गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

टीम '' आर्यन क्रिएशनज ''

जैसा के आप सभी मित्र जानते ही है ,के हम कुछ मित्रो का समूह एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है ! जिसका नाम है ''आर्यन क्रिएशनज ''  ,तो पेश है आर्यन क्रिएशनज के सदस्यों का परिचय !
हमारी स्टाईल में .
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सोमवार, 2 दिसंबर 2013

कॉपी -पेस्ट वाली कॉमिक्स !

अपने आर्यन क्रिएशनज को मूर्त रूप देने के लिये हमारी टीम अपना पूरा सहयोग दे रही है, किन्तु बीच बीच में
कुछ हलके फुल्के पल संजोने के प्रयास में कुछ मजेदार कॉमिक स्ट्रिप बनाते रहते है .
जिसमे हम अपने कुछ मित्रो को स्थान दे  रहे है ,यह कॉमिक स्ट्रिप हमारी पिछली कॉमिक स्ट्रिप  ( जिस पर आप क्लिक करके पहुँच सकते है ) का ही नवीनतम संस्करण है .
तो पढ़िए और मजे लीजिये
लेखक : देवेन पाण्डेय ,चित्र : अथर्व ठाकुर ,इफेक्ट्स : सुरेश कुमार ,शब्दांकन : यूध्वीर सिंग ,सम्पादक : मोहितशर्मा 

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

‘भारतीय कॉमिक्स फेस्टिवल ‘ दिल्ली

‘’आर्यन क्रियेशनज ‘की ओर से एक कॉमिक स्ट्रिप ,जो समर्पित है कॉमिक फेस्टिवल के लिये

आधिकारिक तौर पर मनाये जानेवाले पहले ‘भारतीय कॉमिक्स फेस्टिवल ‘ दिल्ली , के लिये हमारे ‘’आर्यन क्रियेशनज ‘की ओर से एक कॉमिक स्ट्रिप ,जो समर्पित है कॉमिक फेस्टिवल के लिये ,
कॉमिक फेस्टिवल ! जिसका असल नाम दरअसल ‘नागराज जन्मोत्सव ‘ था ,जिसे प्रतिवर्ष ‘राज कॉमिक्स ‘ की ओर से भव्य स्तर पर मनाया जाता है ! यह महोत्सव समर्पित था राज कॉमिक्स के सबसे ज्यादा मशहूर पात्र ‘नागराज ‘ को ,जिसके जन्मदिवस को एक उत्सव का स्वरूप दिया गया ,
ईस महोत्सव में प्रतिवर्ष देशभर से सैकड़ो कॉमिक फैन्स शिरकत करते है ! और अपने प्रिय लेखको ,चित्रकारों से मिलने के साथ साथ अपने जैसे और भी कॉमिक्स फैन्स से मिलते है ,साल दर साल ईस महोत्सव का स्वरूप बदलता गया ! और ईस वर्ष नवम्बर माह के आखिरी दिनों में ईस महोत्सव को एक नया स्वरूप दिया ! इसी के साथ ईस महोत्सव का दायरा सिर्फ राज कॉमिक्स तक सीमित ना होते हुये और भी विशाल हो गया .जिसमे कई अन्य भारतीय कॉमिक्स कम्पनीज ने हिस्सा लिया .
‘’कॉमिक कॉन ‘ की तर्ज़ पर हुये ईस पहले आयोजन को आयोजन के पहले ही ‘कॉमिक कॉन ‘ से कही ज्यादा प्रसिद्धि मिली है, और सभी कॉमिक फैन्स एवं पाठक उत्सुकता से इस दिन की प्रतीक्षा कर रहे है .कहना ना होगा के ईस इवेंट में ईस बार बहुत ही धमाके होनेवाले है ,इसमें हिस्सा ले रही है राज कॉमिक्स ,फेनिल कॉमिक्स ,कैम्पफायर ,हॉली काउ ,डायमंड कॉमिक्स ,रोवोल्ट ,जैसे महारथी ! साथ ही साथ कई प्रसिद्ध हस्तिया भी .रंगारंग कार्यक्रम के अलावा होंगे कई सारी प्रतियोगिताये ,मैजिक शोज ,कल्पनालोक अवार्ड्स ,और भी बहुत कुछ .
अफ़सोस सिर्फ ईस बात का है के हम ईस इवेंट का हिस्सा नहीं बन सके ! किन्तु फिर भी वहा मौजूद अपने दोस्तों के जरिये इसकी पल पल की अपडेट लेते रहेंगे ,ईस साल ना सही किन्तु अगले साल जरुर हम ईस इवेंट का हिस्सा बनेंगे और अपने कभी ना मिले हुये किन्तु ख़ास मित्रो से भेंट करेंगे , अगर आप दिल्ली के रहनेवाले है या आसपास के या फिर भारत में कही के भी और आपको कॉमिक्स से लगाव है ,या कॉमिक्स कभी आपके बचपन का हिस्सा रहे हो ,तो जरुर जरुर ‘कॉमिक फेस्टिवल ‘ का हिस्सा बनिये .

 

बुधवार, 20 नवंबर 2013

मेरी प्रथम पब्लिश हुई रचना !

मेरी प्रथम पब्लिश हुई रचना !
 'भोपाल ' से प्रकाशित पत्रिका 'रुबरु दुनिया ' के नवंबर २०१३ के अंक में .

'भोपाल ' से प्रकाशित पत्रिका 'रुबरु दुनिया ' के नवंबर २०१३ के अंक में .

