शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

कुत्ता कौन ?

चलो अब पापी पेट का सवाल है तो ऑफिस जाना ही पड़ता है ,
लेकिन घर से ऑफिस तक का सफर मजेदार होता है ,कुछ ना कुछ हो ही जाता है
जो मेरी कलम का शिकार बन जाए ,
ऐसा ही एक वाकया उन ‘’ केकड़े ‘’ और ‘’ बैल ‘’ महोदय से मुलाक़ात के पहले हूवा था ,
दरअसल मै जंगल पार करके मानव बस्ती में पहुचा था ,मेरे आगे और भी दो चार राहगीर थे ,

सभी सुबह की ठंडी हवा का मजा लेते हुए चल रहे थे मस्ती में ,उनमे से किसी भाईसाहब ने मोब
ाईल
हेडफोन के बजाय स्पीकर पे लगाया था और गाना बजाए जा रहे थे ‘’चिकनी कमर पे तेरी मेरा दिल फिसल गया ,स्ट्रोंग ली ये जादू तेरा मुझ पे चढ गया ‘’
बस इस गाने का बजना ही था के पीछे से एक मोटे ताजे ‘’कुकुर ‘’ महोदय ने हमला बोल दिया ,
गाने वाले भाईसाहब की सिट्टी पिट्टी गूम ,और वे सर पे पाँव रख के भागे ,
अब मै भी था उनके पीछे ही ‘’कुकुर ‘’ महोदय का ये भयानक अवतार देख कर सन्न रह गए ,
उन माह्शय ने पलती मारी मुझे देखा ,वाह क्या कुटिल मुख मुद्रा बनाई थी उन्होंने ,दो कदम पीछे की ओर किये और डॉल्बी डिजिटल साउंड में भोकते हुए हम पर कूद पड़े ,
अब हम क्या करते सूना था के अगर कुत्ते आप पे झपटे तो भागे नहीं शांत खड़े रहे वे अपने आप छुप हो जाते है ,
तो भाई हम भी निर्विकार भाव से खड़े रह गए ( ये बात और है के डर के मारे पाँव हिल ही नहीं रहे थे भागते क्या )
लेकिन उन महोदय का पारा आश्चर्य जनक रूप से ठंडा हो गया ,मै भी थोड़ा आश्वस्त हूवा ,और उन महोदय को प्यार से पुचकारा ..
‘’ अबे बंद कर ये पुचकारना वरना मेरा गुस्सा फिर भडक जाएगा तो समझ लियो ‘’
बापरे मेरी तो सिट्टी पिट्टी गूम ..
मैंने पूछा क्या ‘’हूवा इतने गर्म क्यों हो आज ?’’
‘’क्यों हू मतलब ये देखो जहा भी जाता हू ,इंसान वहा पाँव पसार लेते है ,हम कहा जाए ,हमारी प्राईवेसी भी कोई चीज है सब इंसानों ने खत्म कर दी ,पहले इस रास्ते से कोई नहीं आता था तब सुकून से रहता था ,अब लोगो ने इसे भी रास्ता बना लिया तो मै कहा जाऊ ,खुद आबादी बढाते है और ‘’नसबंदी ‘’हमारी करवाते है ये ‘’
मै तो भौचक रह गया उसकी बात से ,लेकिन उसका लगातार भोकना (माफ करना ‘’बोलना ‘’ ) जारी था ,
‘’ आज सुबह ही देखा मालिक ने टीवी लगाया था उसमे किसी नेता ने कोई घोटाला किया हूवा था ,जिसे देख के मालिक ने कहा ‘’सब साले कुत्ते है ,चोर कही के ,मालिक की बात सुनके मन तो किया के उसके पिछवाड़े पर अपने डेंटल प्रिंट्स की छाप छोड़ ही दू ,लेकिन वफादारी ने रोक लिया .
अब बोलो ये लोग चोर है ,लेकिन ‘’ कुत्ते ‘’ कह के हमे गाली क्यों दे रहे हो आप लोग ?
हमने तो किसी कुत्ते को कभी ‘’नेता ‘’ कह के नहीं गरियाया फिर ये ‘’नेता ‘’ को कुत्ता कह के हमे क्यों गरिया रहे है ?
अब मै समझ चुका था के ‘’कुकुर ‘’ महोदय काफी भावुक हो रहे है ,लेकिन मैंने समझाया ..
‘’अरे भाये इसमें गुस्सा करनेवाली क्या बात है ? वो तो इंसानी फितरत है धोखा देनेवाली उसे दिल से लगाके क्यों अपना दिल छोटा क्र रहे हो ?’’
उसने एक पल मुझे देखा ,और कहने लगा ‘’ अरे नहीं यार एक बार की बात हो तो सह लूँगा लेकिन अभी कल ही किसी ने कहा इन कुत्तों ने भोक भोक के दम कर दिया है नाक में ‘’
अरे क्या हम भोंक रहे है है ? सुबह ही मालिक के टीवी पे देखा वो कोनसा भवन है दिल्ली में ..?
उसमे सारे सफेद परिधान और टोपी वाले क्या कर रहे थे ? वाही जो हम करते है दूसरी कुत्तों के आने पर ,’’भोकना ‘’ बल्कि इस मामले में तो उन्होंने हमे भी पीछे छोड़ दिया है ,
फिर भी हर बार हर गलत काम पे हमारा नाम उछालते हुए इंसानों को शर्म नहीं आती ,
मुझ से और सूना ना गया और सुनता तो आँख नाक से गंगा जमुना का प्रवाह बह जाता इसलिए
मैंने उसे समझाया ‘’जाने दो यार खामखाह गुस्सा मत करो जो जैसा करेगा वैसा भरेगा तुम सही हो ,मै कल से रास्ता बदल दूंगा अब तो खुश और अब दूसरी बात ‘’आदमी तो होता ही है ‘’ कुत्ता ‘’ तुम उसकी बातो से दिल छोटा मत किया करो बस खुश रहो ‘’
अब मेरी बात में फिर से ‘’कुत्ते ‘’ का जिक्र आया तो उसकी आँखे लाल हो गयी ,नथुने फडक उठे ,
अब मैं समझ गया के ‘’निर्विकार ‘’ भाव से खड़े रहने की थ्योरी यहाँ काम नहीं करने वाली ,तो सर पे पाँव रख के भागा और वे महोदय भी मेरे पीछे पीछे अपना सराउंड सिस्टम बजाते हुए ..

