शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

बोनस


 
सुरेश झुंझलाया हुवा था ! आखिर साल भर के इन्तेजार के बाद बोनस मिला था , खुश होने के बजाय वह काफी नाराज था .
 
यह क्या है यार ? हमें कहा गया था के बोनस में एक बेसिक सैलरी मिलेगी ! और हाथ में थमा दिया गया यह , आधी बेसिक से भी कम
 
जाने दे सुरेश ! अब गुस्सा करने से क्या फायदा है ? मैनेजमेंट ने कह तो दिया की ईस बार कम्पनी काफी घाटे में रही है , इसके बावजूद अगर हमें बोनस के तौर पर कुछ दिया है तो हमें इसमें खुश ही होना चाहिये ! खामखाह दिल छोटा क्यों करता है ? दो दिन बाद दिवाली है ,मूड मत खराब कर .
 
सतीश जो के राजेश का अच्छा मित्र एवं सहकर्मी था ,राजेश को समझाते हुये कह रहा था .
तू नहीं समझता सतीश ! यह मैनेजमेंट के चोंचले है ,कहते है कम्पनी घाटे में थी ! मै कहता हु क्या कम्पनी जब फायदे में होती है क्या तब कर्मचारियों को अलग से कुछ देती है क्या ? नहीं न ! फिर यह कटौती सिर्फ हमारे बोनस में ही क्यों ? सुरेश शुब्ध था ! हो भी क्यों ना ? काफी दिनों से वही पुराना मोबाईल ईस्तेमाल कर रहा था ! हर बार सोचता था के ईस सैलरी में एक बढ़िया सा ‘स्मार्ट फोन ‘ तो ले ही लेगा .
लेकिन सारी सैलरी तो आजीविका निभाने में ही खत्म हो जाती थी ,ऊपर से फ़्लैट के लिये हुवा लोन भी हर माह सैलरी से कट जाता है ! जो बचता था उसमे महीने का खर्चा भी तो चलाना पड़ता है !लेकिन मैनेजमेंट को इन सबसे क्या लेना देना ! उन्हें तो सिर्फ बहाने बना कर कर्मचारियों का खून चुसना भर आता है .
 
तू ही बता सतीश , पच्चीस हजार की मामूली सी सैलरी में आखिर क्या क्या करू ? दस हजार घर की किश्त में कट जाते है फिर बिजली बिल ,महीने का राशन , छोटू की फीस माँ –बाप का खर्चा ,अंजली को भी तो पैसे पकड़ाने होते है , सोचा था के ईस बार दिवाली का बोनस मिलेगा तो एक स्मार्ट फोन ले ही लूँगा ! लेकिन अब इतने में क्या लूँगा ?
 
सतीश ,समझ गया था के सुरेश काफी नाराज है ! उसे समझाना व्यर्थ है ,बात टालने की गरज से उसने कहा .
 
चल यार ऑफिस के बाद कही बैठते है ! थोडा गम गलत कर लिया जाये ,काफी दिन हो गये साथ ड्रिंक किये हुये
 
ठीक है सुरेश की भी सहमती बन गई ! उसे याद नहीं आ रहा था के वह पिछली बार कब बैठा था ,जिन्दगी संवारने की जद्दोजहद में उसने अपने शौको से मुह फेर लिया था ! एक अरसा हो गया था थियेटर में फिल्म देखे हुये ! घर खरीदने के लिये लोन तो पास हो ही गया था ,लेकिन डाउनपेमेंट भी तो देना होता है ! जो भी सेविंग्स थी सब निकल गई .
 
ठीक छह बजे ! रोज की तरह सुरेश ने अपना बैग भरा ,सभी सहकर्मियों से विदा ली .
 
‘हैप्पी दिवाली ‘ बॉस की आवाज ने मानो सुरेश के जले पर नमक छिडक दिया !
 
आपको भी दीपावली की शुभकामनाये सर सुरेश ने अनिच्छा से बॉस को हाथ मिलाते हुये शुभकामनाये दी .
 
हां आपके लिये तो है हैप्पी दिवाली ! मोटा बोनस मिला होगा , आप लोगो पर थोड़े ही कम्पनी के नफे-नुकसान  लागू होते है ! वह तो सिर्फ हम कर्मचारियों के लिये है सुरेश अपनी मन की बात मन में ही रखे था .
 
औपचारिकताये पूर्ण करने करने के पश्चात ,सतीश और सुरेश साथ चल दिये .
 
चूँकि स्टेशन ज्यादा दूर नहीं था इसलिये दोनों पैदल ही चल दिये ! कंधो पर लटकता बैग मानो उसे दुनिया सबसे बड़ा बोझ प्रतीत हो रहा था .
 