 'रुबरु दुनिया ' के विषय में अधिक जानने के लिये लिंक पर क्लिक करे !https://www.facebook.com/#!/photo.php?fbid=544150812327842&set=a.346357598773832.79963.335869879822604&type=1&theater

शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

इंटर व्यू, तिवारी जी द्वारा

भोजपुरी स्टार का भोजपुरी फिल्मो में बढ़ति अश्लीलता विषय में लिया गया इंटर व्यू, तिवारी जी द्वारा ( प्रथम भाग )
नोट : सभी पात्र एवं घटनाये काल्पनिक है ! उद्देश्य मात्र मनोरंजन है, दिल पे ले तो हमारी बला से हीहीही !
तिवारी जी आज बड़े खुश थे ! उभरते पत्रकार थे , और उन्हें अपनी पत्रिका के लिये भोजपुरी सुपरस्टार ‘सन्देश लाल यादव ‘ जिन्हें भोजपुरी फिल्म जगत में ‘बौरहवा ‘’ ( पगला ) नाम से बुलाया जाता था , का इंटरव्यू जो लेना था .
पहुँच गये ‘’चलायिब गोली दनादन ‘’के सेट पर ! एक आईटम डांस फिल्माया जा रहा था , ‘सन्देश हिरोईन के आगे पीछे मटक मटक कार ठुमके लगा रहे थे ! पच्चीस डांसर्स पीछे एक लय में कोरियोग्राफर के इशारे पर नाच रहे थे , कोरियोग्राफर शक्ल से ही छंटा हुवा बदमाश लग रहा था ,
और ‘शाह ‘ जी ने पैक अप कहा ! मौक़ा देख कर ‘तिवारी ‘ जी सन्देश के सामने जा खड़े हुये .
‘’नमस्कार संदेस बाबू ‘’ बत्तिस्सी निपोरते हुये तिवारी मुकुराये 


 ‘’नमस्कार तिवारी जी ! नमस्कार ,आईये बैठिये ‘’ सन्देश ने हाथ जोड़ते हुये कहा और सामने की कुर्सी की ओर इशारा कर दिया .

‘’का लेंगे तिवारी जी ? चाय या काफी , अरे गोली मारिये चाय काफी को ! गर्मी बड़ा जोरो पर है तो ठंडा पीजिएगा ‘’ सन्देश ने मुस्कुराते हुये कहा , सन्देश जो भले ही भोजपुरी का सुपरस्टार था ! लेकिन वह इंटर व्यू की महत्ता से अनजान नहीं था ,इंटरव्यू देने का कोई भी मौक़ा हाथ से जाने नहीं देता था ,
चाय ठंडा निपट गया ! और तिवारी जी सीधे जर्नलिजम पर आ गये .

तिवारी : सर्वप्रथम आप हमें यह बताये के आप अपने नाम के आगे ‘बौरहवा ‘’ क्यों लगाते है ?

सन्देश : भक्क !!! हम थोड़े ही लगाते है .यह तो जनता का प्यार है जो हमें इस नाम से पुकारती है ,आपको शुरुवात से सब बताना पड़ेगा , दरअसल बात यह है के हम बचपन में थोड़े ‘बौरहे ‘ थे ( पागल टाईप ) पढाई लिखाई में मन नहीं लगता था ! सनीमा के दीवाने थे हम , बहुत देखते थे ,बीच बीच में गाव में दिवाली –दशहरे –होली के मौको पर नौटंकी लगती थी ! हम आसपास के आठ गाव तक चले जाते थे नौटंकी देखने के चक्कर में ,बिरहा ,बेलवरिया के दीवाने थे ( लोकगायकी का एक प्रकार ) धीरे धीरे हमने लोकगायको की नकल करनी शुरू कर दी , और हम अपने दोस्तों के बीच भी ढोलक हारमोनियम लेके बैठ जाया करते थे , लोगो की प्रशंशा में मिलने लगी तो हम और ‘बौरहे ‘ होने लगे ! आसपास के लाग हमें ‘बौरहवा ‘ के नाम से पुकारने लगे ,तभी गाव में होली के मौके पर एक नौटंकी आई और हमने किसी तरह जोड़ तोड़ करके उसमे शामिल हो गये सौ रुपईया मिले थे ,अब हमने नाच के भी दिखाया तो एक्कावन रुपईया और मिला !
हम तो खुश हो गये ,ईसी बीच यह बात बाबूजी के संज्ञान में आई ,और उस शाम हमें बेंत से मार पड़ी ! बाबूजी सख्त खिलाफ थे के हम ‘नचनिया ‘ बने ! बाबूजी नाचगाने वालो को यही कहा करते थे .
बस हमने समझ लिया के अब अपना यहाँ ठिकाना नहीं है कौनो ,तो हम उसी दल के साथ भाग लिये ,उसके बाद कई शहरों में शो हुये और लोगो का अच्छा खासा प्रतिसाद मिला , एक लोकल म्यूजिक कम्पनी ने हमारा कैसेट जारी कर दिया ‘बौरहवा पगलायिल बा ‘’ और इसके बाद हमारी डिमांड बढ़ी तो बाबूजी ने हमें फिर अपना लिया .

तिवारी : भोजपुरी फिल्मो में बढती अश्लीलता के बारे में क्या कहना चाहेंगे ?





सन्देश : हम बहुत चिंतित है ईस बात को लेकर ,अफ़सोस होता है के कुछ लोग खाली पैसा बनावे खातिर आपन संस्कृति के गिरवी रख रहिल बानी ! माफ़ करी मेरा कहने का अर्थ यह था के कुछ लाग सिर्फ पैसा कमाने के खातिर और सस्ती लोकप्रियता पाने के लिये अपनी संस्कृति का बंटाधार कर रहे है .