शनिवार, 8 सितंबर 2012

बैल और मै

अभी उस नादान ‘’ केकड़े ‘’ वाली बात को भूला भी नहीं था के आज फिर मेरी

कलम को मटेरियल मिल गया ..

हवा यु के जैसा के मैंने पहले ही बताया है मेरे ऑफिस आने के रास्ते में छोटा सा जंगल टायेप मार्ग है ,

आज फिर रोज की तरह कान में हेडफोन लगाए गाने सुनते हुए चल रहा था ,ठंडी हवा और हरियाली का

मजा लेते हुए के अचानक मेरी दृष्टि एक दृश्य पर पड़ी .

पास ही में एक छोटा तालाब था ( था मतलब अभी भी है ,मै साथ में नहीं ल
ाया ,झोला घर पे जो भूल गया था )

हां तो मैंने देखा उस तालाब में दो ‘’ बैल ‘’ तैराकी कर रहे थे ,मै कौतुहल के वशीभूत होके उन्हें देखने लगा ‘’बैल ‘’ अपनी दुनिया में मगन हो के तैर रहा था के उसकी नजर मुझ पर पड़ी .

उसने अपनी ट्रक के हेड लाईट जैसी बड़ी बड़ी आँखों से मुझे घूरा ,जब पूरा ‘’सिटी स्कैन’’ कर लिया तब बड़े ही भयंकर ढंग से उसने अपनी बत्तीसी निपोरी ( अब गिने नहीं भईया के बैल के कितने दांत होते है )

उसने पानी में से ही मुझे आवाज़ लगायी ‘’ अरे क्या देख रहो आँखे फाडकर बंधू ?’’

ये बात मुझे बड़ी नागवार गुजरी के बैल ने मुझे बंधू कहा ‘

मैंने आक्षेप लिया ‘’ अबे मै इंसान हू बैल नहीं ,क्यों बन्धु बोल रहे हो ‘’

उसका जवाब ‘’ अबे बिना अक्ल के इंसान को ‘’बैल ‘’ ही कहते है ‘’

मै उसके जवाब से तिलमिला उठा ,लेकिन क्या करता चुप ही रहा ,

फिर उसने मुझे झकझोरा ‘’ जवाब नहीं दिया ,के ऐसे क्या देख रहे हो दीदे फाडकर ‘’

मैंने उसकी उत्सुकता शांत करवाई .

‘’ मै ये देख रहा हू के तुम इतनी विशालकाय काया के साथ इतनी आसानी से कैसे तैर लेते हो ‘’?

‘’हेहेहेहे ‘’वो बड़े ही कुत्सित ढंग से हंसा ‘’ अरे इसमें कौन सी बड़ी बात है ,क्या तुम्हे तैरना नहीं आता ?’’