सुरेश जाने दे भाई ,अब मूड मत खराब कर ! हमें तो यार बोनस भी मिल गया ,लेकिन बॉस को तो वह भी नहीं मिला ! फिर भी उन्होंने देखो हमें कैसे शुभकामनाये दी .
 
उसकी साईड मत ले सतीश ! उसे बोनस ना भी मिले तो भी क्या फर्क पड़ता है ? पचास हजार की सैलरी मुझे मिले तो मै भी कभी बोनस ना मांगु सुरेश को सतीश की बॉस तरफदारी करना अच्छा नहीं लगा था .
 
तो देखिये किस कदर यह बच्ची अपनी जान जोखिम में डालते हुये ईस रस्सी पर चलकर दिखायेगी ! और भी कई कारनामे जिसे देख कर आप हैरत में पड़ जायेंगे ! आईये साहेबान ,आईये .ढोल की थाप पर आती ईस आवाज ने सुरेश की तन्द्रा भंग की .
 
सुरेश  ! लगता है कोई मदारी –वदारी टाईप का खेल हो रहा है ,काफी लाग खड़े है चल देखते है
 
सतीश ने सुरेश का मूड बदलने की गरज से कहां ! और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये उसे खींचता चला गया .
 
भीड़ चीरते हुये दोनों आगे पहुंचे ! एक छोटी सी बच्ची जिसकी उम्र मुश्किल से चार या पांच साल होगी! मैले कपडे पहें हुये ,जिसमे जगह जगह पैबंद लगे हुये थे , एक संकरे रिंग में से अपना पूरा शरीर ईस कदर निकाल रही थी के देखने वालो आँखे आश्चर्य से फ़ैल गई .
 
शाबास मुनिया ! अब देखिये कदरदान ,किस तरह से यह छोटी बच्ची इन अंगारों पर नंगे पाँव चल कर दिखायेगी दस साल का बच्चा जो के रंगत में कोयले को भी मात दे रहा था ! अपनी कमर में लटके हुये ढोल पर थाप देते हुये कह रहा था .
 
सुरेश हैरत से यह देख रहा था ! और लडकी ने दहकते शोलो पर चलना आरम्भ किया ,उसके चेहरे पर कोई शिकन तक थी , काफी देर तक उसका यह क्रम चलता रहा .
 
सुरेश ,क्या उस बच्ची को दर्द नहीं हो रहा होगा ?
 
सतीश ! यह इनकी ट्रेनिंग का हिस्सा है ,यह नियमित अभ्यास के बाद ईस क्रिया के आदि हो चुके है !
 
अब लड़की आठ फुट ऊपर रस्सी पर चलते हुये करतब दिखायेगी लडके की आवाज ने दोनों का ध्यान अपनी ओर खिंचा .
 
लडकी अब दो बॉस के सहारे खड़े खम्बो पर बंधी रस्सी पर खड़ी थी ! वह अपना संतुलन बनाने की कोशिश कर रही थी ! और उसने रस्सी पर चलना शुरू किया ! एक राउंड पार करने के बाद दुसरे राउंड में उसने रस्सी पर चलते हुये करतब दिखाने शुरू कर दिये ! दर्शको के साथ साथ सुरेश और सतीश की सांसे भी हलक में अटक गई .
 
लडकी एक बारगी लडखडाई ! और दर्शको की चीख निकल गई ,सुरेश ने मन ही मन ईश्वर से लडकी की सलामती की प्रार्थना की .
 
लेकिन अचानक लडकी का संतुलन बिगड़ा ! ईस से पहले के वह खुद को सम्भालती , उसका नाजुक शरीर कठोर जमीन टकरा गया ! लडका ढोल फेंक कर लडकी की ओर दौड़ पड़ा .
 
लडकी के सर में चोट लगी जिस से उसका खून बहने लगा ! लेकिन आश्चर्य यह था के इतनी चोट के बावजूद लडकी रो नहीं रही थी ,वह खड़ी होने का प्रयत्न कर रही थी ,उसे चोट लगने का दर्द नहीं था ,उसे डर यह था के लोगो को खेल पसंद नहीं आया ! खेल पसंद नहीं यानी के पैसे नहीं .
 
और वही हुवा ! दुनिया के झंझटो में ना पडनेवाली भीड़ चुपचाप खिसक लगी ,लेकिन सुरेश उस लडकी की ओर बढ़ा जो उस लडके की गोद में थी ! लड़का अपने मैले बुस्शर्ट से उसके माथे का खून पोंछ रहा था .
 