तिवारी : किन्तु सन्देश जी ,आपकी शुरवाती अल्बम्स और नौटंकी भी काफी अश्लील और द्विअर्थी हुवा करती थी ,

सन्देश ( झेंपते हुये और बनावटी हंसी हस्ते हुये ) हाहाहा तिवारी जी लागत है रवुआ ( आप ) पूरी छानबीन करके आईल बानी .

तिवारी : अब पत्रकार है तो इतना तो करना ही पड़ता है ! और आप भोजपुरी में क्यों बाते कर रहे है ?

सन्देश : हम भोजपुरी जो ठहरे , आपन भाषा पे गर्व है हमका .

तिवारी : क्षमा कीजियेगा सन्देश जी किन्तु आप तो जौनपुर से बिलांग करते है ! और वहा तो ‘भोजपुरी ‘ नहीं अवधि बोली जाती है अधिकतर , भोजपुरी तो बिहार के ‘भोजपुर ‘ गाव से शुरू हुयी थी .

सन्देश : हीहीही ( खिसियानी हंसी ) तिवारी जी समझा कीजिये ! हमारी फिल्मे भोजपुरी है तो हमें कहना पड़ता है यह सब ,वैसे भी भोजपुरी तो हर जगह देखि जाती है उत्तर प्रदेश हो या बिहार या मध्य प्रदेश और अब तो बम्बई (मुंबई ) में भी देखि जाती है .

तिवारी : अच्छा जाने दीजिये ईस बात को , हम भोजपुरी सिनेमा के गिरते स्तर पर आते है .

सन्देश : हां यह बात काफी जरुरी है ! इसके लिये हमें कहानियों पर ध्यान देना होगा , फिल्मे शशक्त माध्यम है समाज में सन्देश देने का तो हमें ऐसी सार्थक फिल्मे बनानी चाहिए ,बेवजह की अश्लीलता के खिलाफ हमें एकजुट होना पड़ेगा .

तिवारी : वह तो ठीक है सन्देश जी किन्तु अभी अभी आप आईटम सांग फिल्मा कर आ रहे है ! भोजपुरी आईटम क्वीन कहे जाने वाली ‘दुर्भावना ‘ जी के साथ ,और उनके कोस्ट्युम भी काफी अश्लील लग रहे थे ,गानों के बीच उनका नृत्य भी काफी अश्लील लग रहा था ,और आप कह रहे है के आप बेवजह की अश्लीलता के खिलाफ है ?

सन्देश : ( सकपकाया हुवा ) : तिवारी जी ,हमने कहा था हम बेवजह की अश्लीलता के खिलाफ , और हम कुछ सार्थक फिल्म बनाना चाहते है ,यहाँ पर यह गीत ईस कहानी का हिस्सा है ! लड़की की बिदाई हुयी है तो आईटम सांग रखवा दिया है .

तिवारी : (परेशान होते हुये ) : बेटी की बिदाई में आईटम सांग ? सन्देश जी यहाँ तो बिदाई का गीत होना चाहिये सन्देश : हां वह भी है , ईस गीत के बाद ‘बिटिया तोहार जाने से अंगना में आईल बहार ‘’ अर्ररर क्षमा कीजियेगा ‘अंगना भईल उजाड़ ‘

 तिवारी : किन्तु आईटम सांग का तर्क नहीं समझ में आया ?

सन्देश : हम समझावत है ! देखिये अट्ठारह साल तक माई बाप ने बिटिया को पाला है उनके जिगर का टुकड़ा है वह ,अब उसकी बिदाई के समय माई –बाप की आँखों में पानी है और बिटियावाले दुखी है ! लेकिन बिटिया के भाई को अपने घरवालो और गाववालो का दुःख देखा नहीं जाता इसलिये उसने उन का मन बहलावे खातिर पहले से ही आईटम सांग का परोगराम बना रखा है ! समझे ? भाई का प्यार है यह जो अपने माँ बाप और गाववालो को दुखी नहीं देख सकता इसलिये यह गीत जरुरी है ,इससे सबका मन बहलता है .

तिवारी : किन्तु यह अश्लील नृत्य हावभाव ? द्विअर्थी शब्द ? इनका क्या तर्क है ?

सन्देश : तिवारी जी कौन दुनिया में पड़े हो आप ? अरे भईया हमरे भारत में आजकल अच्छे गाने पर किसका मन बहलता है ? गाने में थोड़ी सी उत्तेजना जरुरी है ,हम अश्लीलता के खिलाफ है इसलिये गाने को कलात्मक ढंग से फिल्माया है अब इसमें अश्लील का है ?

तिवारी : गाने का शीर्षक ‘पलंगतोड़ बलमा ‘’ है ! क्या यह अश्लील नहीं है ?

सन्देश : तिवारी जी ज़रा सा ह्यूमर भी जरुरी है ! यह एक अर्थपूर्ण गाना है , इसमें एक औरत है जो चूल्हे के लिये लकडिया ना होने से परेशान है ! बरसात का माहौल है तो लकड़ी कहा से आये ? तो वह अपने बलमा से कह रही है ‘पलंगतोड़ बलमा ‘ ताकि वह पलंग की लकडियो से चुल्हा जलाये ! आपने गौर नहीं किया ईस गाने में हमने भारत की गरीबी को दिखाने की कोशिश भी की है के कैसे गरीब व्यक्ति एक वक्त का खाना पकाने के लिये जद्दोजहद करता है ! अब आगरा इसमें अश्लील लगे तो अश्लील यह गाना नहीं सोचने वाले का दिमाग है ! आपको समझ में आया न के गाना कलात्मक है .

