्ते को लेकर कन्फ्यूजन ,लड़का स्वीकार करे तो लडकी कन्फ्यूज !
इन सबमे वही तो है जो पिछली फिल्मो ‘लव आजकल ,कॉकटेल , आदि में है !
 कुछ नया सा प्रतीत ही नहीं होता ,फिल्म में ‘रणवीर शौरी ,कल्कि कोचलिन ,प्रीटी जिंटा ‘
 छोटी छोटी भूमिकाओ में है और अच्छे लगते है ,कल्कि थोड़ी ओवर लगी 
किन्तु शायद उनका किरदार ही ऐसा था ! ‘गोविंदा ‘ को लेकर अब यह लगने लगा है के
 कही वह अब सिर्फ ‘मेहमान ‘ भूमिकाओं में ही न नजर आने लगे ! 
सैफ के किरदार अब उम्र के हिसाब से मैच्योर लगने के बजाय बचकाने से प्रतीत होने लगे है ,
उन्हें दोहराव से बचना चाहिए ,एक ही तरह के किरदार हर फिल्म में करना उन्हें सिमित ही 
करेगा और कुछ नहीं ! फिल्म के संगीत से ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती 
,एकाध धीमे गीत जरुर सुनने में अच्छे लगते है 
लेकिन याद रखने के लिए खासा जोर देना पड़ता है दिमाग पर ,
फिल्म में ऐसा कुछ नहीं जिसे न देखा तो अफ़सोस हो ,
डेढ़ स्टार

देवेन पाण्डेय 

मंगलवार, 11 नवंबर 2014

फिल्म एक नजर में : दी बुक ऑफ़ एली ( 2010 )

फिल्म का कांसेप्ट काफी अनुठा है ! फिल्म की कहानी परमाणु हमलो से तबाह हो चुकी ऐसी धरती की है ,जो आज हर चीज को मोहताज है ,उस युद्ध को बीस साल बीत चुके है ! एक पूरी पीढ़ी और युग उस समय के साथ नष्ट हो गयी ,
अब बचे है सर नयी पीढ़ी जिसने युद्ध के पहले की दुनिया नहीं देखि ! वह हर उस चीज से अंनजान है जो उनके जन्म के पहले की है ! दुनिया के संसाधन खत्म हो चुके है ,विकिरणों से सूरज की तीव्र गर्मी सीधे धरती पर पहुँच रही है जिसके कारण बरसात भी नहीं होती ! लोग मामूली सी चीजो के लिए भी किसी की हटी कर देते है ! इंसानी जान सस्ती है रोटी के चंद टुकडो से ,ऐसे में एक बुढा जिसक नाम “एली ‘ है ,जो एक बंजारे जैसी जिन्दगी जी रहा है ,बहुत कम लोग बचे है जो उसकी उम्र के है और जिन्होंने धरती को पहले जैसा देखा है !उसके पास एक किताब है ,जिसकी वह हिफाजत कर रहा है ,वह थोडा सनकी लेकिन गजब का लड़ाका है ! तो वही दूसरी और एक छोटा सा क़स्बा है जहा एक महत्वकांक्षी व्यक्ति अपनी सत्ता चलाना चाहता है ,वह भी एली की उम्र का है और वह एक किताब की तलाश में है जिसके शब्दों का सहारा लेकर वह नयी दुनिया पर अपनी हुकुमत चाहता है ,वह लोगो को उस पुस्तक के शब्दों से काबू करना चाहता है ,और वही पुस्तक एली के पास है ,और वह है ‘बाईबल’ जो पृथ्वी पर बची एकमात्र बाईबल है ,उस युद्ध के समय दुनिया की सारी धार्मिक पुस्तको को नष्ट कर दिया गया है ,इसलिए युद्ध के पश्चात बचे लोगो के पास कोई मार्गदर्शन नहीं है ! संयोग से एली भी उसी कसबे में आता है ,जहा के शाषक को एली के पास पुस्तक होने का संदेह होता है ,वह उस पुस्तक को हथियाने के लिए वह की एक लडकी ‘सुमायरा ‘ का इस्तेमाल करने की कोशिश करता है ,लेकिन एली उनके कब्जे से निकल जाता है और सुमायरा भी एली के साथ निकल जाती है ,अब शाषक उस पुस्तक को पाने की चाहत में एली के पीछे है और एली उस पुस्तक को बचाकर दूर कही ‘वेस्ट ‘ में ले जाना चाहता है जहा स उसका प्रसार कर सके !फिर क्या होता है यही आगे की कहानी है ! बड़ी ही दिलचस्प कहानी बुनी गयी है ,इस कहानी की विशेषता यह है के आप इसे किसी एक धर्म से जोड़ कर देखने के बजाय हर धर्म से जोड़ कर देख सकते है ! बाईबल की जगह पर एनी ग्रन्थ भी रख सकते है !मर्म वही रहेगा ,भटके एवं मार्गदर्शन रहित समाज को प्रेरणा एवं सही रह दिखाने का एकमात्र जरिया यह पुस्तके ही है ,एक पूरी पीढ़ी जो इन ग्रंथो के महत्व से अनजान है किस कदर बंजारों की भाँती भटक रही है ,इंसानियत कैसे लुप्त हो चुकी है ,इन सबका विस्तृत वर्णन किया गया है !नही नही ,यह कोई आर्ट फिल्म या धीमी बोरिंग फिल्म नहीं है ! यह एक्शन और थ्रिल से भरपूर फिल्म है जो कुछ सोचने पर मजबूर करती है ,फिल्म की कहानी और इन पुस्तको की महत्ता बहुत सामायिक है ,फिल्म की शुरुवात और फिल्म का अंत दोनों एकदम विपरीत है ,शुरुवात जहा हिंसा से होगी ,मानवता के विद्रूप स्वरूप से होगी तो वही अंत एक शांति का अहसास देता है जो एक खूंखार व्यक्ति को संत बना देता है ! जिसने ईश्वर का रास्ता अपनाया उसने सबकुछ खोकर भी संतोष पाया मोक्ष पाया ,आर जिसने ईश्वर की राह छोड़ी उसने सबकुछ पाकर भी सब खो दिया ,देखने लायक फिल्म है ,अवश्य देखे .चार स्टार देवेन पाण्डेय

सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

फिल्म एक नजर में : हैप्पी न्यु ईयर

फिल्म एक नजर में : हैप्पी न्यु ईयर 

फिल्म ने रिलिज के पहले दिन ही कई कीर्तिमान स्थापित कर दिए । 
शाहरुख़ ,फराह ने फिल्म के प्रमोशन में पैसा पानी की तरह बहाया ,
सुनने में तो यहाँ तक आया के इस फिल्म की रिलीज के लिए मैदान साफ़ रखने खातिर अपने प्रभाव से
किसी और फिल्म को इस हफ्ते रिलीज ही नहीं होने दिया गया 
,जिसमे कई होलीवुड फिल्म्स भी शामिल थी ।
वजह साफ़ थी ,इस फिल्म के लिए दिवाली की चार दिन की छुट्टियो को कैश करना ।
और वैसे भी दर्शक त्योहारी सीजन में दिमाग पर जोर डालनेवाली फिल्मो से दूर ही रहता है ,
उसे सिर्फ पैसा वसूल मनोरंजन चाहिए,जिसका पूरा फायदा "हैप्पी न्यु ईयर" को मिला .
कहानी : चार्ली (शाहरुख़ खान ) एक जिन्दगी से हारा हुवा व्यक्ति है,फ़िल्मी भाषा में कहे तो "लूजर" है
( पता नहीं बोलीवूड में हर फिल्म में नायक "लूजर" क्यों होता जा रहा है ) "चरण ग्रोवर"
( जैकी श्रोफ़ ) की वजह से चार्ली अपने पिता और सम्मान को खो चूका है। 
उसकी जिन्दगी का एक ही मकसद है ,ग्रोवर को बर्बाद करके अपना इंतकाम लेना
( नहीं नहीं उबासी मत लीजिये ) चार्ली दिन भर सिर्फ प्लान बना रहा है उसके पास यही एक काम बचा है ,
खाली समय में वह अपनी पुरानी हिट फिल्मो के डायलोग मारते रहता है । 
अब चार्ली चाहता है के वह ग्रोवर की सिक्योरिटी से तीन सौ करोड़ डालर के हीरे
चुराकर उससे बदला लेकर अपने जीवन का ध्येय पूरा करे,और यह काम वह अकेला नहीं कर सकता
( वैसे फराह चाहे तो कर सकता है )
वह एक प्लान बनाता है जिसके तहत वह ग्रोवर द्वारा आयोजित वर्ल्ड डांस कंपटिशन में हिस्सा लेकर उसकी
आँखों में धुल झौंक कर हीरे उडाना चाहता है ,उसकी टीम में है
बार डांसर मोहिनी जोशी (दीपिका पादुकोण), चॉल में रहने वाला अव्वल शराबी नंदू भिड़े
(अभिषेक बच्चन), चार्ली के पिता का ख़ास दोस्त टैमी (बमन ईरानी), भूतपूर्व सैनिक जगमोहन (सोनू सूद) और 
हैकिंग में माहिर रोहन सिंह(विवान शाह) मोहिनी का काम इन सबको डांस सिखाना है
ताकि वे इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले सके । चार्ली उसे अपने असल मकसद से अनजान रखता है,
और अपनी चालबाजियो और प्लान की बदौलत चार्ली एंड टीम फाइनल तक पहुँच भी जाती है।
फिर शुरू होता है उनका असली प्लान जिसमे वो कामयाब होते है या नहीं यह अगला भाग है ।
फिल्म में कॉमेडी है जो हंसने पर मजबूर तो करती है लेकिन इमोशन नहीं है ,कहानी को कई जगह बेवजह खिंचा गया है 
खासतौर से शुरुवाती एक घंटे को,जिसे एडिटिंग से और कम किया जा सकता था । 
डांस के आड़ में चोरी कुछ बहुत ज्यादा लंबी और बचकानी कोशिश प्रतीत होती है, फिल्म हल्की फुल्की है,