सतीश भी सुरेश के साथ आगे बढा .
 
ईसे चोट लगी है ! सिर से खून बह रहा है ,ईलाज करवाना होगा नहीं तो कुछ भी हो सकता है सुरेश ने बच्चे की ओर देखते हुये कहा .
 
कुछ नहीं होगा साब ! ये ठीक हो जायेगी ,घर जाकर हल्दी लगा दूंगा लडके ने सुरेश की ओर देखते हुये कहा .
 
यह गंभीर चोट है बच्चे !  दवाखाने ले जाना  होगा सुरेश ने बच्ची को टटोलते हुये कहा .
 
साब अगर दवाखाने ले जाने के पैसे होते तो दो वक्त का खाना ना खा लेते हम ?
 
बच्चे के ईन शब्दों ने सुरेश के हृदय को भेद दिया .
 
उसने बच्ची को गोद में उठाया ! सतीश ने भी सहायता की .
 
चलो मेरे साथ कहते हुये सुरेश ने ऑटो रुकवाई .
 
दवाखाने में लड़की की मरहमपट्टी की गई ! चार टाँके लगे , दवाईया लिखी गई !
 
सुरेश ने जेब टटोली और पैसे निकाल कर दवाखाने और दवाई का खर्चा निकाला .
 
वह लड़का कृतग्य भाव से सुरेश को देखता रहा .
 
नाम क्या है तुम्हारा ? सुरेश ने पूछा .
 
फजलु है साब जी लड़के ने जवाब दिया और ईस से पहले के सुरेश कुछ और पूछे उसने खुद ही कहना शुरू कर दिया .
 
वह मेरी बहन है मुनिया नाम है उसका ,हम शहर के बाहर की बस्ती में रहते है ! प्लास्टिक की तालपत्री से बना हुवा घर  है साब ! बापू शराब के चलते ख़तम हो गया ! माँ को तो बचपन में ही खो दिया था ,हम दोनों ही बस्ती के बुजुर्गो से यह सब सीखते है जिसे हम सडको पर दिखाते है
 
तो पढाई कब करते हो ? ‘सतीश ने पूछा .
 
क्या साब ? हमारे हुलिये से आपको लगता है के हमने कभी स्कूल का मुंह भी देखा है ? हम को खाने कमाने से ही फुर्सत नहीं मिलती ! दो वक्त की रोटी मिल जाये वही बहुत है
 
सुरेश को पता नहीं क्यों अपना कम मिला हुवा बोनस याद आने लगा !
 
तभी डॉक्टर मुनिया को साथ लिये बाहर आये !
 
मिस्टर सुरेश ! अब यह ठीक है ,चिंता की कोई बात नहीं है ,टाँके लगा दिये है ! बस दवाईया समय पर लेते रहना
 
धन्यवाद डॉक्टर साहब सुरेश ने मुनिया की ओर देखते हुये कहा जिसके सिर पर पट्टी बंधी हुयी थी .सहसा उसे कुछ याद आया और उसने अपना बैग टटोला और एक पैकेट निकाल कर मुनिया की ओर बढाया .
 
यह लो बेटा ! मिठाई ,कल दिवाली है ना मिठाई का नाम सुनते ही मुनिया के मुह से किलकारी सी निकल गई .
 
सतीश ने भी अपनी मिठाई फजलु को दे दी .
 
सुरेश ने बोनस के पैसे निकाले और फजलु की ओर बढ़ा दिये .
 
नहीं साब ! मै यह नहीं ले सकता ,आपने मुनिया का इलाज कराया, उसकी दवाईया खरीदी,अब और अहसान नहीं साब फजलु के चहरे पर मिले जुले भाव थे ,
 
चुपचाप रख लो ! अभी मुनिया को दवाई चलने तक खाना वाना खिलाना है न ? कहा से लायेगा ,रख ले ! जब बड़ा हो जाना तब चुका देना
 
फजलु को कुछ कहते न बना ! उसने पैसे रख लिये .
 
सुरेश अभी जाने के लिये मूडा ही था के फजलु ने उसका हाथ पकड लिया ! सुरेश फजलु की ओर मुड़ा
 
साब जी वह आप लोग कहते है ना ‘हप्पी दिवाली ! आपको भी ‘हप्पी दिवाली फजलु ने कहा .
 
हैप्पी दिवाली छोटू तुम्हे और मुनिया को भी
 
सुरेश सतीश के साथ निकल पड़ा !
 
तो सुरेश चले गम –गलत करने ? ‘’
 
कौन सा गम ? सुरेश ने कहा तो सतीश भी मुस्कुरा दिया 
 
समाप्त

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