तिवारी : ( अपने बाल नोचने की मुद्रा में ) ज ..ज..जी हम समझ गये गाना बिलकुल अश्लील नहीं है ,हमने सूना है आपकी फिल्मो में महिला पात्रो की कोई अहमियत नहीं होती ? पुरुषप्रधान फिल्मे होती है आपकी जिसमे हिरोईन का कार्य सिर्फ नायक का दिल बहलाने और उसके आगे पीछे नाचने भर का होता है .

सन्देश : कैसी बाते कर रहे है तिवारी जी ? हमारी फिल्मे महिलाप्रधान होती है ,अब इसी फिल्म को देखिये नायक के साथ में चार –चार नायिकाये है तो हुयी ना फिल्म महिलाप्रधान ! वैसे भी इसमें ‘ग्राम प्रधान ‘ की भूमिका में भी एक महिला ही है तो आप कैसे कह सकते है के हमारी फिल्मे महिलाप्रधान नहीं होती ?

तिवारी : ( हैरानी से मुह खुला का खुला है ) : च ..चार नायिकाये ? सही है जी ! लगता है हम ही गलत थे
क्रमश ....



शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

बोनस


 
सुरेश झुंझलाया हुवा था ! आखिर साल भर के इन्तेजार के बाद बोनस मिला था , खुश होने के बजाय वह काफी नाराज था .
 
यह क्या है यार ? हमें कहा गया था के बोनस में एक बेसिक सैलरी मिलेगी ! और हाथ में थमा दिया गया यह , आधी बेसिक से भी कम
 
जाने दे सुरेश ! अब गुस्सा करने से क्या फायदा है ? मैनेजमेंट ने कह तो दिया की ईस बार कम्पनी काफी घाटे में रही है , इसके बावजूद अगर हमें बोनस के तौर पर कुछ दिया है तो हमें इसमें खुश ही होना चाहिये ! खामखाह दिल छोटा क्यों करता है ? दो दिन बाद दिवाली है ,मूड मत खराब कर .
 
सतीश जो के राजेश का अच्छा मित्र एवं सहकर्मी था ,राजेश को समझाते हुये कह रहा था .
तू नहीं समझता सतीश ! यह मैनेजमेंट के चोंचले है ,कहते है कम्पनी घाटे में थी ! मै कहता हु क्या कम्पनी जब फायदे में होती है क्या तब कर्मचारियों को अलग से कुछ देती है क्या ? नहीं न ! फिर यह कटौती सिर्फ हमारे बोनस में ही क्यों ? सुरेश शुब्ध था ! हो भी क्यों ना ? काफी दिनों से वही पुराना मोबाईल ईस्तेमाल कर रहा था ! हर बार सोचता था के ईस सैलरी में एक बढ़िया सा ‘स्मार्ट फोन ‘ तो ले ही लेगा .
लेकिन सारी सैलरी तो आजीविका निभाने में ही खत्म हो जाती थी ,ऊपर से फ़्लैट के लिये हुवा लोन भी हर माह सैलरी से कट जाता है ! जो बचता था उसमे महीने का खर्चा भी तो चलाना पड़ता है !लेकिन मैनेजमेंट को इन सबसे क्या लेना देना ! उन्हें तो सिर्फ बहाने बना कर कर्मचारियों का खून चुसना भर आता है .
 
तू ही बता सतीश , पच्चीस हजार की मामूली सी सैलरी में आखिर क्या क्या करू ? दस हजार घर की किश्त में कट जाते है फिर बिजली बिल ,महीने का राशन , छोटू की फीस माँ –बाप का खर्चा ,अंजली को भी तो पैसे पकड़ाने होते है , सोचा था के ईस बार दिवाली का बोनस मिलेगा तो एक स्मार्ट फोन ले ही लूँगा ! लेकिन अब इतने में क्या लूँगा ?
 
सतीश ,समझ गया था के सुरेश काफी नाराज है ! उसे समझाना व्यर्थ है ,बात टालने की गरज से उसने कहा .
 
चल यार ऑफिस के बाद कही बैठते है ! थोडा गम गलत कर लिया जाये ,काफी दिन हो गये साथ ड्रिंक किये हुये
 
ठीक है सुरेश की भी सहमती बन गई ! उसे याद नहीं आ रहा था के वह पिछली बार कब बैठा था ,जिन्दगी संवारने की जद्दोजहद में उसने अपने शौको से मुह फेर लिया था ! एक अरसा हो गया था थियेटर में फिल्म देखे हुये ! घर खरीदने के लिये लोन तो पास हो ही गया था ,लेकिन डाउनपेमेंट भी तो देना होता है ! जो भी सेविंग्स थी सब निकल गई .
 
ठीक छह बजे ! रोज की तरह सुरेश ने अपना बैग भरा ,सभी सहकर्मियों से विदा ली .
 
‘हैप्पी दिवाली ‘ बॉस की आवाज ने मानो सुरेश के जले पर नमक छिडक दिया !
 
आपको भी दीपावली की शुभकामनाये सर सुरेश ने अनिच्छा से बॉस को हाथ मिलाते हुये शुभकामनाये दी .
 
हां आपके लिये तो है हैप्पी दिवाली ! मोटा बोनस मिला होगा , आप लोगो पर थोड़े ही कम्पनी के नफे-नुकसान  लागू होते है ! वह तो सिर्फ हम कर्मचारियों के लिये है सुरेश अपनी मन की बात मन में ही रखे था .
 
औपचारिकताये पूर्ण करने करने के पश्चात ,सतीश और सुरेश साथ चल दिये .
 