मैंने कहा ‘’ हा नहीं आता ‘’

तो वो और जोर से हंसा ‘’ अबे कैसा इंसान है तू तुझे तैरना नहीं आता ,ये देख मै बैल होके भी कैसे तैरता हू हेहेहे ‘’

तब मैंने कहा ‘’ अगर मै भी तैरने लगा तो तुझ में और मुझ में क्या फर्क रह जाएगा हेहेहेहे ‘’( अब मैंने बत्तीसी चमकाई ,)

जवाब सुनते उसकी हेडलाईट जैसी आँखे गुस्से में लाल हो गयी ,वो पानी से बाहर आने की कोशिश करने लगा ,

मैंने अपनी भलाई वहा से खिसक लेने में ही समझी ,और तुरंत भागते हुए वहा से रफूचक्कर हो गया ,वरना आज तो बिना बैगन के भुरता बन ना निश्चित था .

मर्दानगी का सुबूत

भाई वाह साबित हो गया के '' कांग्रेसी '' सच्चे मर्द होते है ,क्या बहादुरी दिखाई ''उडीसा '' में इस महिला पुलिस को बेरहमी से पिट कर शाब्बाश ,इन्हें तो शौरी पदक मिलना चाहिए ,उस पुलिसवाली ने गलत किया जो इनका विरोध किया ,
क्या जरूरत है ,चुपचाप नामर्दों की तरह खड़ी रहती ,क्या जरूररत थी उन मर्दों के बिच लड़ने की मुह फूड्वा लिया ,क्या फर्ज फर्ज करते रहते हो ..सच्चे देशभक्त और मर्द ये कांग्रेसी ही तो है ,इनकी
मर्दानगी सलाम करने का जी चाहता है चप्पलो से ...और कितने लोगो के मन में सम्मान की यह भावना उठ रही है ?
कांग्रेसियों ने ओडिशा में गुरुवार को कोयला घोटाले को लेकर राज्य सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने एक महिला पुलिसकर्मी के साथ बदसलूकी की।
एक वीडियो फुटेज में कई प्रदर्शनकारी उसे पकड़कर घसीटते हुए दिखाए गए। उसे जैसे-तैसे मौके पर मौजूद अन्य पुलिसवालों ने बचाया। पुलिस के साथ प्रदर्शनकारियों की झड़प भी हुई। इसमें 60 पुलिसकर्मी समेत 100 लोग घायल हो गए। इस मामले में महिला कॉन्‍सटेबल पर हमला करने वाले लोगों समेत 35 को गिरफ्तार किया गया है।

काहे की गिरफ्तारी ,देखना चंद दिनों में छोट जायेंगे , गुवाहाटी वाले दरिंदों को जैसा छुपा लिया गया ,,लेकिन बात क्या है ये ''मर्द ; अपनी मर्दानगी औरतो पे ही क्यों दिखा रहे है ,अभी आजाद मैदान में भी कुछ '' मर्दों '' ने अपनी मर्दानगी दिखाई थी इन महिला पुलिसकर्मियों के साथ ...

क्या करे जब घर में रोब नहीं चलता तो बाहर ही सही ..

किताब की खुशबू ..

आज क्या बात है पता नहीं लेकिन ऑफिस में आते ही ,
कुछ जानी पहचानी खुशबू महसूस हुयी हलकी हलकी सौंधी सौंधी ,
जो अभी तक है ,’’पुरानी किताबो ‘’ की खुशबू ,आप कहेंगे ये क्या बात हुयी
पुरानी किताबो की भला कैसी खुशबू ?
तो यकीं मानिए मेरी तरह जो भी पुस्तक प्रेमी मित्र है वे सभी इस बात से सहमत होंगे के
पुरानी किताबो की एक अलग ही खुशबू होती है ,
पहली बार मैंने जब महसूस किया था तब मै लगभग तेरह या चौदह साल का

था ,उस वक्त पहली बार अपने ननिहाल गया

था ,वाही पर मेरी मौसी की ढेर सारी किताबे थी ,जिसे मै पढता था ,चाहे वो उनके कॉलेज की हो या कोई मेग्जिन ,लेकिन मै उन्हें पढता रहता ,यहाँ तक के आते हुए उनमे से कई सारी मौसी से ले भी आया वे भी काफी पुरानी और मोती मोती किताबे थी ,लेकिन उनमे से जो हलकी हल्की गंध आती थी उसको मै ब्यान नहीं कर सकता ,शायद यही वजह है के मै बचपन से ही

किताबो का साहित्य का कुछ पढ़ने का शौक़ीन रहा हू , और आगे भी रहूंगा ..

खैर मुझे कारण तो पता चल गया ऑफिस में फैली इस खुसबू का ‘’ दरअसल पुरानी किताबो के एक शिपमेंट आया हूवा है ‘’

उसी की हल्की महक है ,दुसरे किसी को महसूस नहीं हो रही ,लेकिन मुझे महसूस हो रही है ,आपमें से जितने भी पुस्तक प्रेमी मित्र होंगे ,इस बात को वे ही समझ सकते है ,के किताबो की अपनी एक खुशबू होती है जो मंत्रमुग्ध कर देती है ,

एक बार महसूस तो करे ..

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