त्योहारी सीजन है तो अब मिठाई की जगह कागज के चमकदार ठोंगे में सजाई गई चाकलेट की कतरनों की ज्यादा मांग है
जिसमे मूल भावना और क्वालिटी की उम्मीद बेमानी है । 
यही हाल इस फिल्म का भी है,इसकी तुलना उसी ठोंगे वाली चाकलेट से की जा सकती है। 
मनोरंजन जरुर है लेकिन कुछ नयापन नहीं है,शाहरुख के आठ पैक्स से कहानी में कुछ नयापन आया ऐसा नहीं लगा, 
हा चेहरे पर झलकते बुढ़ापे के बावजूद उनकी एनर्जी तारीफ़ की हकदार जरुर है,दीपिका का रोल भी सही था 
लेकिन उन्हें जबरदस्ती मराठी दिखाने के लिए उस एक्सेंट में बोलते दिखाना गैरजरुरी लगा 
,शायद चेन्नई एक्सप्रेस का फंडा आजमाने की कोशिश । इसके बावजूद दीपिका का अभिनय अच्छा है 
( वैसे भी फिल्म नायक प्रधान हो तो भूमिका अच्छी हो या न हो इससे कोई फर्क नही पड़ता ) 
अभिषेक कॉमेडी के नाम पर उल जलूल हरकते करते नजर आये है इसके बावजूद वे हंसाने में कामयाब रहे है
,बोमन के बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर सकते क्योकि उनका काम सबको पता है,स्वाभाविक अभिनय है
जो उनकी पहचान है,सोनू सूद बड़ी तेजी से कॉमेडी किरदारों में उभर रहे है 
जो के अच्छा है या बुरा पता नहीं ,उनके हिस्से में कुछ बहुत ज्यादा लाउड दृश्य आये है जो फिल्म के मिजाज के हिसाब से सही है
विवान शाह को लैपटॉप पकड़ा दिया गया है तो वे अभिनय कम दिखा पाए है 
और जैकी श्रोफ़ दोहराव वाली भूमिका में है,कुछ नया या तो कर नहीं पा रहे या मौका नहीं मिल पा रहा ।
फिल्म डांस और डकैती वाले कांसेप्ट पर है जिसमे डांस और चोरी की लजीज बिरयानी बनाने के चक्कर में खिचड़ी बन गई है
जो लजीज तो नहीं है लेकिन हर किसी के मतलब की चीज जरुर है।
वर्ल्ड डांस जैसा कांसेप्ट है लेकिन एक भी डांस ऐसा नहीं जो लोकल रियलिटी शो के लेवल का भी हो ,
कहानी के हिसाब से बेहतर डांस मूव्स की उम्मीद रहती है लेकिन बोलीवूड के प्राचीन मसालों और नुस्खो के
चलते यह एंगल निराश करता है,फिल्म अंतिम क्षणों में दिलचस्प हो जाती है जो के सुखद है।
फिल्म में विशाल और अनुराग कश्यप भी है जो मेहमान भूमिका के नाम पर फूहड़ अभिनय करते नजर आते है
( विशाल का तो समझ में आता है,लेकिन अनुराग की कौन सी मज़बूरी थी ?)
संगीत पक्ष में सिर्फ "मनवा लागे" ही एकमात्र गीत है जो मधुर है और याद रह जाता है,बाकी सब तो शोर शराबा है।
"इण्डिया वाले" में शोरशराबा और कर्कश संगीत ही है जो याद ही नहीं रहता (जो अच्छी बात है )
चमक दमक और भव्य सेट की आड़ में एक कमजोर कहानी को प्रस्तुत किया गया है जो हिस्सों में अच्छी लगती है
कुल मिलाकर यदि आपको मसालों से परहेज नहीं और बिना दिमाग पर जोर डाले तर्कों को दरकिनार करके मनोरंजन पसंद आता है
तो फिल्म देख सकते है।
दो स्टार
देवेन पाण्डेय

सम्पर्क करे ( Contact us )

नाम

ईमेल *

संदेश *