चूँकि स्टेशन ज्यादा दूर नहीं था इसलिये दोनों पैदल ही चल दिये ! कंधो पर लटकता बैग मानो उसे दुनिया सबसे बड़ा बोझ प्रतीत हो रहा था .
 
सुरेश जाने दे भाई ,अब मूड मत खराब कर ! हमें तो यार बोनस भी मिल गया ,लेकिन बॉस को तो वह भी नहीं मिला ! फिर भी उन्होंने देखो हमें कैसे शुभकामनाये दी .
 
उसकी साईड मत ले सतीश ! उसे बोनस ना भी मिले तो भी क्या फर्क पड़ता है ? पचास हजार की सैलरी मुझे मिले तो मै भी कभी बोनस ना मांगु सुरेश को सतीश की बॉस तरफदारी करना अच्छा नहीं लगा था .
 
तो देखिये किस कदर यह बच्ची अपनी जान जोखिम में डालते हुये ईस रस्सी पर चलकर दिखायेगी ! और भी कई कारनामे जिसे देख कर आप हैरत में पड़ जायेंगे ! आईये साहेबान ,आईये .ढोल की थाप पर आती ईस आवाज ने सुरेश की तन्द्रा भंग की .
 
सुरेश  ! लगता है कोई मदारी –वदारी टाईप का खेल हो रहा है ,काफी लाग खड़े है चल देखते है
 
सतीश ने सुरेश का मूड बदलने की गरज से कहां ! और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किये उसे खींचता चला गया .
 
भीड़ चीरते हुये दोनों आगे पहुंचे ! एक छोटी सी बच्ची जिसकी उम्र मुश्किल से चार या पांच साल होगी! मैले कपडे पहें हुये ,जिसमे जगह जगह पैबंद लगे हुये थे , एक संकरे रिंग में से अपना पूरा शरीर ईस कदर निकाल रही थी के देखने वालो आँखे आश्चर्य से फ़ैल गई .
 
शाबास मुनिया ! अब देखिये कदरदान ,किस तरह से यह छोटी बच्ची इन अंगारों पर नंगे पाँव चल कर दिखायेगी दस साल का बच्चा जो के रंगत में कोयले को भी मात दे रहा था ! अपनी कमर में लटके हुये ढोल पर थाप देते हुये कह रहा था .
 
सुरेश हैरत से यह देख रहा था ! और लडकी ने दहकते शोलो पर चलना आरम्भ किया ,उसके चेहरे पर कोई शिकन तक थी , काफी देर तक उसका यह क्रम चलता रहा .
 
सुरेश ,क्या उस बच्ची को दर्द नहीं हो रहा होगा ?
 
सतीश ! यह इनकी ट्रेनिंग का हिस्सा है ,यह नियमित अभ्यास के बाद ईस क्रिया के आदि हो चुके है !
 
अब लड़की आठ फुट ऊपर रस्सी पर चलते हुये करतब दिखायेगी लडके की आवाज ने दोनों का ध्यान अपनी ओर खिंचा .
 
लडकी अब दो बॉस के सहारे खड़े खम्बो पर बंधी रस्सी पर खड़ी थी ! वह अपना संतुलन बनाने की कोशिश कर रही थी ! और उसने रस्सी पर चलना शुरू किया ! एक राउंड पार करने के बाद दुसरे राउंड में उसने रस्सी पर चलते हुये करतब दिखाने शुरू कर दिये ! दर्शको के साथ साथ सुरेश और सतीश की सांसे भी हलक में अटक गई .
 
लडकी एक बारगी लडखडाई ! और दर्शको की चीख निकल गई ,सुरेश ने मन ही मन ईश्वर से लडकी की सलामती की प्रार्थना की .
 
लेकिन अचानक लडकी का संतुलन बिगड़ा ! ईस से पहले के वह खुद को सम्भालती , उसका नाजुक शरीर कठोर जमीन टकरा गया ! लडका ढोल फेंक कर लडकी की ओर दौड़ पड़ा .
 
लडकी के सर में चोट लगी जिस से उसका खून बहने लगा ! लेकिन आश्चर्य यह था के इतनी चोट के बावजूद लडकी रो नहीं रही थी ,वह खड़ी होने का प्रयत्न कर रही थी ,उसे चोट लगने का दर्द नहीं था ,उसे डर यह था के लोगो को खेल पसंद नहीं आया ! खेल पसंद नहीं यानी के पैसे नहीं .
 
और वही हुवा ! दुनिया के झंझटो में ना पडनेवाली भीड़ चुपचाप खिसक लगी ,लेकिन सुरेश उस लडकी की ओर बढ़ा जो उस लडके की गोद में थी ! लड़का अपने मैले बुस्शर्ट से उसके माथे का खून पोंछ रहा था .
 
सतीश भी सुरेश के साथ आगे बढा .
 
ईसे चोट लगी है ! सिर से खून बह रहा है ,ईलाज करवाना होगा नहीं तो कुछ भी हो सकता है सुरेश ने बच्चे की ओर देखते हुये कहा .
 
कुछ नहीं होगा साब ! ये ठीक हो जायेगी ,घर जाकर हल्दी लगा दूंगा लडके ने सुरेश की ओर देखते हुये कहा .
 
यह गंभीर चोट है बच्चे !  दवाखाने ले जाना  होगा सुरेश ने बच्ची को टटोलते हुये कहा .
 
साब अगर दवाखाने ले जाने के पैसे होते तो दो वक्त का खाना ना खा लेते हम ?
 
बच्चे के ईन शब्दों ने सुरेश के हृदय को भेद दिया .
 
उसने बच्ची को गोद में उठाया ! सतीश ने भी सहायता की .
 
चलो मेरे साथ कहते हुये सुरेश ने ऑटो रुकवाई .
 
दवाखाने में लड़की की मरहमपट्टी की गई ! चार टाँके लगे , दवाईया लिखी गई !
 
सुरेश ने जेब टटोली और पैसे निकाल कर दवाखाने और दवाई का खर्चा निकाला .
 
वह लड़का कृतग्य भाव से सुरेश को देखता रहा .
 
नाम क्या है तुम्हारा ? सुरेश ने पूछा .
 
फजलु है साब जी लड़के ने जवाब दिया और ईस से पहले के सुरेश कुछ और पूछे उसने खुद ही कहना शुरू कर दिया .
 
वह मेरी बहन है मुनिया नाम है उसका ,हम शहर के बाहर की बस्ती में रहते है ! प्लास्टिक की तालपत्री से बना हुवा घर  है साब ! बापू शराब के चलते ख़तम हो गया ! माँ को तो बचपन में ही खो दिया था ,हम दोनों ही बस्ती के बुजुर्गो से यह सब सीखते है जिसे हम सडको पर दिखाते है
 
तो पढाई कब करते हो ? ‘सतीश ने पूछा .
 
क्या साब ? हमारे हुलिये से आपको लगता है के हमने कभी स्कूल का मुंह भी देखा है ? हम को खाने कमाने से ही फुर्सत नहीं मिलती ! दो वक्त की रोटी मिल जाये वही बहुत है
 
सुरेश को पता नहीं क्यों अपना कम मिला हुवा बोनस याद आने लगा !
 
तभी डॉक्टर मुनिया को साथ लिये बाहर आये !
 
मिस्टर सुरेश ! अब यह ठीक है ,चिंता की कोई बात नहीं है ,टाँके लगा दिये है ! बस दवाईया समय पर लेते रहना
 
धन्यवाद डॉक्टर साहब सुरेश ने मुनिया की ओर देखते हुये कहा जिसके सिर पर पट्टी बंधी हुयी थी .सहसा उसे कुछ याद आया और उसने अपना बैग टटोला और एक पैकेट निकाल कर मुनिया की ओर बढाया .
 
यह लो बेटा ! मिठाई ,कल दिवाली है ना मिठाई का नाम सुनते ही मुनिया के मुह से किलकारी सी निकल गई .
 
सतीश ने भी अपनी मिठाई फजलु को दे दी .
 
सुरेश ने बोनस के पैसे निकाले और फजलु की ओर बढ़ा दिये .
 
नहीं साब ! मै यह नहीं ले सकता ,आपने मुनिया का इलाज कराया, उसकी दवाईया खरीदी,अब और अहसान नहीं साब फजलु के चहरे पर मिले जुले भाव थे ,
 
चुपचाप रख लो ! अभी मुनिया को दवाई चलने तक खाना वाना खिलाना है न ? कहा से लायेगा ,रख ले ! जब बड़ा हो जाना तब चुका देना
 
फजलु को कुछ कहते न बना ! उसने पैसे रख लिये .
 
सुरेश अभी जाने के लिये मूडा ही था के फजलु ने उसका हाथ पकड लिया ! सुरेश फजलु की ओर मुड़ा
 
साब जी वह आप लोग कहते है ना ‘हप्पी दिवाली ! आपको भी ‘हप्पी दिवाली फजलु ने कहा .
 
हैप्पी दिवाली छोटू तुम्हे और मुनिया को भी
 
सुरेश सतीश के साथ निकल पड़ा !
 
तो सुरेश चले गम –गलत करने ? ‘’
 
कौन सा गम ? सुरेश ने कहा तो सतीश भी मुस्कुरा दिया 
 
समाप्त

सोमवार, 26 अगस्त 2013

भारतीय संस्कृति एवं समाज

'' राहुल '' यह क्या कर रहे हो , ?
'' चाची , यह ''हरिया भईया ' ने लड्डू भेजे है ,उनके यहाँ ''पोता '' हुवा है ना ,आप भी लीजिये आपके लिये ही तो भेजा है ''
''राहुल पगला गया है क्या ? अभी अभी मै पूजा करके निकली हु ,रामलला को भोग लगाया है ,और तू मुझे यह खिला रहा है ''
;तो इसमें बुरा क्या है चाची ?''
''अरे पगले तू अभी शहर से आया है ना इसलिये यहाँ से अनजान है ,अरे पगले वह हरिया ''नीची ''जाती का है ,उसके हाथ का खाना मुझसे ना खाया जायेगा .''
राहुल सन्न रह गया यह उत्तर सुन कर !
क्या अब भी ऐसे ढकोसले मौजूद है ?
''ठीक है चाची ,ना खाओ , मैंने यही रख दिया है ''
''अरे राहुल सुन तो ,वह लड्डू '' गईया '' को खिला दे ,तू भी मत खा ,और हां आज अपने खेतो के '' गन्नो '' ( ऊख ) की कटाई है और ' बबऊ केवट ' रस का गुड बनायेंगे भट्टी पर ,खेत में ही भट्टी लगी है शाम तक काम होगा जा चले जा ,मन लगा रहेगा तेरा ''
जी चाची
शाम को भट्टी पर ......
'' राहुल बबा पाय लागी ''
''अरे 'बबऊ '' काका यह क्या कर रहे है आप ? आप इतने बुजुर्ग है और आप मुझे पैलगी कर रहे है , लज्जित मत कीजिये मुझे ''
'अरे राहुल बेटवा आप ''सहर '' ( शहर) से आये है ना इसलिये ऐसा कह रहे है , आप ऊँचे लोग है ,हम तो जन्मे ही आप की सेवा के लिये है '
'' काका ज़माना कहा से कहा चला जा रहा है और आप अब भी वाही सोच ले के बैठे है ? आप बुजुर्ग है आप खुद समझदार है ,अब मै आपको क्या समझाऊ ? आदमी सिर्फ ऊँची या नीची जाती में पैदा होने से बड़ा या छोटा नहीं होता वह तो अपने कर्मो से बड़ा होता है '
'' राहुल बेटा ,यही तो आपका बडप्पन है जिसके लिये आप सम्मान के हकदार है , अगर हम आपको सम्मान नहीं देंगे तो हमें पाप लगेगा , अच्छा जाने दो !
 
यह लो गर्मागर्म 'गुड '' बनाया है अभी अभी, ले जाओ और ज़रा ''अईया '' ( चाची ) से पूछना तो अच्छा बना है या नहीं ''
घर पर ...रामायण चल रही है , शबरी के ''जूठे ' बेरो का उल्लेख आया है !
घरवाले ,पडोसी ,और कुछ गाँव वाले ''रामायण '' भक्तिभाव से सुन रहे है !
''राहुल '' ने चाची को ढूंढा जो प्रसाद बनाने में व्यस्त थी ,
'' चाची '' यह लीजिये 'बबऊ '' काका ने गुड भेजे है ,चख लीजिये ,''
चाची ने गुड चखा ,और एक भेली गर्मागर्म गुड लपक के पाने मुह में रख लिया ,
'' उम्म्म वाह वाह बहुत ही बढ़िया है , वैसे भी कल ''रामायण '' का समापन है गाँव भर में न्योता दिया है , कल बटेगा ''
राहुल कुछ सोच रहा था .
 
'' सियावर राम चन्द्र की ''
'' जय '' .....अचानक हुये जयघोष से राहुल की तन्द्रा टूटी .
 
अगले दिन शाम का वक्त न्योते में गाँव के ढेर सारे लोग आये ,
पंडित टोले के लोग घर के बरामदे में बैठे थे जिन्हें भोजन एवं प्रसाद परोसा जा रहा था , और दुसरे 'टोले '' के लोग
घर के आंगन में बैठे अपनी बारी की प्रतीक्षा में .
'' चाची , यह बरामदे में और आंगन में सुविधा अलग अलग क्यों है ? ''
' बेटा यह बरामदे में जो बैठे है वे ऊँची जाती के लोग है ,उन्हें यह कैसे अच्छा लगेगा के उन्हें छोटी जाती के लोगो के साथ बिठा दिया जाय ? इसलिये उनके लिये अलग व्यवस्था की गयी है '
 
'' लेकिन चाची साथ में खायेंगे तो क्या हो जायेगा ?'
'' बेटा पाप लगता है , यह व्यस्था तो प्राचीन काल से चली आ रही है ,संस्कृति ही है यह ,और हम अपनी संस्कृति तो नहीं छोड़ सकते ?'
 
'' चाची हमारी संस्कृति श्रीराम है , विष्णु है ,महेश है , जब इन्होने किसी में भेद नहीं किया तो हम क्यों करे ?'
'कहना क्या चाहते हो राहुल ? ''
' मै यह कहना चाहता हु चाची , के आपने 'हरिया '' भईया के लड्डू लौटा दिये , क्योकि वो छोटी जाती का था ,लेकिन आपने 'बबऊ ' काका के गुड तो खा लिये , क्या वे छोटी जाती के नहीं है ? और तो और उसी गुड को ''श्रीराम ' जी के प्रसाद स्वरूप वितरित करना है ,तो क्या यह पाप नहीं है ?''
चाची सन्न रह गई ...एक् क्षण को कुछ नहीं सुझा उन्हें .
'चाची जाती तो हम ही बना रहे है ,अपने अपने फायदे के अनुसार हम उसमे फेरबदल करते रहते है , संस्कृति कभी नहीं सिखाती के आप आदमी में बैर करो उन्हें जाती में बांटो ,इंसान ही उसे अपने फायदे के लिये तोड़ मरोड़ के नियम बनाता है !
हम भगवान श्रीराम के गुण गा सकते है , शबरी के बेरो की कथा भाव विभोर होकर सुन सकते है ,लेकिन भगवान के आदर्शो पर नहीं चल सकते ,जब उन्होंने भेद नहीं किया तो हम क्यों करे ?
 
भगवान राम ने '' धोबी '' के कहने भर से ''सीता मईया '' को त्याग दिया , फर्क तो उन्हें करना चाहिए था उस वक्त .
कौन सी जाती छोटी है चाची ? शादी बियाह में हमारे यहाँ बिना '' नाऊ '' के काम नहीं चलता ,बिना ''कहार'' के पानी भरे बरात नहीं निकलती ,हर रस्म में छोटी जातियों की जरुरत है ,यह ना हो तो शादी नहीं हो सकती तो कैसे हम इन्हें छोटा कह सकते है ?
उनके हाथ से खाने पर आप अशुद्ध हो जाती है ,लेकिन उनके हाथ लगाये बगैर ''विवाह '' जैसा शुभ कार्य नहीं हो सकता .
अगर हम आदमी को जाती में बाँट ते है तो हमें कोई हक़ नहीं बनता के हम प्रभु श्रीराम के गुण गाये या उनकी भक्ति करे , हमारी भक्ति तो उसी पल माटी मोल हो गई जिस पल हमने जाती भेद करना शुरू कर दिया !
आपने लड्डू '' गईया '' को खिला दिये ,लेकिन गईया का दूध तो हमने ही पीया ना ? उसी दूध से राम लला का अभिषेक हुवा ना ?
तो क्या वह पाप नहीं हुवा ?
 
चाची को कुछ बोलते नहीं बना ...
और राहुल तमतमाते हुये आंगन में निकल गया गया .
उसके दिमाग में यही बाते चल रही थी ....
'' गलती अगर ऊँची जाती की है तो उसमे योगदान ''छोटे '' कहलानेवालो का भी है ,उनकी भी मानसिकता यही है के हम अगर ''ऊँचो '' का सम्मान नहीं करेंगे तो हमें पाप लगेगा ''
तो भैया कृपया कोई यह तर्क ना दे के आज के जमाने में ऐसा कम ही होता है ,जिन्हें तर्क करना हो वे एक बार अपने गाँव में जाके देख सकते है ,
 
भारतीय संस्कृति एवं समाज के उजले पहलु तो कई है लेकिन उसके स्याह पहलु भी कम नहीं है ,
संस्कृति और परम्पराओं के नाम पर हम पर काफी ढकोसले थोप दिए गये है , इनमे से कई परम्पराए तो ऐसी है जिनका कोई सर पैर नहीं है ..
जैसे हमारे पास के गाँव का एक उदाहरण है ..
 
काफी साल पहले किसी के घर में बहु आनेवाली थी ,जब बहु विदा होक आनेवाली थी तो
सास ने अपनी बहु और बेटे के कमरे को सजाना शुरू किया ,
अभी काम अधूरा ही हुवा था के तब तक सारे तामझाम के साथ बहु आ गयी ,
ऐसे में उसी कमरे में सास को एक बिल्ली दिखी ,किसी की नजर ना पड़े और बिल्ली कही दूध ना पि ले इसलिये
सास ने बिल्ली के ऊपर एक टोकरी रख दी .
सब कुछ निपट जाने के बाद अगले दिन जब नयी नवेली बहु ने घर के कोने में उलटी टोकरी देखि तो उसे उसने पलटा तो पाया के उसमे एक बिल्ली मृत अवस्था में थी .
इस बाबत जब सास को पूछा गया तो उन्होंने कह दिया के '' यह हमारे यहाँ का रिवाज है के जब नयी बहु आये तो उसके कमरे में बिल्ली मार के टोकरे में रख दो , यह शुभ होता है ''
अब भाई, यह कहकर सास ने तो जान छुड़ा ली लेकिन बिल्लियों की शामत आ गयी !
अब उस घर का रिवाज हो गया और हर बार नई बहु के आने पर यही क्रम दोहराया जाता रहा, जो अब तक चलता आ रहा है !
लोग इसके पीछे की कहानी जानते है ,लेकिन परम्परा की बेडी इतनी मजबूत है के सब कुछ जानते हुये भी हर बार नयी बहु आने पर बिल्ली अवश्य मारी जाती है .
 
और उदाहरण है . हमारे यहाँ मानना है ( उत्तर प्रदेश के अधिकतर जिलो में ) के
''गुरुवार '' को कपड़ो में और बदन पे साबुन नहीं लगाना चाहिये ,अशुभ होता है ,
अब जहा तक मैंने छान बिन की तो मुझे कुछ बुढो ने बताया के किसी ''आलसी '' बहु ने एक बार बिना साबुन के कपड़े निचोड़ दिये
जब सास ने पूछा तो उसने कह दिया ''गुरुवार को कपड़ो पर और बदन पर साबुन लगाना अशुभ होता है ''धन '' नहीं रुकता ''
बस तब से यह परम्परा चली आ रही है हमारे समाज में .
कुछ इसी तरह की कहानी स्त्रियों के बाल धोने को लेके भी है ,
एक दिलचस्प उदाहरण और भी है ( उत्तर भारत का )
यहाँ शादियों में '' गालियाँ '' देने का रिवाज है ,जो के औरते देती है ( काफी गन्दी गन्दी गालियाँ होती है भाई हिहिहिही )
हर रस्म में लगभग ,गालियाँ होती ही है ,
जब इसका रहस्य पता करना चाहा तो वही जवाब ''यह शुभ होता है ''
जब कुछ बुढो से पूछा तब उत्तर मिला के पुराने जमाने में शादियों के दौरान शादी करवानेवाले रिश्तेदार और बाराती ,लडकी वाले सभी की अपनी अपनी मांगे होती है हमें यह चाहिये वह चाहिये ,इतना नेग चाहिये , इस वजह से लोग परेशान रहते थे ,
खासतौर से लडकी वाले ,!
तो औरतो को उन सभी को गालिया देने का मन करता था ,लेकिन लाज वश वे दे नहीं पाती ,तब जाकर नयी तरकीब निकाली गई के क्यों न गालियों की ही रस्म बना दी जाये ,इस से किसी को बुरा भी नहीं लगेगा और हमारी भडास भी निकल जायेगी .
तब से हर शादी में गाली का रिवाज शुरू हो गया जो आजतक चलता आ रहा है ..
यह बात और है के ऐसा लगता है मानो गालियों की कोई प्रतियोगिता हो रही है .
( हमारी शादी में भी पड़ी थी गालियाँ मोटी मोटी )
कुछ बुराईयों के साथ ( ढेर सारी ) कुछ अच्छाईयो के साथ हमारी संस्कृति ऐसी ही ना जाने कितने ही रस्मो रिवाजो एवम परम्पराओं भरी हुयी है ...
लेकिन बुद्धि हमें लगानी है के हमें कौन सी अपनानी है और कौन सी नहीं ,बस किसी ने कह दिया और हम लग गये,
तब तो गया समाज एवम संस्कृति दोनों का बंटाधार ...
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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